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अल्लामा इकबाल ने अपने मशहूर तराने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा में एक जगह लिखा है
रंजीव |
अल्लामा इकबाल ने अपने मशहूर तराने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा में एक जगह लिखा है, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी इकबाल साहब ने यह बात भारत की हस्ती के संदर्भ में लिखी थी लेकिन वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी इन दिनों उनके तराने की ये लाइनें खूब चर्चा में आ रही है जिसके केन्द्र बिंदु हैं समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के वरिष्ठ नेता और रामपुर के विधायक आजम खान (Azam khan) जो बीते करीब 2 साल से सीतापुर जेल में बंद हैं. तब जबकि जेल जाने के बाद आजम खान के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान खड़े होने लगे थे, लेकिन 2022 के चुनाव नतीजों के बाद जो हालात बन रहे हैं उससे यही लग रहा है कि आजम खान की हस्ती इतनी जल्दी मिट नहीं सकती. रामपुर से दसवीं बार विधायक चुने गए आजम खान इन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति (UP Politics) के सबसे चहेते व्यक्तित्व साबित हो रहे हैं और हर सियासी पाले को आजम खान का साथ चाहिए. दरअसल यह हालात विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद तब बने जब समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई लेकिन आजम खान रामपुर से भारी मतों से जेल में रहने के बाद भी चुनाव जीत गए. चुनाव नतीजे आने के साथ ही चर्चाएं तेज होने लगीं कि आजम खान सपा नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं. इस बात को तब और बल मिला जब समाजवादी पार्टी के मुस्लिमों के साथ न खड़े होने के आरोप सार्वजनिक रूप से खुद आजम खान के मीडिया प्रभारी ने लगाए.
क्या आजम खान सपा के नेतृत्व से नाराज हैं
उससे पहले मुस्लिम समाज के तबके के बीच से ऐसी आवाजें मुखर होने लगीं थीं कि समाजवादी पार्टी ने उनका वोट तो पा लिया लेकिन उनके साथ खड़े होने से कतराती है. इन्हीं बातों के दौर में आजम खान के मीडिया प्रभारी ने ऐसी ही बातें कहीं तो स्पष्ट रूप से माना गया कि वाकई आजम खान सपा के नेतृत्व से नाराज हैं. इस आग में घी तब पड़ी जब सपा नेतृत्व से नाराज चल रहे प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के नेता जसवंत नगर के विधायक शिवपाल सिंह यादव सीतापुर जेल जाकर आजम खान से करीब डेढ़ घंटे तक मिले. जिसका निष्कर्ष यह निकला कि शिवपाल और आजम, जो कि मुलायम सिंह यादव के दौर की सपा के स्थापित नेता रहे हैं, वे वर्तमान सपा नेतृत्व के खिलाफ जुगलबंदी के प्रयास में लगे हैं. शिवपाल यादव को आजम खान का साथ इसलिए चाहिए क्योंकि वह सपा से अलग होकर अपनी पार्टी बना कर यह देख चुके हैं कि उसका कोई खास असर नहीं हुआ. लिहाजा उन्हें आजम खान जैसा एक बड़ा मुस्लिम चेहरा चाहिए जो सपा के समानांतर प्रसपा के पक्ष में यादव- मुसलमान (एमवाई) गठबंधन बनाने में मददगार हो.
ओवैसी ने भी आजम पर डाले थे डोरे
फिलहाल यह नहीं पता कि आजम खान ने शिवपाल यादव को क्या आश्वासन दिया है लेकिन डेढ़ घंटे तक चली मुलाकात में बस हाल-चाल तो नहीं पूछा गया होगा इतना तय है.अकेले शिवपाल ही आजम को अपने साथ नहीं पाना चाहते बल्कि उनके जेल जाकर मुलाकात करने से पहले जब आजम के नाराज होने की खबरें मीडिया में आने लगी थीं तब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के एक नेता की ओर से आजम खान को पार्टी में शामिल होने का न्योता देते हुए पत्र लिखा जा चुका था. ओवैसी को आजम खान जैसा चेहरा इसलिए चाहिए ताकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी एंट्री ठीक-ठाक तरीके से हो सके.
