सम्पादकीय

यूपी विधानसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ेंगे अखिलेश यादव ? ममता बनर्जी की हार का असर या कुछ और

Gulabi
1 Nov 2021 12:05 PM GMT
यूपी विधानसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ेंगे अखिलेश यादव ? ममता बनर्जी की हार का असर या कुछ और
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ममता बनर्जी की हार का असर या कुछ और

संयम श्रीवास्तव।

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान विधायिकी का चुनाव न लड़ने का फैसला किया है. अब सवाल ये उठता है कि उनके जैसे कद्दावर नेता के लिए चुनाव न लड़ने के फैसले के पीछे क्या वजह हो सकती है? क्या पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की हार के चलते समाजवादी पार्टी के मुखिया डर गए हैं? या बीजेपी के चक्रव्यूह में फंसने के बजाय उसे अवॉयड करने की उनकी रणनीति है?


दरअसल भारतीय जनता पार्टी की आक्रामक रणनीति विपक्ष को संभलने का मौका नहीं देती. अखिलेश यादव जानते हैं कि अगर जरा भी चूके तो कई साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगी. अभी तक के माहौल के अनुसार यूपी में योगी सरकार को टक्कर देने की कूवत विपक्ष में सिर्फ समाजवादी पार्टी में ही देखी जा रही है. विपक्ष के दूसरे नेताओं को मुकाबले अखिलेश बढ़त बनाएं हुए हैं. प्रियंका वाड्रा की मेहनत रंग लाई है पर कांग्रेस पार्टी की हालत यूपी में किसी से छुपी नहीं है. यह भी एक कारण है कि अखिलेश बढ़त को बरकरार बनाए रखने के लिए चुनाव लड़कर फंसना नहीं चाहते हैं.

1-यूपी-बिहार-महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अब ये परंपरा बनती जा रही है
यूपी-बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अब सीएम कैंडिडेट और बड़े नेता राज्य विधानसभाओं का चुनाव नहीं लड़ते. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी विधानसभा के रास्ते विधायिका में न पहुंचकर विधानपरिषद के रास्ते विधायिका में पहुंचे हैं. इन राज्यों में पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी यही रास्ता अपनाया. उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती कार्यकाल के दौरान भी अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था. उनके पूर्ववर्ती मायावती ने भी विधानपरिषद के रास्ते ही विधानसभा में पहुंचना श्रेयस्कर समझा था.

2-बीजेपी को घेरने की रणनीति का तोड़
पिछले कुछ चुनावों से बीजेपी की रणनीति रही है कि विपक्ष के नेताओं को उनके चुनाव क्षेत्रों में इस तरह घेर लो कि वो दूसरे क्षेत्रों के लिए समय न निकाल सके. राहुल गांधी को अमेठी में और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को जिस तरह बीजेपी ने घेर लिया था. अंततः इन नेताओं को चुनाव हारना पड़ा. अखिलेश जानते हैं कि अगर वो चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी वही रणनीति उनके साथ भी अपनाने वाली है. उत्तर प्रदेश में 400 विधानसभा सीट और हजारों किलोमीटर की यात्रा करना वैसे भी नेताओं के लिए काफी श्रमसाध्य होता है.
ऐसे में अगर किसी नेता को अपनी विधानसभा में सिमट कर रह जाना पड़े तो उसकी पार्टी के लिए यह खतरनाक साबित होना तय हो जाता है. बीजेपी की यही रणनीति भी होती है.

