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कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में इन दिनों बड़े बदलाव हो रहे हैं
संयम श्रीवास्तव। कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में इन दिनों बड़े बदलाव हो रहे हैं. पंजाब से लेकर दिल्ली तक बहुत सी चीजें बदलीं हैं. बीते दिनों जहां पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने इस्तीफा दे दिया और वहां एक दलित चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो वहीं मंगलवार को दिल्ली में गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) और मूलतः बिहार के रहने वाले कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को कांग्रेस में शामिल किया गया. कन्हैया कुमार 2016 में जेएनयू में लगे देश विरोधी नारों के बाद लाइमलाइट में आए थे. उसके बाद उन्होंने हर मोर्चे पर मौजूदा केंद्र सरकार का विरोध किया और शायद इसी विरोध के चलते ही उन्हें कांग्रेस पार्टी में जगह भी मिली.
हालांकि अगर आप कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के कांग्रेस में शामिल करने के पीछे की वजह देखें तो वह जुलाई महीने में ही दिख गई थी जब कांग्रेस पार्टी के सोशल मीडिया प्रोग्राम में राहुल गांधी ने साफ कह दिया था कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो मौजूदा सरकार से डर नहीं रहे हैं, बल्कि उससे लड़ रहे हैं. लेकिन वह लोग कांग्रेस से बाहर है और उन्हें कांग्रेस में लाने की जरूरत है. वहीं जो लोग कांग्रेस के अंदर हैं और सरकार से डर रहे हैं उन्हें कांग्रेस छोड़ देने की जरूरत है. राहुल गांधी ने इस बयान में जिन बाहर के लोगों का जिक्र किया उनमें जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया कुमार जैसे युवा ही थे. जिन्हें राहुल गांधी अपनी नई टीम में शामिल करना चाहते थे और उन्होंने वैसा ही किया भी. लेकिन जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया कुमार को कांग्रेस पार्टी में शामिल करके क्या राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को वह धार दे पाएंगे कि वह आगामी विधानसभा चुनाव या फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर पाएं इस पर फिलहाल कई सवाल हैं.
कन्हैया और जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस में शामिल करने का मकसद
राहुल गांधी को मालूम है कि हिंदुस्तान में अगर कांग्रेस को फिर से खड़ा करना है तो पार्टी के उम्र दराज नेताओं की जगह उन युवा नेताओं को सामने लाना होगा, जिनमें लड़ने की क्षमता और जुनून दोनों है. कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल करने की सबसे बड़ी वजह है बिहार में कांग्रेस का कोई भी बड़ा और युवा चेहरा ना होना. बिहार में अगर कांग्रेस के शासन काल को देखें तो नब्बे के बाद से कांग्रेस बिहार की सत्ता से दूर है. हालांकि बीच-बीच में वह गठबंधन के सहारे जरूर सत्ता में रही. लेकिन कांग्रेस का मुख्यमंत्री कोई नहीं बन पाया. जेडीयू के पास नितीश कुमार का चेहरा था, आरजेडी की कमान अब तेजस्वी यादव ने संभाल ली थी. लेकिन कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो बिहार में कांग्रेस को एक नई ऊर्जा दिला सके. कन्हैया कुमार ने बहुत ही कम समय में देश की राजनीति में अपने आप को स्थापित किया है. इसलिए आने वाले समय में बिहार में कांग्रेस को मजबूती कन्हैया के नाम पर जरूर मिल सकती है.
वहीं अगर जिग्नेश मेवाणी की बात करें तो गुजरात में वह अब दलितों का चेहरा बन चुके हैं. पहले पत्रकार, वकील और एक्टिविस्ट रहने के बाद अब गुजरात के बडगाम से निर्दलीय विधायक हैं. उन्होंने गुजरात के कई दलित आंदोलनों का नेतृत्व किया है. राहुल गांधी को मालूम है कि अगर गुजरात में कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाना है तो हार्दिक पटेल के साथ साथ जिग्नेश मेवाणी जैसा दलित युवा चेहरा भी चाहिए होगा.
