सम्पादकीय

प्रियंका गांधी के ये खास सलाहकार क्यों कह रहे हैं 2024 में तो आएंगे नरेंद्र मोदी ही

Gulabi
2 Jun 2021 2:42 PM GMT
प्रियंका गांधी के ये खास सलाहकार क्यों कह रहे हैं 2024 में तो आएंगे नरेंद्र मोदी ही
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आचार्य प्रमोद कृष्णम हमेशा (Acharya Pramod Krishnam) अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं

संयम श्रीवास्तव। आचार्य प्रमोद कृष्णम हमेशा (Acharya Pramod Krishnam) अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं, इस बार भी वह अपने एक बयान की वजह से ही चर्चा में हैं जो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और कांग्रेस (Congress) की मौजूदा स्थिति पर दिया है. आचार्य प्रमोद कृष्णम का कहना है कि अगर कांग्रेस पार्टी इसी तरह से ही चलती रही और उस पर बीजेपी (BJP) का लगाया ठप्पा की वह एक मुस्लिम परस्त पार्टी है लग गया तो पूरी उम्मीद है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी फिर चुनाव जीत जाएं.

प्रमोद कृष्णम ने नवभारत टाइम्स को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि संघ और बीजेपी मिल कर कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी घोषित करना चाहते हैं और कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि वह इसी दिशा में आगे भी बढ़ रही है. इस वजह से लोगों के बीच यह धारणा बनती जा रही है कि कांग्रेस एक मुस्लिम परस्त पार्टी है और यही कारण है कि बहुसंख्यक हिंदुओं में कांग्रेस को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को समझने की जरूरत है कि अब देश की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक की तरह बल्कि हिंदू वोट बैंक भी तैयार हो चुका है.
आचार्य प्रमोद कृष्णम के बयान में कितना दम है
प्रमोद कृष्णम के आरोपों को अगर हम बारीकी से समझें तो पाएंगे कि उनकी बात में दम है. क्योंकि बीजेपी और संघ ने कांग्रेस को कहीं ना कहीं हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त पार्टी का खिताब तो दिला ही दिया है. ये बातें हवा हवाई नहीं हैं इसके पीछे कई तर्क हैं. दरअसल कांग्रेस का इतिहास रहा है कि वह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करती आई है. वर्तमान में भी वह यही फॉर्मूला लागू करना चाह रही है, लेकिन उसको समझना होगा कि अब हिंदुस्तान की राजनीतिक स्थिति बदल चुकी है अब यहां की राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण से जितना फायदा नहीं होगा उससे ज्यादा नुकसान होगा. प्रमोद कृष्णम भी इसी ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि बीजेपी और संघ ने देश को धर्म का नशा चटा दिया है जो अफीम से भी तगड़ा है. यही वजह है कि चुनाव के दौरान हिंदुस्तान के लोग बीजीपी की हर नाकामी को इस धर्म को ज्वालामुखी में स्वाहा कर देते हैं.
कांग्रेस कैसे बनती जा रही है 'मुस्लिम पार्टी'
कांग्रेस नेताओं का बयान हो या कांग्रेस पार्टी की हरकतें उसे अपने आप 'मुस्लिम पार्टी' बनाती हैं. हाल में होने वाले चुनावों से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक देखें तो कांग्रेस का हर कदम उसे मुस्लिम पार्टी की ओर ले जा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अमेठी छोड़ कर केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने का फैसला किया, जहां हिंदू आबादी 50 फीसदी से कम थी. बीजेपी ने इसे लेकर खूब प्रचार किया और देश को बताने की कोशिश की कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी अपना अस्तित्व वहां खोजने की कोशिश कर रही है जहां हिंदू अल्पसंख्यक है.
इसके बाद हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनाव में भी कांग्रेस ने असम में कट्टर मुस्लिम संगठन AIUDF से हाथ मिला लिया. इसके बाद केरल में मुस्लिम लीग के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और पश्चिम बंगाल में तो फुरफुरा शरीफ के कट्टर मुस्लिम लीडर अब्बास सिद्दीकी से हाथ मिला लिया. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले से कांग्रेस के कई नेता नाराज थे, उनमें आनंद शर्मा जैसे नेताओं ने खुल कर अपना विरोध दर्ज कराया था. आचार्य प्रमोद कृष्णम का भी मानना है कि कांग्रेस ने अपने इन फैसलों से देश के बहुसंख्यक हिंदू आबादी के मन में ये बात बैठा दी है कि कांग्रेस मुस्लिम परस्त पार्टी है
कांग्रेस को इस छवि से बाहर निकलना होगा
प्रियंका गांधी के सलहाकार प्रमोद कृष्णम इस बात पर कहते हैं कि, चुनाव के समय सिर्फ मंदिर चले जाने से या पूजा-पाठ करने से आप अपने आपको हिंदू परस्त साबित नहीं कर सकते हैं. इस छवि से पार्टी को बाहर निकालने के लिए अब कांग्रेस को उन नेताओं को आगे बढ़ाना चाहिए जिन पर अभी तक मुस्लिम परस्त होने का ठप्पा नहीं लगा है. देखा जाए तो प्रमोद कृष्णम की बात में दम है क्योंकि देश की राजनीति अब मुस्लिम तुष्टिकरण से ऊपर उठ रही है. देश में अब हर पार्टी हिंदुओं का समर्थन चाहती है, यही वजह है कि इस वक्त देश में कोई ऐसी राष्ट्रवादी पार्टी नहीं है जो खुल कर हिंदू विरोधी बाते करती हो. आचार्य प्रमोद इस इंटरव्यू में जोर देते नजर आते हैं कि अब कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में दे दी जाए.
