सम्पादकीय

हादसों की भेंट चढ़ते वन्यजीव

Subhi
12 Sep 2022 4:14 AM GMT
हादसों की भेंट चढ़ते वन्यजीव
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जिस तरह जंगल कट और नए-नए शहर बसाए जा रहे हैं, वन्य जीवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हादसों पर रोक लगाने के साथ शिकारियों में भय पैदा करने के लिए कानून को और कठोर तथा असरकारी बनाना होगा। पर, इससे भी ज्यादा जरूरी है, वन्य जीवों के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाने के लिए जन जागरूकता लाना।

अखिलेश आर्येंदु: जिस तरह जंगल कट और नए-नए शहर बसाए जा रहे हैं, वन्य जीवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हादसों पर रोक लगाने के साथ शिकारियों में भय पैदा करने के लिए कानून को और कठोर तथा असरकारी बनाना होगा। पर, इससे भी ज्यादा जरूरी है, वन्य जीवों के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाने के लिए जन जागरूकता लाना।

पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया पर वन्य जीवों की दर्दनाक मौत के अनेक चित्र देखने और अनेक घटनाओं के समाचार पढ़ने को मिले। स्वाभाविक रूप से सवाल उठा कि क्या वन विभाग या पुलिस इन्हें बचाने के लिए कोई पहल नहीं करती? अगर कानून हैं तो उनका पालन क्यों कड़ाई से नहीं कराया जाता, जिससे वन्य जीवों के साथ ऐसे रूह कंपा देने वाले हादसे न हों।

गौरतलब है कि दस साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने वन्य जीवों के संरक्षण के मद्देनजर जब पर्यटन के नाम पर बढ़ती शिकार की घटनाओं को लेकर दिशा-निर्देश जारी किया था, तब ऐसा लगा था कि वन्य जीवों का संरक्षण अब सही तरीके से हो पाएगा। अवैध तरीके से वन्य जीवों के शिकार का सिलसिला रुक जाएगा। मगर पिछले दस सालों में वन्य जीवों की घटती संख्या चिंता का सबब बनती रही है। सरकार के कारगर कदम और कठोर कानून की वजह से वन्य जीवों के शिकार में कमी तो आई है, लेकिन इनकी हादसों में हो रही मौतों ने वन्य जीव संरक्षण पर सवालिया निशान लगा दिया है।

केंद्र द्वारा जारी ताजा जानकारी के मुताबिक 2012 से लेकर 15 जुलाई 2022 तक 1059 बाघों की जान विभिन्न हादसों के चलते चली गई। इसमें सबसे ज्यादा 270 मध्यप्रदेश में और 183 महाराष्ट्र में बाघों की मौत शिकार, अप्राकृतिक और प्राकृतिक कारणों से हुई। मध्यप्रदेश में पिछले छह महीनों में 27 बाघों की मौत हो चुकी है।

इसी तरह 2019 से 2021 के मध्य शिकार, बिजली का करंट, जहरीले पदार्थ खाने और ट्रेन हादसों की वजह से 307 हाथियों की मौत हो चुकी है। इसी तरह रेल से कट कर ओड़ीशा में 12, पश्चिम बंगाल में 11 और अन्य राज्यों में 22 हाथियों की दर्दनाक मौत हो गई। उनतीस हाथियों का शिकार किया गया, तो जहरीले पदार्थ खाकर मरने वाले हाथियों की तादाद ग्यारह रही। गौरतलब है बाघ की खाल और हाथी के दांत का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में वर्षों से बड़ी मांग रही है। इसलिए शिकारियों और तस्करों की नजर हाथी और बाघ पर बनी रहती है।

पिछले पांच सालों में बाघों के शिकार में कुछ कमी जरूर आई है, लेकिन जिस दर से इनकी तादाद कम हो रही है, उसे रोकना बहुत बड़ी चुनौती है। विडंबना ही कही जाएगी कि इनके संरक्षण की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में हर साल औसतन 98 बाघों की मौत हो जाती है। गौरतलब है कि बाघ गणना रिपोर्ट-2018 के मुताबिक देश में 2,967 बाघ थे, जिनमें विभिन्न हादसों और शिकार की वजह से पिछले साढ़े चार सालों में 404 बाघ मौत के गाल में समा गए हैं। हालांकि इसमें बाघों की प्राकृतिक रूप से हुई मौत के आंकड़े भी शामिल हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जंगलों की बेतहाशा कटाई, खराब होता पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, शिकार और जंगलों में प्रवेश करती भौतिक विकास की गतिविधियों ने बाघों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है।

