सम्पादकीय

क्या अखिलेश यादव को नुकसान पहुंचाएगा मायावती का मुसलमानों पर दांव

Rani Sahu
25 Jan 2022 12:30 PM GMT
क्या अखिलेश यादव को नुकसान पहुंचाएगा मायावती का मुसलमानों पर दांव
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बीएसपी प्रमुख मायावती (Mayawati) उत्तर प्रदेश के चुनावी रण (UP Assembaly Election) में देर से उतरी हैं

यूसुफ़ अंसारी बीएसपी प्रमुख मायावती (Mayawati) उत्तर प्रदेश के चुनावी रण (UP Assembaly Election) में देर से उतरी हैं. लेकिन जितनी देर से आईं हैं उतनी ही धमक और मज़बूत इरादों के साथ उतरती दिखी हैं. बीएसपी के दूसरे चरण के उम्मीदवारों की लिस्ट से साफ़ लगता है कि मायावती एक बार फिर मुसलमानों (Muslim Vote) पर दांव लगाना चाहती हैं. हालांकि पहले और दूसरे चरण में मायावती ने पिछले चुनाव के मुक़ाबले कुछ कम मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं. पहले चरण में पिछले चुनाव में 20 के मुक़ाबले 17 तो दूसरे चरण में 27 के मुकाबले अबतक 23 मुस्लिम उम्मीदवार हैं. बीएसपी के इस दांव से सपा गठबंधन के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं.

