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सम्पादकीय
यूपी में अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल मिलकर दे पाएंगे योगी आदित्यनाथ की सत्ता को चुनौती?
Tara Tandi
4 July 2021 12:39 PM GMT
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समाजवादी पार्टी ने पिछले दिनों ‘खेला होई’ का नारा दिया.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अश्विनी कुमार | समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने पिछले दिनों 'खेला होई' का नारा दिया. नारा बेशक ममता के 'खेला होबे' के नारे की कॉपी करके गढ़ा गया है. लेकिन शनिवार को लखनऊ में एक ऐसी तस्वीर दिखी, जो 'खेला होई' के समाजवादी नारे को बल दे गई. आप के सांसद संजय सिंह अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से मिले. सिर्फ मिले ही नहीं, अखिलेश की तारीफ भी की. तारीफ ही नहीं की, अखिलेश और अरविंद में समानताएं भी बता दीं. और जब इतना कुछ कर ही दिया, तो गठबंधन के संकेत भी दे गए.
यूपी का मतदाता खेमों में बंटा और बांटा जाता रहा है. ऐसे में यूपी की पार्टियों के बीच का कोई भी गठबंधन उतना काम नहीं करता, जितना कागजों पर दिखता है. मसलन, एसपी-बीएसपी (SP+BSP) साथ आ भी गए, तो दोनो के परंपरागत वोटरों ने एक दूसरे को खुलकर वोट नहीं किया. क्योंकि इनके बीच दुराव, मनमुटाव और अविश्वास का लंबा इतिहास रहा है. लेकिन समाजवादी-आप गठजोड़ (SP+AAP Alliance) में ऐसी कोई समस्या नहीं दिखती.
मोहभंग को प्राप्त मतदाताओं का आसरा
जाति की राजनीति, धर्म की राजनीति, बाहुबल का इस्तेमाल, करप्शन और घपले-घोटाले, तुष्टिकरण. यूपी में राजनीति करने वाली हर पार्टी पर इनमें से कोई न कोई आरोप चस्पा है. ऐसे में इन चीजों से आजिज आए और मोहभंग की स्थिति में पहुंचे मतदाताओं के एक वर्ग के लिए आम आदमी पार्टी नया ठिकाना हो सकती है. बेशक, इसका लाभ अखिलेश को भी मिल सकता है.
छोटी पार्टियों के बीच आकर्षण बढ़ेगा
वैसे तो बीजेपी विरोधी तमाम पार्टियों के बीच मौजूदा वक्त में समाजवादी सबसे मजबूत दिख रहे हैं. लेकिन आप के साथ आने से अखिलेश की पार्टी की ये बढ़त और मजबूत होगी. भले ही आप का कोई मजबूत आधार प्रदेश में न हो, देश की राजनीति पर केजरीवाल के मनोवैज्ञानिक असर को नकारा नहीं जा सकता. इसका फायदा अखिलेश छोटी-छोटी पार्टियों को अपनी ओर आकर्षित करने में भी उठा सकते हैं.
आप को सिर्फ फायदा…खोने को कुछ नहीं
वजूद में आने के साथ ही केजरीवाल की महत्वाकांक्षा आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की रही है. लेकिन अपेक्षित सफलता का अभी इंतजार ही है. रही बात यूपी की, तो यहां अब विधानसभा चुनाव में इतना वक्त बाकी नहीं रहा है कि आप का संगठन खड़ा हो और पार्टी अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करा पाए. ऐसे में समाजवादियों के संगठन के बूते राज्य में शुरुआती पैठ बनाने का ये अच्छा मौका केजरीवाल के पास है.
'गुड गवर्नेंस' की केजरीवाल की छवि का लाभ
मुलायम की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी विशुद्ध रूप से जाति पर आधारित एक दबंग पार्टी की छवि लेकर चली. लेकिन अखिलेश ने 5 साल में इस इमेज को काफी हद तक तोड़ा. खुद की छवि काम करने वाले शासक की बनाई. सरकारी कामकाज में पिता को इग्नोर कर और संगठन में चाचा को ठिकाने लगाकर पार्टी की पुरानी छवि को तोड़ने का साहसिक प्रयास किया. अब केजरीवाल के साथ जाकर अखिलेश अपनी इस छवि को और मजबूत कर सकते हैं.
