सम्पादकीय

क्या हुड्डा की राह चलकर अमरिंदर सिंह की भी जिद के आगे जीत होगी?

Tara Tandi
5 July 2021 10:43 AM GMT
क्या हुड्डा की राह चलकर अमरिंदर सिंह की भी जिद के आगे जीत होगी?
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क्या हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने प्रदेश के बाहर भी किसी के प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं?

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | क्या हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) अपने प्रदेश के बाहर भी किसी के प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं? सवाल ज़रा अटपटा ज़रूर लगता है पर इसका उत्तर हां में है. हुड्डा किसी और के नहीं बल्कि, पड़ोसी राज्य पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (CM Amarinder Singh) के प्रेरणा स्रोत ज़रूर बने हुए दिखते हैं. साल 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हुड्डा ने बगावती तेवर दिखा कर यह साबित कर दिया था कि जिद के आगे जीत भी होती है. लगातार वह अपना शक्ति प्रदर्शन करते रहे और अपरोक्ष रूप से कांग्रेस पार्टी में विभाजन की धमकी देते रहे जिसके कारण पार्टी आलाकमान को उनकी जिद के आगे झुकना ही पड़ा. चुनाव के ठीक पहले अशोक तंवर को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया.

ऐसा ही कुछ अब पंजाब में भी दिख रहा है. हुड्डा की ही तरह अब अमरिंदर सिंह भी चुनाव के ठीक पहले किसी युवा नेता का विरोध करते दिख रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि जहां हुड्डा, तंवर को अध्यक्ष पद से हटाने की जिद पर अड़े थे, अमरिंदर सिंह युवा नेता नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को प्रदेश अध्यक्ष ना बनाने की जिद पर अड़ गए हैं. सिद्धू और सिंह की लड़ाई पिछले दो वर्षों से चल रही है. सिंह ने सिद्धू से उनका पसंदीदा मंत्रालय छीन लिया और सिद्धू ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. पिछले कुछ महीनों से सिद्धू और सिंह के बीच चल रही जंग में पार्टी आलाकमान को हस्तक्षेप करना पड़ा. दोनों को पार्टी आलाकमान द्वारा गठित तीन सदस्यों वाली कमिटी के सामने पिछले महीने पेश होना पड़ा और फिर पिछले हफ्ते सिद्धू की कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी और पार्टी के युवराज राहुल गांधी से मिलने को बुलाया गया.
क्या पंजाब में बगावत तय है?
फिर प्रियंका और राहुल की मुलाकात पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुई. सिद्धू और सिंह के कारण ही सही, गांधी परिवार काफी समय के बाद इकट्ठा तो हुआ. खबर आयी की सिद्धू को या तो प्रदेश अध्यक्ष या फिर कैंपेन कमिटी का अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा, जो अमरिंदर सिंह को मंज़ूर नहीं है. हो भी कैसे जब सिद्धू उन्हें फूटी आंख भी नहीं सुहाते. पिछले कुछ दिनों से मीडिया में खबर चलनी शुरू हो गयी हैं कि सिद्धू को किसी पद देने की अवस्था में सिंह के समर्थक बगावत कर देंगे और पंजाब में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो जाएगा. कोई खुल कर नहीं बोल रहा है और बिना उन नेताओं का नाम लिए उनका धमकी भरा बयान आ रहा है कि पार्टी का विभाजन सिद्धू को पद देने के कारण निश्चित है.
गांधी परिवार दो सिख नेताओं की लड़ाई में बुरी तरह उलझ गयी है. अगर सिद्धू को सम्मानजनक पद नहीं दिया गया तो वह और कुछ अन्य बागी विधायक किसी विरोधी दल, संभवतः आम आदमी पार्टी में शामिल हो जायेंगे, और सिद्धू को अगर पद दिया गया तो सिंह के समर्थकों का पार्टी विभाजन की धमकी. कांग्रेस पार्टी, या यह कहें कि गांधी परिवार के सामने विकट समस्या आ गयी है, एक तरफ आग और दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति बन गयी है. सिद्धू अगर कांग्रेस पार्टी छोड़ते हैं तो शायद पार्टी अगले वर्ष के शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत नहीं पाएगी और अगर पार्टी का विभाजन हो गया तो कांग्रेस पार्टी निश्चित तौर पर चुनाव हार जाएगी. अगर एक और राज्य कांग्रेस पार्टी के हाथों से निकल गया तो फिर गांधी परिवार के 2024 में पार्टी के युवराज को देश का बादशाह बनाने का सपना चकनाचूर हो जाएगा.
