सम्पादकीय

दीर्घकाल में पड़ेगी मार

Gulabi
3 March 2022 7:07 AM GMT
दीर्घकाल में पड़ेगी मार
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रूस के पास 630 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है
By NI Editorial
रूस के पास 630 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। यह उसके लिए बड़ा सहारा है। लेकिन यह भी तय है कि इसके जरिए रूस भले फौरी संकट टालने में कामयाब रहे, लेकिन निवेश और उत्पादकता बढ़ाने के मोर्चे पर यह सफल नहीं हो सकती। इसका असर कुल आर्थिक वृद्धि दर पर पड़ेगा।
अब ये साफ है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने पूरी योजना बना कर यूक्रेन पर हमला करने का फैसला किया। इसलिए पश्चिमी विशेषज्ञों की भी यही राय बनी है कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से तुरंत उस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। हां, दीर्घकाल में उससे रूसी अर्थव्यवस्था जरूर गतिरुद्ध हो जाएगी। रूस को कई बैंकों अंतरराष्ट्रीय भुगतान के सिस्टम- सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन (स्विफ्ट) से भी निकालने का फैसला किया गया है। लेकिन इससे रूसी बैंकिंग सिस्टम तुरंत ठप नहीं होगा। रूस के सेंट्रल बैंक- बैंक ऑफ रशिया- ने घरेलू बैंकों को पर्याप्त मात्रा में नकदी उपलब्ध कराने की घोषणा की है। उसने कहा है कि बैंक जितनी नकदी के लिए अर्जी देंगे, उतनी उन्हें उपलब्ध कराई जाएगी। उधर बैंक ऑफ रशिया ने देश में ब्याज दर में भारी वृद्धि कर दी है। अब रूस में ब्याज दर 20 फीसदी होगी। इसका मकसद रूसी नागरिकों को अपना धन बैंकों में जमा कराने के लिए प्रोत्साहित करना है। बैंक ने यह भी एलान किया कि अब विदेशी मुद्रा में प्राप्त होने वाली अपनी आमदनी के 80 फीसदी हिस्से का विनिमय रूसी नागरिकों को करना होगा। यानी 80 फीसदी विदेशी मुद्रा जमा करा कर उन्हें उसके बदले उन्हें रुबल लेना होगा। बैंक ऑफ रशिया ने कुछ वर्ष पहले स्विफ्ट जैसा अपना सिस्टम तैयार किया था। इसका नाम फाइनेंशियल मेसेज ट्रांसफर सिस्टम है (एसपीएफएस) है।
अब रूसी विशेषज्ञों ने दावा किया है कि स्विफ्ट से रूस का निष्कासन उसके लिए अच्छी खबर है। इससे रूस एसपीएफएस को अंतरराष्ट्रीय सिस्टम बनाने और रुबल को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने की कोशिश में अपनी ताकत झोंकने को प्रेरित होगा। उधर रूस के पास चीन के सिप्स (क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम) का भी इस्तेमाल करने का विकल्प है। चीन ने सिप्स को स्विफ्ट के विकल्प के तौर पर बनाया है। हाल के वर्षों में रूस की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल के निर्यात पर अधिक निर्भर हो गई है। पिछले दो साल से कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का फायदा रूस को मिला है। इसी वजह से अभी उसके पास 630 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। बहरहाल, यह तय है कि इस भंडार के जरिए रूस भले फौरी संकट टालने में कामयाब रहे, लेकिन निवेश और उत्पादकता बढ़ाने के मोर्चे पर यह सफल नहीं हो सकती। इसका असर कुल आर्थिक वृद्धि दर पर पड़ेगा।
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