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किसानों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच टकराव टालने के लिए क्यों नहीं किए गए आवश्यक उपाय?
मनीष पांडेय| यह राहतकारी है कि लखीमपुर खीरी में बेहद दुखद और खौफ पैदा करने वाली घटना के बाद आंदोलनरत किसानों और प्रशासन के बीच समझौता हो गया। इसके तहत कार से कुचलकर मारे गए किसानों और फिर जवाबी हिंसा में पीट-पीटकर मार दिए गए भाजपा कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के परिजनों को समुचित मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन विचार इस पर होना चाहिए कि आखिर यह घटना हुई क्यों? इस सवाल का जवाब भी खोजा जाना चाहिए और उससे सबक भी सीखे जाने चाहिए। आखिर जब स्थानीय सांसद एवं केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के एक बयान के कारण किसान संगठन आक्रोशित थे तो फिर उनमें और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच टकराव टालने के लिए आवश्यक उपाय क्यों नहीं किए गए? सवाल यह भी है कि ये कैसे शांतिपूर्ण आंदोलनकारी थे, जिन्होंने अपने साथियों को कथित तौर पर टक्कर मारने वालों को उनके वाहनों से खींचने के बाद पीट-पीटकर मार डाला? इनमें एक पत्रकार भी था। आखिर उसकी क्या गलती थी? क्या न्याय मांगने का यही तरीका है? नि:संदेह ऐसे ¨हसक तौर-तरीके तभी देखने को मिलते हैं, जब आंदोलनकारियों और शासन-प्रशासन के बीच वैमनस्य बढ़ता चला जाता है।
इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि बीते दस महीने से जारी किसान संगठनों के आंदोलन के कारण आंदोलनकारियों और सत्तापक्ष के बीच कटुता हद से ज्यादा बढ़ गई है। यदि दोनों पक्षों के बीच बातचीत नहीं होती और शीघ्र ही किसी सुलह-समझौते पर नहीं पहुंचा जाता तो जैसी भयावह घटना लखीमपुर खीरी में हुई, वैसी अन्यत्र भी हो सकती है। यदि ऐसी घटनाओं से बचना है और यह सुनिश्चित करना है कि आगे जान-माल का नुकसान न हो तो फिर दोनों पक्षों को नरम रवैया अपनाने के साथ किसी समझौते पर पहुंचने की इच्छाशक्ति सचमुच दिखानी होगी। लखीमपुर खीरी की घटना के बाद इस इच्छाशक्ति का प्रदर्शन इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि यह साफ दिख रहा है कि किसान संगठनों के आंदोलन से बेजा लाभ उठाने वाले सक्रिय हो गए हैं। वे न केवल कटुता और उत्तेजना फैला रहे हैं, बल्कि माहौल बिगाड़ने का भी काम कर रहे हैं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि लखीमपुर खीरी में ऐसे ही तत्व अपना शरारती एजेंडा पूरा करने में सफल हो गए। शायद इन तत्वों का काम इसलिए भी आसान हो गया, क्योंकि कई समूह किसान संगठनों को उकसाने में लगे हुए हैं। जो तमाम विपक्षी नेता लखीमपुर खीरी जाने को आतुर थे, उनका उद्देश्य वहां जान गंवाने वालों के प्रति संवेदना प्रकट करना नहीं, बल्कि अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना था। अब यह सब बंद होना चाहिए, क्योंकि लोगों की जान पर बन आई है।