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- बहुत याद आएंगे पंडित...
पंडित सुखराम अपनी जिंदगी को लिखते-लिखते अंततः एक कहानी बन कर लिख गए। जीवन के हर संघर्ष में जिस व्यक्ति ने अपने कर्म को सदैव रूपांतरित किया, वह अंत में एक रूपक की तरह अलविदा कह गए। पंडित सुखराम के बिना हिमाचल की राजनीति को समझना मुश्किल है, क्योंकि उनकी मौजूदगी हर अच्छे-बुरे लम्हे में दर्ज रहेगी। वह एक ऐसा ग्रॉफ छोड़ गए, जिसे न कांग्रेस और न ही भाजपा नकार सकती है। सबसे बड़ी बात यह कि जीवन के 95वें वर्ष में भी यह शख्स राजनीति के मोर्चे पर प्रासंगिक रहा, भले ही अक्स टूटते रहे या अस्तित्व के कई प्रतीक ढहते गए। आश्चर्य यह कि जो व्यक्ति चाहकर या अपनी वरिष्ठता के आधार पर कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया, लेकिन उसका मुकाबला वाईएस परमार, राम लाल ठाकुर,वीरभद्र सिंह, शांता कुमार या प्रेम कुमार धूमल जैसे दिग्गजों से होता रहा। ऐसे में हम मंडी की सियासत को जयराम ठाकुर के उदय से, भले ही अलग परिप्रेक्ष्य में देखें, लेकिन इन फिजाओं में भी पंडित सुखराम के नारे कभी कुंद नहीं हुए। यह इसलिए भी कि पंडित सुखराम अपने दायित्व के हर मंच पर कामयाब शासक और प्रशासक सिद्ध हुए और इसीलिए इन्हें राजनीति का शिल्पकार भी माना जाता रहा है। मंडी में इंदिरा मार्केट की परिकल्पना आधुनिक हिमाचल की अनूठी मिसाल है। वह संचार क्रांति लाते हुए पूरे प्रदेश से न्याय करते हैं। संचार की प्राथमिकता में पूरे हिमाचल को रखते हुए वह पहली बार यह साबित कर सके कि कोई ऐसा राजनेता भी हो सकता है, जो क्षेत्रवाद से ऊपर उठ कर नए अध्याय लिख सकता है। देश में जब दो अति आधुनिक टेलिफोन एक्सचेंज आए, तो सुखराम ने उनमें से एक की स्थापना धर्मशाला में करवाई थी। क्या आज की राजनीति में यह संभव है कि कोई अदना सा मंत्री भी अपने विधानसभा क्षेत्र के बाहर अपने दायित्व की ईमानदारी दिखाए।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली