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सम्पादकीय
सैटेलाइट इंटरनेट के बाद Elon Musk की दिमाग पढ़ने की मशीन साइंस की सबसे बड़ी कामयाबी होगी?
Gulabi Jagat
19 April 2022 9:56 AM GMT
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एलन मस्क दुनिया के बहुत सारे लोगों के लिए अति प्रेरणादायक शख्स हो सकते हैं
प्रवीण कुमार।
एलन मस्क (Elon Musk) दुनिया के बहुत सारे लोगों के लिए अति प्रेरणादायक शख्स हो सकते हैं. कुछ लोगों के लिए सुपरह्यूमन भी हो सकते हैं. और कुछ लोग तो ये तक कहने लगे हैं कि एलन मस्क इंसान नहीं एलियन हैं. लेकिन यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि एलन मस्क नाम का इंसान अपनी दिमागी फितरत से अब तक जो कुछ करता आया है और जो कुछ करने जा रहा है, क्या वह आम आदमी की जिंदगी को अब तक ऐसा कुछ दे पाया है जिससे उसकी मुश्किलें आसान हो गई हों? किसी ने बल्ब का आविष्कार किया तो लोग अंधेरी रात में भी उजाले का अहसास करने लगे. आम इंसान की जिंदगी में यह एक चमत्कार की तरह रहा.
किसी ने कंप्यूटर बनाया, किसी ने मोबाइल, किसी ने टेलीविजन तो किसी ने इंटरनेट ईजाद किया और इसमें कोई दो राय नहीं कि इन आविष्कारों से लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया. तो क्या हम एलन मस्क के आविष्कारों को ऐसी उपलब्धि के तौर पर देख सकते हैं? सैटेलाइट इंटरनेट (Satellite Internet) के बाद एलन मस्क दिमाग को पढ़ने वाली जिस मशीन (Mind Reading Machine) को लाने की बात कर रहे हैं. वह साइंस की सबसे बड़ी कामयाबी हो सकती है, लेकिन यह इंसानी जिंदगी की सूरत को कितना बेहतर बनाएगा यह अभी भविष्य के गर्त में है. तमाम तरह की आशंकाएं भी है. इस बारे में जितनी मुंह उतनी बातें की जा रही हैं, जिसे समझना बेहद जरूरी है.
एडवेंचरस इन्वेंशन को जीते हैं एलन मस्क
स्पेसऐक्स, टेस्ला, सोलर सिटी आदि की बात तो छोड़ ही दीजिए, स्टारलिंक, हाइपरलूप, बोरिंग कंपनी, ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ही बात करें तो सिवा अमीर लोगों के इससे आम आदमी की जिंदगी में क्या बदलाव आया? खैर रात गई बात गई की तर्ज पर हम इसे भी छोड़ते हैं. बात हम ट्वीटर की भी नहीं करेंगे क्योंकि यहां भी वह इस बात को स्थापित करने में लगे हैं कि जो जैसा सोचता है वैसा ही उसे ट्वीटर पर अभिव्यक्त करने की आजादी मिले. लेकिन एलन मस्क इस बात को भी जानते हैं कि इस अभिव्यक्ति की आजादी की भी अपनी सीमाएं हैं. इसे अपने-अपने तरीके से सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर एक टूलकिट की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है और किया भी जा रहा है. तो बात इससे भी बनने वाली नहीं है और शायद इसीलिए वह एक ऐसी मशीन बनाने की प्रक्रिया के अंतिम दौर में प्रवेश कर चुके हैं जो दिमाग को पढ़ सकता है.
दिमाग को एक चिप के जरिए कंट्रोल किया जा सकता है. मस्क अगर ऐसा कर पाएं तो निश्चित तौर पर यह साइंस की बड़ी कामयाबी हो सकती है, लेकिन यह कामयाबी उन लोगों की भी बड़ी जीत होगी जो दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना चाहते हैं. यह उन लोगों की बड़ी जीत होगी जो नई वैश्विक व्यवस्था यानी न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को स्थापित करना चाहते हैं. यह उन लोगों की भी बड़ी जीत होगी जो दुनिया को अपने हिसाब से कंट्रोल करना चाहते हैं. ऐसे में मस्क का यह दावा सिर्फ एक छलावा है कि इस तकनीक से ऑटिज्म और सिजोफ्रीनिया का इलाज संभव हो जाएगा. याददाश्त घटने, डिप्रेशन या नींद न आने जैसी परेशानियां इस तकनीक से दूर की जा सकेंगी. इसका असल मकसद तो इंसानी दिमाग पर कब्जा करना है. जब कब्जा करने की तकनीक आपके हाथों में आ जाएगी तो उसपर काबू पाना आसान हो जाएगा. और तब ये आइडिया कितना खतरनाक हो जाएगा, आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.
