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क्या ममता को रास आएगा तेजस्वी का उपदेश
दाद देनी होगी राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव और उनके युवा जोश की. पिता लालू प्रसाद जेल में थे और तेजस्वी ने युवा जोश में बहक कर कांग्रेस पार्टी को, जिसे उनके पिता ने बिहार में अपना पिछलग्गू बना लिया था, सर पर बैठा लिया. जैसे जरूरत से ज्यादा खाना हजम नहीं होता, कांग्रेस पार्टी को भी अपनी औकात और अनुमान से ज्यादा सीटें हजम नहीं हो पाईं. बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ और कांग्रेस तेजस्वी के लिए वह नासूर बन गई जिसकी टीस अभी तक उन्हें चुभ रही होगी.
एक आधारहीन पार्टी को जिसका प्रदेश में राजनितिक वर्चस्व लुप्त होने के कगार पर हो उसे 243 में से 70 सीटों का तोहफा देना तेजस्वी की अनुभवहीनता ही थी. शायद तेजस्वी का सोचना था कि शहरी क्षेत्र में कांग्रेस, जिसके शीर्ष नेता धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हैं बीजेपी को आरजेडी से बेहतर टक्कर देगी. तेजस्वी को शायद पता नहीं था कि राजनीति में दो और दो हमेशा चार नहीं होते और हुआ भी कुछ ऐसा ही. कांग्रेस 70 में से मात्र 19 सीटें जीतने में ही सफल रही. खुद भी डूबी और साथ में महागठबंधन को भी ले डूबी. महागठबंधन सत्ता से 12 सीटों के फासले से लुढ़क गई. साथ ही साथ, तेजस्वी और यादव परिवार की सत्ता में वापसी का सपना भी चूर-चूर हो गया.
तेजस्वी और राहुल में समानताएं
तेजस्वी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी में दो समानताएं हैं. दोनों अविवाहित हैं और घूमने के शौकिन. जहां राहुल गांधी अक्सर विदेश भ्रमण पर निकल जाते हैं, तेजस्वी पर आरोप लगता है कि उनका समय पटना में कम और दिल्ली में ज्यादा गुजरता है. कारण कई हैं जिसका पता आरजेडी के कार्यकर्ताओं को भी है. बिहार चुनाव हारने के बाद आरजेडी और तेजस्वी ने जी तोड़ कोशिश की कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने खेमे में लाए या फिर एनडीए को तोड़कर महागठबंधन की सरकार बना लें, पर असफलता ही हाथ लगी.
अब तेजस्वी की नजर पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव पर टिकी है. आरजेडी वहां चुनाव लड़ना चाहती है. यह अलग बात है कि पूर्व का दक्षिण बिहार जिसे अब झारखंड राज्य के नाम से जाना जाता है, वहां आरजेडी को चुनाव में कुछ सीटों के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा पर आश्रित रहना पड़ता है. तेजस्वी ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ त्रिणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने की पेशकश की है.
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ममता ने कांग्रेस को साबित किया था गलत
यही नहीं, उन्होंने यह भी नसीहत दे डाली कि बेहतर यही होगा अगर कांग्रेस पार्टी और वाममोर्चा भी तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े. यह तो ऐसा ही है जैसा कि यह सोचना कि भारत और पाकिस्तान साथ मिल कर चीन पर हमला कर दे! तृणमूल कांग्रेस का जन्म ही वाममोर्चा के विरोध में हुआ है. एक जमाने में ममता बनर्जी कांग्रेस में होती थी. उन्हें कांग्रेस पार्टी का वाममोर्चा से नजदीकियां खटकती थी.
वह कांग्रेस को वाममोर्चा का विकल्प के रूप में आगे लाना चाहती थीं और कांग्रेस आलाकमान केंद्र में वाममोर्चा का समर्थन चाहती थी. लिहाजा ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया और खुद की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. अपने फैसले से ममता ने खुद को सही और कांग्रेस के गांधी परिवार को गलत साबित कर दिया. ममता बनर्जी और वाममोर्चा में 36 का आंकड़ा बना हुआ है.
क्या ममता को रास आएगा तेजस्वी का उपदेश
एक दूसरे के घोर विरोधी हैं, वाबजूद इसके के इसबार तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी के साथ है, ना कि वाममोर्चा के साथ. कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल चुनाव में वाममोर्चा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने की पहले ही घोषणा कर दी है. लगता नहीं है कि तेजस्वी का उपदेश बीजेपी को पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने से रोकने का यही एकमात्र तरीका है, ममता बनर्जी को रास आएगा.
ममता बनर्जी क्षेत्रीय दलों का समर्थन चाहती हैं पर सिर्फ मंच पर ही. इसके आसार बहुत कम हैं कि ऐसे दलों को जिसका कि पश्चिम बंगाल में कोई आधार नहीं है, उसे वह टिकट देने की सोचेंगी. अगर ममता बनर्जी तेजस्वी यादव के साथ में चुनाव लड़ने के प्रस्ताव को मान भी लें तो बिहार से सटे कुछ सीटों पर ही आरजेडी को सिमित रहना पड़ेगा.
बंगाल में बिहारी मतदाता
वैसे पश्चिम बंगाल में बिहारी मतदाताओं की काफी बड़ी संख्या है. बिहार के निवासियों के लिए दिल्ली के बाद कोलकाता सबसे पसंदीदा शहरों में है. अगर सीमांचल से बहार ममता बनर्जी ने आरजेडी को यह सोच कर टिकट दे दिया कि इसके कारण बिहार मूल के मतदाता तृणमूल कांग्रेस के पाले में आ जाएंगे तो यह ममता बनर्जी की वैसी ही भूल होगी जैसा कि आरजेडी ने बिहार चुनाव में कांग्रेस को यह सोच कर ज्यादा सीट दे दिया था कि इससे शहरी मतदाता महागठबंधन को वोट देंगे.
हर क्षेत्रीय दल का सपना होगा है कि उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिले. आरजेडी का सपना गलत नहीं है. पर देखना होगा कि क्या ममता बनर्जी बिहारी मतदातों को लुभाने के लिए तेजस्वी यादव के प्रस्ताव को स्वीकार करेंगी या फिर तेजस्वी के युवा जोश पर ठंढा पानी डाल देंगी.
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