मायावती का मुस्लिमों पर दांव योगी सरकार को उखाड़ फेंकने के दावे कर रहे अखिलेश के लिए ख़तरे की घंटी हो सकता है. ये अहम सवाल है कि क्या मायावती का मुस्लिमों पर दांव अखिलेश को नुकसान पहुंचा सकता है? बीएसपी की दूसरे चरण की लिस्ट देखकर कर तो ऐसा ही लगता है कि मायावती ने सत्ता की तरफ़ बढ़ते अखिलेश के क़दमों को रोकने की कोशिश की है. मायावती ने दूसरे चरण की 55 में से 51 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है. चार पर अभी नाम सामने आने बाकी हैं. पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बहुल माने जाने वाले ज़िलों की इन सीटों पर बीएसपी ने सबसे ज्यादा 23 मुसलमान उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं, 10 आरक्षित सीटों पर दलित प्रत्याशी हैं. इसके अलावा 13 ओबीसी और पांच सवर्ण उम्मीदवार बनाए गए हैं. मायावती के इन मोहरों को देख कर लगता है कि चुनावी बिसात पर वो बड़ा उलटफेर करना चाहती हैं
दूसरे चरण में बीएसपी के 45% उम्मीदवार मुसलमान
दूसरे चरण में जिन 55 सीटों पर चुनाव होना है वो सभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नौ जिलों में आती हैं. इन जिलों में मुसलमानों के अलावा ओबीसी वोटर ज्यादा हैं. इसके बाद दलित वोटर आते हैं. दलित बीएसपी का आधार वोट है और मुसलमान समर्थक वोटर रहा है.
ऐसे में मुसलमानों को सबसे ज्यादा टिकट देकर मायावती ने एक बार फिर अपने पुराने जिताऊ गठबंधन दलित-मुसलमानों को एक साथ लामबंद करने की कोशिश की है. जहां पर मुसलमान कम हैं, वहां बीएसपी ने ओबीसी को तरजीह दी है. यही वजह है कि 45% से ज्यादा प्रत्याशी मुसलमान हैं. वहीं सवर्णों को इस लिस्ट में 10% हिस्सेदारी भी नहीं मिली है.
मुसलमान औऱ पिछड़ी जातियों को दलितों के साथ लामबंद करने की कोशिश सपा-आरएलडी गठबंधन के बढ़तों क़दमों को रोक सकती है. बीएसपी को लगता है कि पिछले चुनाव में बीजेपी मे गया उनका वोट बैंक इस बार उन्हीं के पास लौटेगा.
पिछले चुनाव में क्या था हाल
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी इन 55 में से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. इस लिए इस बार वो पूरी ताक़त लगाकर पुराने समीकरणों में उलटफेर करना चाहती है. पिछले चुनाव में दूसरे चरण वाली इन 55 सीटों में से बीजेपी ने 38 सीटें जीती थीं. बाक़ी बची 17 सीटें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को मिली थीं. इनमे सें 15 समाजवादी पार्टी ने और दो सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. सपा के खाते में आईं 15 सीटों में से 10 पर पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे. पूरे प्रदेश में सपा के जीते 17 मुस्लिम विधायकों में से 10 इन्हीं 9 ज़िलों से जीते थे. पिछले चुनाव में बीएसपी के एक भी सीट नहीं जीतने का ये मतलब निकाला गया कि उसका आधार दलित वोटर हिंदुत्व की आंधी में बह कर बीजेपी के साथ चला गया था. उसके साथ सिर्फ़ मुस्लिम रह गया था.
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी-बीएसपी गठबंधन ने किया था कमाल
ग़ौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण वाले 9 ज़िलो की 55 विधानसभा सीटों पर खाता भी नहीं खुला था. लेकिन 2019 के लोक सभा चुनाव में वो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधंन के चलते इन ज़िलों की 11 सीटों में से 4 जीतने में कामयाब रही थी. चार सपा ने जीती थी. 11 सीटों में सात सीटें बीएसपी-सपा गठबंधन के हिस्‍से आयीं. इनमें से चार सीटों सहारनपुर, नगीना, बिजनौर और अमरोहा पर बीएसपी जीती थी. जबकि सपा को मुरादाबाद, संभल और रामपुर सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इससे साफ़ है कि इस गढ़ में मुस्लिम, जाट और दलित मतदाताओं के गठजोड़ का फार्मूला कामयाब हुआ था. उस वक़्त लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ दलित, पिछड़ा और मुसलमान बेहद मज़बूत और जिताऊ गठबंधन के रूप में उभरा था. इसी लिए यहां बीजेपी धराशायी हो गई थी. लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद सपा और बीएसपी के अलग होते ही ये मज़बूत गठबंधन बिखर गया.
इस चुनाव में स्थिति है एकदम अलग
मौजूदा विधानसभा चुनाव में स्थिति 2019 के लोकसभा चुनाव से एकदम अलग हो गई है. अब समाजवादी पार्टी, आरएलडी और महान दल के साथ गठबंधन में है. वहीं बीएसपी अपने पुराने दलित मुस्लिम जिताऊ गठजोड़ को जिंदा करने की कोशिश कर रही है. सियासी ताक़त के तौर पर देखें तो समाजवादी पार्टी और बीएसपी के लगभग यहां पर लगभग बराबर ताक़त है. अगर समाजवादी पार्टी ये उम्मीद कर रही है कि पिछले चुनाव में उसका बीजेपी में जाने वाला वोटबैंक उसके वापस लौटेगा तो यही उम्मीद बीएसपी को भी है. इसालिए वो पूरी ताक़त से दूसरे चरण की 55 विधानसभा सीटों पर जोर आज़माइश में लगी हुई है. यहं उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है. उसे उम्मीद है कि उसकी चार लोकसभ सीटों में हर एक में से वो कम से कम दो-दो विधानसभा सीटें भी जीतेगी तो वो फायदे में हीं रहेगी.
बीजेपी को मुस्लिम वोटों के विभाजन पर भरोसा
दूसरा चरण बीजेपी के लिए पहले चरण के मुक़ाबले ज्याद चुनौतीपूर्ण है. लेकिन उसे मुस्लिम वोटों के बंटवारे के चलते पिछले चुनाव में जीती 38 सीटों का आंकड़ा फिर से छूने की उम्मी है. अभी तक घोषित उम्मीदवारों की लिस्ट के हिसाब से दूसरे चरण की 55 में से 12 सीटों पर सपा और बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवार एक दूसरे के सामने ताल ठोक रहे हैं. इनमें से 10 सीटों पर कहीं कांग्रेस तों कहीं ओवैसी की पार्टी का त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बना रहीं हैं. तीन अन्य सीटों पर दो मुस्लिम उम्मीदवार आमने सामने हैं. संभल की असमोली पर बीएसपी और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार आपस में टकरा रहे हैं, तो बरेली की मीरगंज सीट पर सपा और कांग्रेस का मुस्लिम उम्मीदवार आपस में टकरा रहा है. बीजेपी ने रामपुर की स्वार सीट अपना दल के लिए छोड़ दी है. यहां सपा के उम्मीदवार आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला आज़म को अपना दल के हैदर अली सीधी चुनौती देंगें.
आरएलडी गठबंधन की बढ़ीं चुनौतियां
बीएसपी के मुस्लिमों पर दांव से सपा-आरएलडी गठबंधन की चुनौतियां बढ़ सकती हैं. हालांकि सपा-आरएलडी को इन ज़िलो में महान दल का भी सहारा है. इन ज़िलो में सैनी, कुशवाहा, शाक्य और मौर्य जैसी जातियों का भी असर है.
सपा के एक नेता का दावा ह कि सपा, आरएलडी गठबंधन के साथ, बीजेपी से इस्तीफा देकर आए स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी तथा महान दल के केशव देव मौर्य का समीकरण बहुत मजबूत साबित होगा और बीजेपी का यहां से सफाया हो जाएगा. हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघप्रिय मौर्य बदायूं से बीजेपी की सांसद हैं. अभी वो बीजेपी में ही हैं. अगर बीजेपी उन्हें यहां प्रचार में लगाती है और पार्टी अनुशासन से बंधी होने के नाते वो यहां बीजेपी के लिए वोट मांगेगी तो फिर सपा गठबंधन के लिए मुश्किल हो सकती है. इस लिए सपा गठबंधन के लिए यहां चुनौती काफी बढ़ गई है.
इस बार अखिलेश ने बीजेपी के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और विकास के मिलेजुले गठजोड़ को मात देने के लिए छोटी पार्टियों का बड़ा गठबंधन तयार किया है. पश्चिमी उप्र में उसने राष्‍ट्रीय लोकदल और महान दल के साथ गठबंधन किया है. आरएलडी जाटों की पार्टी मानी जाती है तो महान दल का शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, कोइरी बिरादरी में प्रभाव माना जाता है. मुसलमानों के साथ आने से ये गठबंधन बेहद मज़बूत हो गया है. चुनावी सर्वेक्षणों में लगातार अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा गठबंधन के लगतार बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की ख़बरों से गठबंधन को जीत का हौसला मिल रहा है. लेकिन बीएसपी के अपने पुराने दलित-मुस्लिम गठज़ोड़ को ज़िंदा करन की कोशिशों से मुसलमानों के वोट बंटने का ख़तरा सपा के जिताऊ गठबंधन को कमज़ोर कर सकता है. उसके उम्मीदवारों की लिस्ट को देख कर तो ऐसा ही लगता हैं. इसी लिए कहा जा रहा है कि मुसलमानों पर बीएसपी का दांव अखिलेश को भारी पड़ सकता है.
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