क्या है न्यूरालिंक ब्रेन चिप की पूरी कहानी?
हमारे-आपके जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हम-आप कुछ सोचते हैं, लेकिन उसे करने से पहले ही भूल जाते हैं. कोई बेहद महत्वपूर्ण काम या कोई पासवर्ड अचानक दिमाग से गायब हो जाता और फिर उसे याद करना मुश्किल हो जाता है. एलन मस्क का दावा है कि न्यूरालिंक ब्रेन चिप डिवाइस का इस्तेमाल याददाश्त को बढ़ाने, ब्रेन स्ट्रोक या अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारी से ग्रस्त मरीजों में किया जाएगा. इसके अलावा लकवाग्रस्त मरीजों के लिए भी यह फायदेमंद साबित होगी. इस डिवाइस के जरिए मरीज के दिमाग को पढ़ा जा सकेगा और डेटा को एकत्रित किया जा सकेगा.
लेकिन इसी डेटा संग्रह की कहानी से शुरू होती है, इस ब्रेन चिप के मकसद की असल कहानी. 21वीं सदी में डेटा की ताकत सबसे अहम हो गई है. डेटा की ताकत न सिर्फ सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक सत्ता दिलाती है. बल्कि राजनीतिक सत्ता दिलाने में भी यह अहम भूमिका निभा रही है. ऐसे में अगर इंसानी दिमाग को पढ़ पाने और उसके कंट्रोल करने की चाबी इंसान के हाथ लग जाए तो वह कितना खतरनाक खेल, खेल सकता है इसका अंदाजा लगाना कठिन है. एलन मस्क दरअसल इंसानी दिमाग को मशीन से जोड़ना चाहते हैं. अभी हम या तो हाथ से मशीन कंट्रोल करते हैं या आवाज से. मस्क को लगता है कि मशीन से संवाद करने का ये तरीका धीमा है. हम सीधे अपने दिमाग से ही मशीन को क्यों नहीं कंट्रोल कर सकते हैं.
इसके लिए मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ब्रेन-मशीन इंटरफेस तैयार कर रही है. यानी ऐसी टेक्नोलॉजी कि एक चिप आपके ब्रेन में लगाने के बाद आपका दिमाग मोबाइल, कंप्यूटर या अन्य मशीनों से जुड़ जाएगा. न्यूरालिंक ब्रेन चिप की कहानी इतनी ही है. हालांकि कुछ न्यूरोसर्जन की मानें तो एलन मस्क की चिप दिमाग के सिग्नल को रिकॉर्ड तो आसानी से कर लेगी, लेकिन उन्हें डिकोड करना एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि, कोई भी अभी तक शत-प्रतिशत न्यूरोन की भाषा को समझ नहीं पाया है. शायद ईश्वर ने इसे सिर्फ इंसान के शरीर की बाकी सेल्स की समझ के लिए ही बनाए हैं.
कैसे काम करेगा न्यूरालिंक ब्रेन चिप?
न्यूरालिंक ब्रेन चिप टेक्नोलॉजी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की दुनिया को विकसित करने की तरफ एलन मस्क का एक और क्रांतिकारी कदम है. न्यूरालिंक टेक्नोलॉजी ऐसे न्यूरल इम्प्लांट को विकसित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है जिससे इंसानी दिमाग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सिंक्रोनाइज करके कम्प्यूटर्स, कृत्रिम शारीरिक अंग और दूसरी मशीनों को सिर्फ सोचने भर से चलाया जा सके. इसके लिए विकसित की जा रही डिवाइस बेहद छोटी होगी. शायद इसका आकार नाखून के बराबर हो सकता है और ये बैटरी से ऑपरेट होगी. इसमें इस्तेमाल होने वाले तार इंसान के बालों से भी कई गुना पतले होंगे.
इस डिवाइस को दिमाग के अंदर इम्प्लांट किया जाएगा. माना जा रहा है कि इस ब्रेन चिप की मदद से इंसान बिना हिले-डुले किसी भी मशीन को कंट्रोल कर सकता है. हालांकि अभी इसका ट्रायल किसी भी इंसान पर नहीं किया गया है. इसका इस्तेमाल अभी सिर्फ सूअर और बंदरों पर किया गया है. लेकिन इस चिप की मदद से वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि तरह-तरह की गतिविधियां करते वक्त जानवरों के दिमाग में किस तरह के बदलाव होते हैं.