पुत्रमोह में फंस गए हैं कैप्टन?
इस पर कोई विवाद नहीं है कि अमरिंदर सिंह, सिद्धू को पसंद नहीं करते. पर उनकी सबसे बड़ी समस्या है कि सिद्धू को किसी सम्मानजनक पद देने की अवस्था में सिद्धू को सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगेगा. सिंह चुनाव सम्पन्न होते-होते 80 वर्ष के हो जायेंगे. एक तो उनकी रगों में बहता राजशाही खून और दूसरी तरफ यह मान लिया जाना कि कांग्रेस पार्टी के पास पंजाब में उनसे ज्यादा बड़ा और लोकप्रिय कोई और नेता नहीं है, इस स्थति और इस उम्र में किसी का जिद्दी हो जाना स्वाभाविक है, खासकर तब जब उस बुजुर्ग नेता के आस-पास चापलूसों की जमात हो जो सिद्धू के खिलाफ रोज उनका कान भरते रहते हैं.
यह दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि अमरिंदर सिंह अकाली दल, बीजेपी या फिर आम आदमी पार्टी से बड़ा दुश्मन सिद्धू को मानने लगे हैं. सिद्धू सिंह के पुत्र समान हैं और दोनों का ताल्लुक पटियाला शहर से है. सिद्धू मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी नहीं कर रहे हैं और अमरिंदर सिंह ने कोई अमृत भी नहीं पी रखा हैं कि वह अमर हों. ऐसे में उनसे यही उम्मीद की जानी चाहिए थी कि वह खुद सिद्धू को अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार करते. पर लगता है कि हुड्डा की ही तरह अमरिंदर सिंह भी पुत्र मोह में डूब गये हैं और उन्हें पार्टी की चिंता कम और अपने बेटे की चिंता ज्यादा सताने लगी है. अगली पीढ़ी के किसी अन्य नेता का कद अगर बड़ा हो जाता है तो इससे अमरिंदर सिंह के एकलौते पुत्र रनिंदर सिंह का भविष्य ख़राब हो सकता है. रनिंदर फिलहाल पटियाला राजघराने के युवराज हैं. राजनीति में रूचि रखते हैं पर बार-बार चुनाव हार जाते हैं, चाहे वह चुनाव लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का. शायद अमरिंदर सिंह की इच्छा है कि एक ही साथ वह पटियाला का ताज और पंजाब की कुर्सी अपने पुत्र को सौंप दें. पटियाला का सांकेतिक ताज मिलने से कोई भी रनिंदर सिंह को रोक नहीं सकता है, पर भविष्य में सिद्धू के रहते पंजाब की कुर्सी पटियाला के युवराज को शायद ना मिले.
कांग्रेस पार्टी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव भारी होने वाला है
कांग्रेस पार्टी के लिए यह किसी त्रासदी से कम नहीं है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी को आगे रखने की चाहत में, हुड्डा अपने सांसद पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा के कारण और अमरिंदर सिंह राजनीति में विफल रहे अपने बेटे रनिंदर सिंह के कारण पार्टी का अहित कर रहे हैं. परिवारवाद कांग्रेस पार्टी के लिए नासूर बन गया है. जब पार्टी के बड़े नेता, चाहे वह केंद्र में हो या राज्य में, पार्टी हित से ज्यादा परिवार हित को तवज्जो देने लगते हैं तो फिर उनका हश्र वही होता है जो अभी कांग्रेस पार्टी में हो रहा है, पार्टी इतिहास बनने के कगार पर आ गयी है.
देखना दिलचस्प होगा कि किस मुंह से गांधी परिवार अमरिंदर सिंह को समझाएगा कि वह पुत्र की भविष्य से पहले पार्टी की भविष्य के बारे में सोचें, और क्या अमरिंदर सिंह मान जायेंगे? उससे भी ज्यादा दिलचस्प होगा कि क्या हुड्डा की ही तरह अमरिंदर सिंह की भी जिद के आगे जीत होगी और पार्टी आलाकमान उनके सामने घुटने टेक देगा? ऐसा प्रतीत होने लगा है कि आतंरिक कहल कांग्रेस पार्टी के लिए पंजाब के अगले चुनाव में काफी भारी पड़ सकता है.


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