ओवैसी यूपी की राजनीति में मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद बनकर उभरने के तमाम प्रयास कर रहे हैं लेकिन इसमें उन्हें अभी तक कामयाबी नहीं मिली है. अलबत्ता उन पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप जरूर चस्पा होता रहा है. लिहाजा उन्हें भी आजम खान जैसे एक ऐसे विश्वसनीय नेता की जरूरत है जिसका भाजपा से टकराते रहने का अतीत रहा है. ऐसे समय में जबकि शिवपाल और ओवैैसी की पार्टी आजम खान पर डोरे डाल रही हैं तो समाजवादी पार्टी को भी लगा कि कहीं वाकई आजम जैसा कद्दावर मुस्लिम चेहरा हाथ से ना निकल जाए. लिहाजा रविवार को अखिलेश यादव के प्रतिनिधि के तौर पर सपा नेताओं का एक समूह लखनऊ से सीतापुर जेल पहुंचा और आजम खान से मुलाकात करने की कोशिश की लेकिन जो खबरें सामने आई हैं उनके मुताबिक आजम ने सपा नेताओं से मुलाकात करने से इनकार कर दिया. सपा प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं के मुताबिक तबीयत ठीक ना होने के कारण आजम खान ने मिलने से इनकार कर दिया
आजम खान खांटी समाजवादी हैं और वह कहीं नहीं जाएंगे
हालांकि सपा के नेता आजम खान के इनकार को नाराजगी मानने को तैयार नहीं हैं. उनका दावा है कि आजम खान खांटी समाजवादी हैं और वह कहीं नहीं जाएंगे. आजम खान का अगला सियासी कदम चाहे जो हो लेकिन इस पूरे प्रकरण में सबसे खास बात यह है कि न सिर्फ उत्तर प्रदेश की राजनीति का विपक्षी पाला बल्कि खुद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी आजम खान को पर्याप्त तवज्जो दे रही है. हाल ही में कैसरगंज से भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने यह कहा है कि वह भी सीतापुर जेल जाकर आजम खान से मिलेंगे. इससे पहले आजम खान के समर्थक यह कहते रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कहना सही है कि अखिलेश यादव ही नहीं चाहते हैं कि आजम खान जेल से बाहर आएं. स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी भी आजम खान पर अतिरिक्त प्रेम उड़ेल कर दरअसल विरोधी खेमे, खासतौर पर समाजवादी पार्टी के अंदर घमासान को और बढ़ाने की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अनार सौ बीमार की भूमिका में आए आजम खान अगर वाकई समाजवादी पार्टी छोड़ कर कोई नया रास्ता अपनाते हैं तो यह निश्चित रूप से बहुत बड़ा घटनाक्रम होगा. खास तौर पर इसलिए भी क्योंकि साल 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से हाथ मिलाया था और उन्हें सपा की लाल टोपी पहनाई थी तो आजम खान पार्टी नेतृत्व से बेहद खफा हुए थे. उन दिनों सपा में अमर सिंह का दौर चलता था और अमर सिंह ने कल्याण सिंह वाले प्रकरण को मुद्दा बनाकर मुलायम को यह समझाने में कामयाबी हासिल कर ली थी कि आजम खान को पार्टी से निकाला जाना चाहिए जिस पर मुलायम सिंह ने कार्रवाई करते हुए आजम खान को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था.
सपा से निष्कासन के दौरान अपना कोई अलग रास्ता नहीं पकड़ा था
यह बात दीगर है कि तब भी आजम खान ने उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों का दौरा किया था और इसकी थाह लेने की कोशिश की थी कि क्या वह नई पार्टी बना लें? बताया जाता है कि तब उनके ज्यादातर सिपहसालारों ने ऐसा ना करने की सलाह दी थी लिहाजा आजम ने सपा से निष्कासन के दौरान अपना कोई अलग रास्ता नहीं पकड़ा था. बाद में बदली परिस्थितियों में अमर सिंह खुद ही सपा से बाहर कर दिए गए थे और आजम खान की सपा में ससम्मान वापसी हुई थी. लखनऊ में समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर आजम खान की वापसी पर बड़ा समारोह हुआ था और मुलायम और आजम खान मंच पर खासे भावुक भी हुए थे.
Rani Sahu
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