राहुल गांधी को फायर ब्रांड मोदी विरोधी चेहरा चाहिए
राहुल गांधी के पास कांग्रेस में ऐसे नेताओं की बहुत ज्यादा कमी है जो फायर ब्रांड तरीके से मुखर होकर प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय जनता पार्टी का विरोध करते हैं. ऐसे में कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी जिनका राजनीतिक आधार ही मोदी विरोध से बना है राहुल गांधी को पसंद आए. क्योंकि राहुल गांधी ने जुलाई महीने में कांग्रेस पार्टी के एक सोशल मीडिया कार्यक्रम में साफ-साफ अपने मन की भावना जाहिर कर दी थी कि उन्हें ऐसे नेताओं की जरूरत है जिनके अंदर पीएम मोदी और बीजेपी का विरोध करने को लेकर डर ना हो और वह खुलकर वर्तमान सरकार का विरोध कर सकें. शायद यही वजह थी कि राहुल गांधी ने कांग्रेस के बड़े नेताओं की बात को दरकिनार कर कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस में जगह दी.
कन्हैया को शामिल करने पर कांग्रेस में ही बवाल
इधर कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हुए उधर कांग्रेस के अंदर खाने में ही बवाल चल गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए लिखा कि मैंने सुना है कि कुछ कम्युनिस्ट नेता कांग्रेस ज्वाइन कर रहे हैं. ऐसे में शायद 1973 में लिखी गई किताब 'कम्युनिस्ट इन कांग्रेस' को फिर से पढ़े जाने की जरूरत है. मैंने भी आज इसे फिर से पढ़ा है. मनीष तिवारी जैसे कई नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने से नाराज हैं. हालांकि सब खुलकर मनीष तिवारी की तरह बयान नहीं दे रहे हैं. हालांकि यह नियति है जब भी कहीं किसी पार्टी में युवा चेहरों को जगह मिलती है तो पार्टी के पुराने बरगद असहज महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि शायद आने वाले समय में उनकी जगह यह युवा चेहरे दिखेंगे जो कुछ हद तक सही भी होता है.
क्या कांग्रेस को कन्हैया कुमार से नुकसान भी हो सकता है
कन्हैया कुमार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय से बीजेपी के गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जहां वह बुरी तरह से हार गए थे. भारतीय जनता पार्टी कन्हैया को टुकड़े-टुकड़े गैंग का लीडर कहती है और कहीं ना कहीं वह देश की जनता को भी यह संदेश देने में कामयाब हो गई है. अब ऐसे में आने वाले समय में पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा जैसे राज्यों में चुनाव हैं. बीजेपी कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने के मुद्दे को खूब भुनाएगी और मंचों से कहा जाएगा कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी है जो देश के टुकड़े टुकड़े होने का सपना देखते हैं. हालांकि कन्हैया पर लगे यह इल्जाम कि उन्होंने देश विरोधी नारे लगाए थे आज तक साबित नहीं हो पाया है. लेकिन राजनीति में चीजें साबित हों या ना हों जनता के मन में अगर बैठ गया तो उसका कुछ ना कुछ परिणाम दिखाई ही देता है.
बिहार में कांग्रेस को मजबूत करेंगे कन्हैया कुमार
बिहार में फिलहाल कांग्रेस के अध्यक्ष है मदन मोहन झा जिनका कार्यकाल अब समाप्त हो चुका है और पार्टी भी अब बिहार में किसी ऐसे युवा नेता को देखना चाहती है जिसके अंदर नीतीश कुमार से सवाल करने का माद्दा हो. जिस तरह से आरजेडी की कमान संभाल कर तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को घेरने का काम करते हैं या फिर चिराग पासवान नीतीश कुमार पर हमले करते हैं. कांग्रेस के पास ऐसा कोई युवा नेता नहीं था जो इस मोर्चे को संभाल सके. अब लग रहा है कि कन्हैया कुमार को जल्द ही बिहार में कोई बड़ी जिम्मेदारी देकर उन्हें नीतीश कुमार के विरोध वाले मोर्चे पर लगा दिया जाएगा. कन्हैया कुमार दो धारी तलवार हैं जो राज्य में कांग्रेस को तो मजबूत करेंगे ही इसके साथ-साथ वह केंद्र की राजनीति में भी कांग्रेस को शक्ति प्रदान करेंगे.
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