सम्पादकीय

बहुत याद आएंगे पंडित जी

Rani Sahu
11 May 2022 7:12 PM GMT
बहुत याद आएंगे पंडित जी
x
पंडित सुखराम अपनी जिंदगी को लिखते-लिखते अंततः एक कहानी बन कर लिख गए

पंडित सुखराम अपनी जिंदगी को लिखते-लिखते अंततः एक कहानी बन कर लिख गए। जीवन के हर संघर्ष में जिस व्यक्ति ने अपने कर्म को सदैव रूपांतरित किया, वह अंत में एक रूपक की तरह अलविदा कह गए। पंडित सुखराम के बिना हिमाचल की राजनीति को समझना मुश्किल है, क्योंकि उनकी मौजूदगी हर अच्छे-बुरे लम्हे में दर्ज रहेगी। वह एक ऐसा ग्रॉफ छोड़ गए, जिसे न कांग्रेस और न ही भाजपा नकार सकती है। सबसे बड़ी बात यह कि जीवन के 95वें वर्ष में भी यह शख्स राजनीति के मोर्चे पर प्रासंगिक रहा, भले ही अक्स टूटते रहे या अस्तित्व के कई प्रतीक ढहते गए। आश्चर्य यह कि जो व्यक्ति चाहकर या अपनी वरिष्ठता के आधार पर कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया, लेकिन उसका मुकाबला वाईएस परमार, राम लाल ठाकुर,वीरभद्र सिंह, शांता कुमार या प्रेम कुमार धूमल जैसे दिग्गजों से होता रहा। ऐसे में हम मंडी की सियासत को जयराम ठाकुर के उदय से, भले ही अलग परिप्रेक्ष्य में देखें, लेकिन इन फिजाओं में भी पंडित सुखराम के नारे कभी कुंद नहीं हुए। यह इसलिए भी कि पंडित सुखराम अपने दायित्व के हर मंच पर कामयाब शासक और प्रशासक सिद्ध हुए और इसीलिए इन्हें राजनीति का शिल्पकार भी माना जाता रहा है। मंडी में इंदिरा मार्केट की परिकल्पना आधुनिक हिमाचल की अनूठी मिसाल है। वह संचार क्रांति लाते हुए पूरे प्रदेश से न्याय करते हैं। संचार की प्राथमिकता में पूरे हिमाचल को रखते हुए वह पहली बार यह साबित कर सके कि कोई ऐसा राजनेता भी हो सकता है, जो क्षेत्रवाद से ऊपर उठ कर नए अध्याय लिख सकता है। देश में जब दो अति आधुनिक टेलिफोन एक्सचेंज आए, तो सुखराम ने उनमें से एक की स्थापना धर्मशाला में करवाई थी। क्या आज की राजनीति में यह संभव है कि कोई अदना सा मंत्री भी अपने विधानसभा क्षेत्र के बाहर अपने दायित्व की ईमानदारी दिखाए।

आज जिस गति से पूरे हिमाचल में मोबाइल व इंटरनेट पहुंचा है, उसकी बुनियाद के लिए पंडित बहुत याद आएंगे। इसमें दो राय नहीं कि इनकी बदौलत कई सरकारें बनीं, लेकिन यह उतना कड़वा सच है कि सुखराम को मुख्यमंत्री न बनने देने की भी एक गंदी सियासत इस प्रदेश में हुई है। सुखराम का चातुर्य, उनके भीतर का चाणक्य, सियासी रणनीतिकार एवं शिल्पकार मंडी के परिप्रेक्ष्य में अभेद्य दुर्ग बना रहा और इसीलिए ठाकुर कर्म सिंह से लेकर वीरभद्र सिंह तक लिखी गई इबारतें बार-बार पढ़ी जाएंगी। वह वाईएस परमार को शीर्ष पुरुष बनाते हुए हिमाचल की सियासत के केंद्र में आते हैं, तो वीरभद्र सिंह से हिसाब चुकता करते हुए प्रेम कुमार धूमल की सरकार को शक्तिशाली बनाते हैं। वह हिमाचल में तीसरे मोर्चे के गणित को उकेरते रहे, तो ब्राह्मण राजनीति को एकजुटता के साथ प्रमाणित भी करते रहे। पंडित सुखराम को केवल सियासत में ही पढ़ा जाए, तो यह उनके व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी होगी। वह स्वयं में सफलता के नायक बनकर सिखाते रहे कि इसे हासिल करने के लिए कितनी मेहनत, कितनी तपस्या और कितनी चुनौती से तमाम संकटों को पार करना पड़ता है, वरना एक साधारण सा व्यक्ति दिल्ली की सत्ता के गलियारों में इतनी चमक नहीं छोड़ता। यह दीगर है कि सुखराम के उभरते अक्स को बींधा गया और उनकी छवि को मलिन करने के पीछे कांग्रेस के काले साए रहे, लेकिन यह शख्स जननेता होने की खूबियों में हमेशा रहा। मंडी ने इस समय सियासत का सबसे बड़ा ताज पहना है, फिर भी सुखराम की हस्ती कभी मिटेगी नहीं। वीरभद्र सिंह की तरह सुखराम भी अपनी मौत के बाद, अपनी विरासत को शून्य नहीं होने देंगे। कुछ तो राजनीतिक असर रहेगा, जहां 1962 से एक शख्स अपनी हथेली पर मंडी का दीया जलाता रहा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Next Story