3-अल्पसंख्यक वोटों को बंटने से रोकने के लिए जरूरी
अखिलेश यादव को अगर यूपी की सत्ता में दुबारा आना है तो उन्हें मुस्लिम वोटों को बिखरने से रोकना होगा. दरअसल यूपी में मुस्लिम वोटों के कई दावेदार उभर कर आ गए हैं. एमआईएम के औवेसी अंतिम समय में वोटों की बाजी पलटने की कूवत रखते हैं. इसी तरह कांग्रेस पार्टी थोड़ी भी मजबूत होती है तो कुछ वोट उधर भी छिटक सकते हैं. यह सभी जानते हैं कि अल्पसंख्यक वोटों का फैसला अंतिम दिन होता है कि किधर जाएंगे. चूंकि यूपी में चुनाव कई चरणों में होना तय है इसलिए हर चरण में अखिलेश को सतर्क रहना होगा. अखिलेश यह भी जानते हैं कि उनके अलावा उनकी पार्टी में कोई ऐसा नहीं है जो अंतिम क्षण में मुस्लिम वोटों के बिखराव को रोक सके. समाजवादी पार्टी का बड़ा मुस्लिम चेहरा आजम खान इस समय जेल में है. इसलिए यह फ्रंट अखिलेश को अकेले ही संभालना है. अगर अखिलेश अपनी विधानसभा में उलझ गए तो यह काम मुश्किल हो जाएगा.

4-यूपी में विधानपरिषद का होना
आपको याद होगा कि अभी कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रस्ताव पास करके अपने प्रदेश में विधान परिषद बनाने की बात की थी. इसके पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह डर था कि अगर उनके मुख्यंत्री पद पर शपथ लेने के 6 महीने के अंदर किसी कारण उपचुनाव नहीं हुए तो बंगाल मे संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा और उन्हें रिजाइन कर पड़ जाएगा. पश्चिम बंगाल में अगर कोरोना के केस कम नहीं होते तो यह संभव भी हो सकता था. दरअसल चुनाव आयोग इस आधार पर बंगाल में उपचुनाव कराने से इनकार कर सकता था. ऐसी हालत में पश्चिम बंगाल की सीएम की कुर्सी से ममता बनर्जी को रिजाइन करना पड़ जाता . इसलिए पश्चिम बंगाल की विधानसभा में आनन-फानन में विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा. हालांकि इसके पहले स्थितियां सामान्य हो गईं और चुनाव आयोग ने उपचुनाव कराने का फैसला ले लिया. ममता बनर्जी ने विधानसभा का चुनाव जीतकर अपनी कुर्सी बचा लिया. फिलहाल ऐसी दिक्कत यूपी में नहीं होने वाली है. इसलिए यूपी में आमतौर पर मुख्यमंत्री विधानपरिषद के रास्ते विधानसभा में पहुंचना सेफ समझते हैं.

5-बीजेपी के दिग्गज अगर लड़ते हैं चुनाव तो जवाब देना होगा मुश्किल
सूत्रों की मानें, तो बीजेपी अपने सभी दिगग्जों को मैदान में उतारेगी. यही नहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. इसके अलावा राज्य के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा भी चुनाव लड़ेंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी विधान परिषद के सदस्य हैं. वहीं, प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, महेंद्र पांडे जैसे बड़े नेता भी चुनावी मैदान में उतर सकते है. हिंदुस्तान में छपी एक खबर के अनुसार बीजेपी आलाकमान ये चाहता है कि इस बार के चुनावों में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या, दिनेश शर्मा समेत सभी बड़े नेता विधानसभा का चुनाव लड़ें. सीएम योगी का गोरखपुर की किसी सीट से चुनाव लड़ने की अटकले हैं. केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी की सिराथू सीट से चुनाव लड़ाने की तैयारी है. ऐसा माना जा रहा है कि दिनेश शर्मा लखनऊ से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं. वहीं डॉ महेंद्र कुंडा सीट चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में संभव है कि अखिलेश यादव के चुनाव न लड़ने के फैसले को बीजेपी मुद्दा भी बना सकती है. बीजेपी आम जनता के बीच इसे चुनाव के पहले हार स्वीकार करने की बात कह सकती है. इसलिए अखिलेश यादव का ये फैसला उनके लिए उल्टा भी पड़ सकता है.
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