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केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी ने एक बड़े टीवी चैनल के संवाददाता के साथ कथित बदसलूकी की
ऊंची हैसियत वाले नेता कहीं नेता उसके मालिक को भी टेनी के अंदाज में ही यदि हैसियत की याद दिलाने लगें, तो फिर आखिर क्या होगा? इसीलिए जो लोग सच से परिचित हैं, उनमें कथित पीड़ित पत्रकार या उसके चैनल के लिए कोई सहानुभूति देखने को नहीं मिली है।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी ने एक बड़े टीवी चैनल के संवाददाता के साथ कथित बदसलूकी की। इससे बहुत से वे मीडियाकर्मी भी आहत हुए, जिन्होंने और जिनके संस्थानों सवाल पूछने का धर्म बहुत पहले छोड़ रखा है। इसके बदले उन्होंने अपनी भूमिका सत्तासीन के जयगान की बना रखी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समय जिस 'न्यू इंडिया' की बात की थी, ये मीडिया संस्थान और उनमें काम करने वाले ज्यादातर कर्मी उसकी नई संस्कृति बनाने के सहभागी रहे हैँ। संस्कृत यह बनी कि सवाल सत्ताधारी से नहीं, बल्कि विपक्ष से पूछा जाए। अगर कोई खराब खबर आए, तो उसके समानांतर की अतीत की खबर ढूंढी जाए, ताकि ताजा खबर उसकी तुलना में लोगों को हलकी महसूस हो। इसी संस्कृति का हिस्सा है कि अगर कोई आंदोलन हो, तो उससे लोगों को बदनाम करने की कहानियां गढ़ी जाएं और दिन-रात उन्हें लोगों के दिमाग में उतारा जाए। ऐसे में अचानक एक दिन किसी सत्ताधारी से कोई पत्रकार कठिन सवाल पूछेगा, तो सत्ताधारी का असहज होना स्वाभाविक ही है।
आज के सत्ताधारियों के मन में अगर यह बात बैठी हुई है कि मीडिया को न्यू इंडिया की संस्कृति के दायरे में रहने का उन्होंने इंतजाम कर रखा है, तो क्या ये बात तथ्य नहीं है? विज्ञापन की जो संस्कृति बीते सात वर्ष में उभरी है, उसमें जो मीडिया घराने शामिल हो चुके हैं, वे आखिर किस मुंह से सरकार से सवाल पूछ सकते हैं। इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर किसी पत्रकार ने भोलेपन का परिचय दिया, तो वहां मौजूद सत्ताधारी नेता ने सिर्फ उसकी हैसियत बताई। ये हैसियत खुद उस टीवी चैनल ने भी बताई, जिसमें वह नौकरी करता है। आखिर उस चैनल ने इस घटना को लेकर कोई मुहिम शुरू क्यों नहीं की? ये तो साफ है कि अगर ऐसी मुहिम शुरू होगी, तो बात फिर बहुत दूर तक जाएगी। बात टेनी के व्यवहार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उनसे ऊंची हैसियत के जो लोग हैं, उनके सामने चैनल के ऊंचे पदों पर बैठे पत्रकार क्या करते रहे हैं, ये मुद्दा भी उठेगा। और फिर ऊंची हैसियत वाले नेता कहीं नेता उस पत्रकार या उसके मालिक को भी टेनी के अंदाज में ही उनकी हैसियत की याद दिलाने लगें, तो फिर आखिर क्या होगा? तो कुल यही कहानी है। इसीलिए जो लोग सच से परिचित हैं, उनमें कथित पीड़ित पत्रकार या उसके चैनल के लिए कोई सहानुभूति देखने को नहीं मिली है।
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