बाघों की तादाद भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में तेजी से घट रही है। कम होते-होते इनकी तादाद 3900 रह गई है। बाघों की कम होती तादाद को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) ने अपनी लाल सूची (रेड लिस्ट) में 1969 में ही बाघ को लुप्तप्राय श्रेणी में शामिल कर उसके संरक्षण के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा था। इसका असर यह हुआ कि बाघों के संरक्षण के लिए 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित अंतरराष्ट्रीय बाघ सम्मेलन कराया गया और इस पर खुल कर चर्चाएं हुर्इं।

तब से दुनिया में बाघों को लेकर सजगता बढ़ी है। खासकर भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमा सहित तेरह देशों ने 2022 के अंत तक अपने देश की सीमा के भीतर बाघों की आबादी को दोगुना करने का संकल्प लिया था। गौरतलब है 2018 तक भारत इस लक्ष्य तक पहुंचने में 74 फीसद सफल रहा। 2010 में भारत में 1706 बाघ थे, जो 2014 में बढ़ कर 2226 और 2018 में बढ़ कर 2967 हो गए।

भारत का राष्ट्रीय पशु होने की वजह से बाघ का संरक्षण हर हाल में जरूरी है। जंगलों की सुरक्षा, जैव संतुलन और वन्यजीव संरक्षण के नजरिए से भी बाघों का संरक्षण जरूरी है। केंद्र सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कानून के अलावा कई तरह के उपाय किए हैं, लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना जरूरी है। गौरतलब है कि बाघों के हमले में पिछले दस सालों में कम से कम सवा सौ लोगों की मौत हुई है। इससे आमआदमी में इनके प्रति इनके संरक्षण की जगह इन्हें खत्म करने की ज्यादा प्रवृत्ति देखी जाती है। इसी तरह हाथियों को बचाना भी एक बड़ी चुनौती है।

गौरतलब है पिछले दस सालों में हाथियों की तादाद तेजी से कम हुई है। सरकार को बाघों के साथ-साथ हाथियों को भी शिकारियों, हादसों और रेल दुर्घटनाओं से बचाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना होगा। जिस तरह जंगल कट और नए-नए शहर बसाए जा रहे हैं, वन्य जीवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हादसों पर रोक लगाने के साथ शिकारियों में भय पैदा करने के लिए कानून को और कठोर तथा असरकारी बनाना होगा। पर, इससे भी ज्यादा जरूरी है, वन्य जीवों के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाने के लिए जन जागरूकता लाना।

यों तो सरकार की तरफ से वन्य जीव जागरूकता सप्ताह या माह मनाए जाने का चलन है, लेकिन जनता का इससे जुड़ाव न के बराबर है। बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित तो किया गया, लेकिन राष्ट्र के इस प्रतीक को बचाने के लिए जैसी कोशिश होनी चाहिए थी, नहीं हुई। यही वजह है कि पिछले चालीस सालों में हजारों की तादाद में हाथी, शेर, चीते, तेंदुआ, बाघ, हिरन और भालू हादसों और शिकारियों के हाथों मारे गए। बदलते वक्त के साथ लोगों के नजरिए में जो बदलाव वन्य जीवों के प्रति आया है, उससे इनको बचाने की कवायदें बढ़ी तो हैं, लेकिन जंगलों की कटाई और ऋतु-चक्र में आए बदलाव की वजह से इन जीवों को बचाए रखना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

दरअसल, वन्य जीवों के प्रति आम आदमी में हमेशा डर बना रहता है। खासकर जो शहर, कस्बे और गांव किसी जंगल या अभ्यारण्य के नजदीक हैं वहां के लोगों में दहशत का माहौल बना रहता है। इसलिए शिकारियों को पकड़वाने में लोग वन विभाग या पुलिस की मदद नहीं करते। दूसरी बात, वन्यजीव आम आदमी की जिंदगी का हिस्सा नहीं होते, जिसकी वजह से लोगों में इनके प्रति वैसी मैत्री की भावना नहीं बन पाती जैसे पालतू जानवरों के प्रति। इसलिए खूंखार वन्यजीव के कस्बों या गांवों में दिखाई पड़ते ही उन्हें जान से मारने की कोशिश की जाती है। कई वन्य जीवों की हत्या के बारे में न तो वन विभाग को पता चल पाता है और न स्थानीय पुलिस को।

इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। वन्य जीवों के प्रति लोगों को अपने नजरिए में बदलाव लाना होगा और उनके प्रति नफरत या हिंसा की भावना को भी मन से हटाना होगा। केंद्र और राज्य सरकारों को भी वन्य जीवों के प्रति लोगों में जन जागरूकता फैलाने के प्रति अभियान चलाना चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार, वन्य जीव संरक्षकों और जनता की मदद से शिकारियों को पकड़ने, हादसों को कम करने और जहरीले पदार्थ खाने से इन्हें बचाने में कामयाबी मिलेगी और हमारे इन अनमोल जीवों का संरक्षण हो पाएगा।


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