एनडीए के मुकाबले का गठबंधन
फिलहाल यूपी में तस्वीर बहुकोणीय मुकाबले की है. बीएसपी पहले से कमजोर बताई जा रही है, लेकिन वोटरों के एक खास वर्ग पर उसका अभी भी मजबूत दावा है. कांग्रेस भी प्रियंका के दम पर खोई जमीन तलाशने की जी तोड़ कोशिश कर रही है. मल्टीपोलर चुनाव की यह स्थिति बीजेपी के लिए मुफीद मानी जा रही है. ऐसे में भगवा खेमे को 2022 में यूपी की जमीन पर चुनौती देने की पहली शर्त ही यही है कि वोटों को बंटवारा और बिखराव रुके. यह तभी संभव है जब कोई एक पार्टी या गठबंधन बाकी बीजेपी विरोधी पार्टियों से साफ-साफ आगे दिखे. समाजवादी+आप+कुछ छोटी पार्टियों का मेल इस पैमाने पर खरा उतर सकता है
मौकापरस्ती वाला गठबंधन Vs मजबूत गठबंधन
यूपी की तमाम बड़ी पार्टियां इस वक्त छोटी-छोटी पार्टियों को रिझाने में लगी हैं. इस काम में फिलहाल बीजेपी सबसे आगे है. निषाद पार्टी और अपना दल ही नहीं बीजेपी उन ओमप्रकाश राजभर को भी चिरौरी कर रही है, जो योगी सरकार में रहते हुए भी उनकी मुखालफत करते रहे और अलग होने के बाद तो हद से आगे जाकर कुछ भी कहते रहे. अखिलेश की कोशिश भी छोटी पार्टियों को साथ लाने की है. वह इसका ऐलान भी कर चुके हैं. लेकिन दूसरा सच यह भी है कि इन छोटी पार्टियों की मौकापरस्ती और जात-पात वाली छवि के मुकाबले आप के साथ जाना अखिलेश को अपेक्षाकृत ज्यादा आत्मविश्वास का बल भी देगा और इस गठबंधन की छवि को भी मजबूत करेगा.
जय श्रीराम vs जय बजरंगबली!
दिल्ली में बीजेपी के 'जय श्रीराम' का मुकाबला केजरीवाल ने 'जय बजरंगबली' से किया. भगवान वैसे भी खुद के ऊपर भक्तों को तरजीह देते हैं! बजरंगबली का नाम लेकर केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता उतनी ही मजबूती से बरकरार रखी. यूपी चुनाव में राम के नाम का कितना जोर रहने वाला है ये बताने की जरूरत नहीं. ऐसे में दिल्ली में 'जय बजरंगबली' के नारे के साथ बीजेपी की चुनौती को झुकाने वाले केजरीवाल यूपी की जमीं पर अखिलेश के लिए निश्चित ही बड़े कारगर हथियार हो सकते हैं. वैसे सवाल ये भी रहेगा कि केजरीवाल का 'सॉफ्ट हिन्दुत्व' अखिलेश के अल्पसंख्यक वोटों को प्रभावित तो नहीं करेगा?
वन टू वन मुकाबले में भारी केजरीवाल
केजरीवाल का दिल्ली में दो बार सत्ता के लिए वन टू वन मुकाबला बीजेपी से हुआ. दोनों ही बार केजरीवाल एकतरफा तरीके से जीते. हालांकि, लोकसभा चुनाव में दिल्ली में दोनों ही बार (2014 और 2019) बीजेपी 7-0 से जीती, बनारस में तो केजरीवाल सीधे पीएम मोदी से ही पिटे. लेकिन लोकसभा के इन चुनावों में केजरीवाल सत्ता हासिल करने के संघर्ष में नहीं थे. हां, पंजाब में केजरीवाल ने सत्ता के लिए संघर्ष करते हुए बीजेपी-अकाली गठबंधन को तीसरे पायदान पर धकेल कर दूसरा स्थान जरूर हासिल किया. इस ट्रैक रिकॉर्ड के साथ यूपी के समर में स्थानीय जमीन पर मजबूत समाजवादियों के साथ केजरीवाल के उतरने का प्रभाव जरूर दिख सकता है.
खेल मारक भी होगा और दिलचस्प भी
तो तैयार हो जाइए, देश के सबसे बड़े सूबे की सबसे दिलचस्प फाइट के लिए. वैसे भी मुकाबले में मजा तभी आता है, जब टक्कर बराबरी की हो. ये वक्त टीमों के वार्मअप, नेट प्रैक्टिस और आखिरी प्लेइंग इलेवन तैयार करने का है. जिसमें टीमें बखूबी जुट चुकी हैं. इसी कड़ी में अखिलेश ने अपनी टीम में केजरीवाल को जोड़ने का ट्रंप कार्ड खेला है. सफलता मिली, तो यूपी का 'खेला' मारक भी होगा और दिलचस्प भी
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