सम्पादकीय

दुख की चिंता क्यों सताए

Subhi
23 Nov 2022 5:51 AM GMT
दुख की चिंता क्यों सताए
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ये मुख्यतया हमें कई प्रकार से प्राप्त होते हैं, जिनमें हमारे कर्म, संस्कार आदि के साथ-साथ वातावरण, अवसर उपलब्धता और सोच-विचार के ढंग का भी विशेष योगदान है। कई बार कुछ अप्रत्याशित और अवांछित परिस्थितियां पैदा हो जा सकती हैं, जिसमें हमारी कोई भूमिका न हो। लेकिन अलग-अलग वजहों से ये ज्यादा या कम होते हैं या फिर बने रहते हैं।

राजेंद्र प्रसाद: ये मुख्यतया हमें कई प्रकार से प्राप्त होते हैं, जिनमें हमारे कर्म, संस्कार आदि के साथ-साथ वातावरण, अवसर उपलब्धता और सोच-विचार के ढंग का भी विशेष योगदान है। कई बार कुछ अप्रत्याशित और अवांछित परिस्थितियां पैदा हो जा सकती हैं, जिसमें हमारी कोई भूमिका न हो। लेकिन अलग-अलग वजहों से ये ज्यादा या कम होते हैं या फिर बने रहते हैं।

इसमें तन, मन और धन की गति भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मनुष्य सुख की उम्मीद में चाहे-अनचाहे बहुत ज्यादा लगा रहता है और उसी लालसा में दुख का सृजन भी खुद ही करता है। सब कुछ जल्द पाने की चाह उसे निरंतर बेचैन करती है, जिससे वह सोचता है कि जो कर्म वह कर रहा है, उससे सुख मिलेगा, जबकि अपनी कार्यशैली से दुख अर्जित करता रहता है। जरूरत से ज्यादा लालच, स्वार्थ और संकीर्णता उसके मार्ग को बाधित करता है। औरों से अधिक चतुर होने के भ्रम को बनाए रखते हुए सही कर्म पर व्यक्ति टिकता नहीं है, जिससे सहजता का रास्ता खंडित होता रहता है।

संसार में धन के महत्त्व को पैदा होते ही समझाया जाता है। इससे धनार्जन और उसके संचय की कामना बहुतों की बनी रहती है, जिसके कारण आज हर तरह के संबंध तार-तार होते दिखते हैं। ऐसे में वे उन लोगों को भी डसने से चूकते नहीं, जिनके सहारे वे फले-फूले हैं। यानी भौतिक धन के बारे में सब कुछ बताया समझाया जाता है, मगर जीवन के वास्तविक धन को लेकर कोई परिपक्व समझ विकसित नहीं की जाती है। अफसोस की बात है कि जीवन-संतुलन आज पीछे छूट रहा है। हालांकि धन आते ही सुख मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं, लेकिन इंसानियत आते ही जीवन सुखमय बनेगा, इसमें कोई संदेह नहीं। अगर आप कम धन में सुख का अनुभव करने की कला नहीं जानते तो अपार धन भी सुखी नहीं बना पाएगा।

निस्संदेह किसी सड़क के लंबे सफर में चढ़ाई या मोड़ की तरह सुख-दुख का अबाध क्रम जीवन में चलता रहता है। अगर जीवन में कष्ट नहीं होगा तो व्यक्ति को आनंद का सही अहसास नहीं होगा। ऐसे में सुख-दुख का संतुलन कैसे बनाया जाए, यह सोचना-विचारना जरूरी है। इसके लिए अपनी जीवन-शैली को खंगालना बहुत जरूरी है, क्योंकि तुच्छ सुख की लालसा में परम-सुख कहीं खो न जाए। सबको सुखी रखना बेशक हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन किसी को जानबूझ कर दुखी न करना हमारे हाथ में जरूर है। जब कुछ आशा-विरुद्ध होता है, तभी दुख होता है। अगर हमें इच्छित सफलता मिलती है तो हम खुश होते हैं और विफलता मिलती है तो हम कष्ट महसूस करते हैं। अगर सुख-दुख की उथल-पुथल से परे जब कोई राह पकड़ते हैं तो आनंद का खजाना व्यक्ति के पास होता है। किसी व्यक्ति को उसके जीवन में क्या मिले, यह इस बात पर निर्भर है कि उसकी चेतना किस दिशा में कैसे जा रही है।

बच्चा गलती करे तो समझ आता है कि उसके पास अनुभव और समझ की कमी है, लेकिन आपाधापी में अधेड़ और बड़ी उम्र के लोग स्वार्थ, लालच और तंगदिली में धंसे रहकर भी गलत कर बैठते हैं, जिसका समाज और परिवार पर असर पड़ना स्वाभाविक है। आज संक्रमण काल चल रहा है और ऐसे में बहुत से लोग किसी की सही बात सुनने, समझने और सीखने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसी उथल-पुथल की गूंज और अनिश्चय की स्थिति आज छोटे-बड़े, सबको परेशान कर रही है। मनमर्जी और आजादी का ज्ञान सबको हो रहा है, पर जिम्मेदारी लेने से हिचकते हैं, जिससे खुद पर नियंत्रण कम हो रहा है। बाह्य चीजें अंतर्मन को और अंतर्मन के द्वंद्व बाहर को प्रभावित कर रहे हैं।

दुख को दूर करने की दवा यही है कि उसका नकारात्मक चिंतन छोड़ दिया जाए, क्योंकि उससे वह और बढ़ता रहता है। दुखी व्यक्ति के लिए थोड़ी सहायता ढेरों उपदेशों से कहीं ज्यादा अच्छी है, जिनको कभी हमने दुख दिया हो तो उनसे क्षमा याचना कर लें, ताकि वे हमारे प्रति बुरे संकल्प न रखें और जिन्होंने हमें दुख दिया हो, उन्हें क्षमा कर दें, ताकि हम उनके प्रति बुरा संकल्प न रखें। जिस दिन हम ये समझ जाएंगे कि सामने वाला गलत नहीं है और सिर्फ उसकी सोच हमसे अलग है, उस दिन जीवन से दुख समाप्त नहीं, तो कम जरूर हो जाएंगे।

यह सोचना युक्तिसंगत है कि सुख के लिए हम इच्छाओं या आशाओं के अंबार भले लगाएं, पर सुख का ताला तो संतुष्टि की चाबी से ही खुलता है। कई बार यह भी कहा जाता है कि सुख और दुख नसीब से भी मिलता है और अमीरी-गरीबी से इसका कोई लेना-देना नहीं है। रोने वाले महलों में भी रोते हैं और किस्मत में खुशियां हों तो झोंपड़ी में भी हंसी गूंजती है। मगर कारण ढूंढ़ें जाएं तो किस्मत के स्रोत भी सामने आ जाते हैं!


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