बंगाल में क्यों नहीं चला हिंदूवादी मुद्दा
बंगाल में हिंदू वादी मुद्दा नहीं चला ये कहना गलत है. हां ये जरूर कह सकते हैं कि बीजेपी जिस हिसाब से इस मुद्दे को चलाने का सोच रही थी उतने पैमाने पर भले नहीं चला. लेकिन तीन सीटों से 77 सीटों पर पहुंच जाना बड़ी बात है और वह भी ऐसी हालत में जब कोरोना महामारी को लेकर देश भर में बीजेपी के खिलाफ माहौल बन रहा हो. बंगाल में तीन से 77 सीटों तक का सफर बीजेपी हिंदुत्व के दम पर ही तय कर पाई है. बीजेपी और आगे जाती अगर ऐन मौके पर ममता बनर्जी अपना पाला ना बदलती. ममता बनर्जी ने जिस तरह से खुद को बीजेपी से ज्यादा हिंदू वादी दिखाया और चंडीपाठ से लेकर खुद को हिंदू ब्राहम्ण की बेटी तक बता दिया. इन्हीं वजहों से बीजेपी का ममता बनर्जी को मुस्लिम परस्त बताना फेल हो गया और ममता बनर्जी फिर से बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं.
केजरीवाल की सफलता के पीछे भी हिंदुत्व
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के बार-बार चुनाव जीतने के पीछे भी यही कारण है कि उन्होंने अपनी छवि हिंदू विरोधी नहीं बनने दी है. वे अपनी हर मीटिंग की शुरुआत भारत माता की जय और बजरंग बली की जय से करते हैं. प्रमोद कृषणम शायद सही कह रहे हैं . दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रवाद, पाकिस्तान और धार्मिक मुद्दों पर बीजेपी का स्टैंड लेते दिखाई देते हैं. यहां तक सरकार स्टू़डेंट के लिए राष्ट्रवाद का एक कोर्स भी ला रही है.
नेहरू और इंदिरा ने भी खूब भुनाया हिंदुत्व
आचार्य कृष्णम की बातों पर हो सकता है कांग्रेस पार्टी में तवज्जो न मिले पर कांग्रेस का इतिहास ये बताता है कि शुरू से ही पार्टी हिंदू कांग्रेस की छवि बनाए रखी. देश की आजादी के पहले से ही कांग्रेस पर हिंदुओं की पार्टी होने का ठप्पा लग चुका था. अंग्रेजी हुकूमत के सामने मुस्लिम लीग और कांग्रेस एक तरह से मुसलमानों और हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. नेहरू पर हैदराबाद को निजाम से मुक्त कराने में करीब 40 हजार मुसलमानों के कत्ल करवाने का आरोप लगाए गए. भारत सरकार ने इसकी जांच के लिए एक कमेटी बनाई पर उसकी रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हो सकी. हालांकि जांच कमेटी के एक सदस्य ने एक किताब लिखकर रिपोर्ट की बहुत सी बातों का खुलासा किया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार उस रिपोर्ट में बताया गया था कैसे हैदराबाद में मुसलमानों को लाइन में खड़ाकर गोली मारी गई थी. ये भारत सरकार का एक पुलिस एक्शन था. इसलिए दुनिया के दूसरे देश भी शोर भी नहीं मचा सके. पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे कट्टर हिंदूवादी नेता को भारत रत्न से सम्मानित करने पर भी उन पर हिंदुओं को उनको एक हिंदुत्व के समर्थक की छवि प्रदान करने में सहायक बना था. पार्टी में भी वल्लभभाई पटेल, मदनमोहन मालवीय, राजेंद्र प्रसाद जैसे हिंदूवादी चेहरों को बनाए रखा गया था. शायद यही कारण था कि तत्कालीन जनसंघ का उभरने का मौका नहीं मिला.
इंदिरा गांधी ने एक पारसी फिरोज से शादी की थी. पर पब्लिक के सामने अपने हिंदू होने का प्रदर्शन करती थीं. देश में कहीं भी दौरे पर गईं तो वहां के प्रमुख मंदिरों के दर्शन करने जरूर जाती थीं. देवरहा बाबा की वो भक्त थीं. शंकराचार्यों और संतों के दर्शन करतीं थीं. सर पर भारतीय महिलाओं की तरह साड़ी का पल्लू रखना और गले में रुद्राक्ष की माला उन्हें एक पारंपरिक भारतीय महिला की छवि प्रदान करता था. पंजाब में आतंकवाद के दौर में उनके भाषणों में हिंदुओं पर हो रहे हमलों का जिक्र मिलता है.
रामजन्म भूमि का 1986 में ताला खुलवाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बड़ी भूमिका थी. इतना ही नहीं बाद में राजीव गांधी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत अयोध्या से करके हिंदुओं के तुष्टिकरण की कोशिश में अपने हाथ जला लिए थे. माना जाता है कि उनके इस कदम के बाद ही मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो गए और कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी. दरअसल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी जो दंगे हुए उससे कांग्रेस को बहुत फायदा हुआ था. सिखों के खिलाफ हिंदुओं का मोबलाइजेशन कांग्रेस के ऐतिहासिक विजय का कारण रहा. जिसे बाद में राजीव गांधी ने रामजन्म भूमि का ताला खोलकर फिर से उभारना चाहा था.
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