अब बात न्यूरालिंक ब्रेन चिप के नफा-नुकसान की
एलन मस्क का दावा है कि उनका मिशन सफल रहा तो इंसान की सोचने-समझने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी. व्हीलचेयर हो या ड्रोन, कंप्यूटर से जुड़ी किसी भी चीज को चलाने के लिए हाथ हिलाने की जरूरत नहीं रह जाएगी. आदमी सोचेगा और चीजें काम करने लग जाएंगी. अगर ऐसा हो सका तो अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियों के मरीजों की जिंदगी बदल जाएगी, रीढ़ की चोट से लाचार मरीजों को नया जीवन मिल जाएगा. एलन मस्क के दावे बेशक कई बीमारियों के इलाज को लेकर उम्मीद तो जगाते हैं, लेकिन इस पूरी कहानी में कई डरावनी चुनौतियां और कई सवाल भी हैं. न्यूरोसाइंस के दिग्गजों का कहना है कि दिमाग की सर्जरी बेहद नाजुक होती है और इसे आखिरी उपाय के तौर पर आजमाया जाता है. किसी भी सेहतमंद इंसान की ब्रेन सर्जरी सिर्फ इसलिए की जाए कि वह सुपरकंप्यूटर का मुकाबला करना चाहता है, यह बात पचती नहीं है, क्योंकि इसमें रिस्क बहुत ज्यादा होगा. जान भी जा सकती है.
जैसा कि मस्क का दावा है कि ऐसे चिप से दुनियाभर की जानकारियां दिमाग में डाउनलोड की जा सकेंगी और इस पूरी मेमोरी को रीप्ले किया जा सकेगा. सोचिए! अगर तमाम लोग ऐसा करने लगे तो उनका दिमाग क्या कर रहा होगा? जब हर फाइल, हर किताब, हर सवाल का जवाब उस चिप के जरिए मिलने लगेगा तो क्या दिमाग सुस्त नहीं पड़ जाएगा? कहने का मतलब यह कि क्या यह कमजोरी इंसानी डीएनए में स्थापित नहीं हो जाएगी और आगे चलकर पूरी मानव जाति की सोचने-समझने की ताकत कमजोर नहीं कर देगी? सर्च इंजन गूगल इसका नायाब उदाहरण है. तीन साल का बच्चा भी अपना दिमाग लगाना छोड़ दिया है और अपनी हर उलझनों को गूगल के जरिये ही सुलझा रहा है.
एक और बड़ा खतरा जुड़ा है चिप के ब्रेन इंप्लांट से. अभी जिस तरह क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड डेटा से लेकर पर्सनल मेडिकल हिस्ट्री तक हैक करने की खबरें आती हैं, पूरा का पूरा अकाउंट खाली हो जाता है, हो सकता है न्यूरालिंक के इस ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस को भी हैक कर लिया जाए. अगर इंसानी दिमाग से जुड़े कंप्यूटर इंटरफेस को हैक कर लिया गया तो सोचिए फिर क्या होगा? अगर चिप इम्प्लांट वाले इंसानों के एक बड़े हुजूम को किसी पर हमला करने या किसी दूसरी बेअदबी के लिए निर्देश दे दिया जाए तो उस हालत से कैसे निपटा जाएगा? खतरा यह भी है कि इसी चिप के चलते इंसान ही मशीन बन जाए और ऐसी मशीनों को कुछ बददिमाग लोग कंट्रोल करने लगें तो क्या होगा. बहुत हद तक ये काम आज भी सोशल मीडिया और हिप्नोटिज्म विधा से किया भी जा रहा है.
बहरहाल, न्यूरालिंक ब्रेन चिप की पूरी कहानी को पढ़ने और समझने के बाद एक बात तो तय है कि अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसे साइंस की सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर आंका जाएगा, लेकिन इसका नकारात्मक पहलू हावी हुआ जिसका अंदेशा ज्यादा है तो यह पूरी मानव जाति के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा देगा. विकास एक सतत प्रक्रिया है जो होते रहना चाहिए, लेकिन इसमें एक बात ध्यान रखने की है कि यह सब मानवता के लिए हो ना कि मानवता की कीमत पर. मशीन विकास का एक जरिया हो सकता है जिसे आदमी चलाता है, लेकिन अगर यही मशीन आदमी को चलाने लगे, उसे कंट्रोल करने लगे जो मौजूदा दौर में बहुत हद तक होने भी लगा है तो इंसान के वजूद को बनाए रखना शायद मुश्किल हो जाएगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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