सम्पादकीय

तालिबान के कब्जे पर दुनिया चुप क्यों

Rani Sahu
19 Aug 2021 7:03 PM GMT
तालिबान के कब्जे पर दुनिया चुप क्यों
x
आजकल नहीं, बल्कि पिछले 20 साल से ऊपर से तालिबान द्वारा जो हैवानियत का नंगा नाच चल रहा है अफगानिस्तान में

आजकल नहीं, बल्कि पिछले 20 साल से ऊपर से तालिबान द्वारा जो हैवानियत का नंगा नाच चल रहा है अफगानिस्तान में, वह दुनिया देख रही है। जिस प्रकार से बिना जाने शरियत कानून को लागू करने का हवाला देकर तालिबान कभी तो बामीयान बुद्ध मूर्तियों को तोड़ते हैं या एक गुरुद्वारे के अंदर 20 सिक्खों को मार देते हैं, उससे उनकी क़ातिलाना मानसिकता का पता मिलता है। पिछले दिनों उन्होंने भारत के पत्रकार दनिश सिद्दीकी की हत्या कर दी थी। इनके दिल में रहम नाम की कोई चीज़ नहीं है। हमें और पूरी दुनिया को चिंता वहां रहने वाले नागरिकों की है कि महिलाओं और धर्मनिरपेक्ष मानसिकता वाले लोगों के साथ क्या सुलूक किया जाएगा। वैसे यह तो समय ही बताएगा। भारत अपनी गहरी नज़र बनाए हुए है इन परिस्थितियों पर। कुछ भारतीय सोच रहे हैं कि ये तालिबान आने वाले दिनों में भारत का जीना हराम करेंगे, तो क्यों नहीं हम उन पर कार्पेट बांबिंग कर इनका सफाया कर देते? इसका जवाब है कि इस सिलसिले में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सुरक्षा सलाहकार के अतिरिक्त भारतीय जल, थल और वायु सेना कुशलता के साथ अपनी रणनीति बना चुके हैं और अफगानिस्तान में पल-पल हो रही गतिविधियों पर उनकी पैनी निगाहें हैं। भारत अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है, जबकि अपने देश से कई आवाजें आ रही हैं कि तालिबान को हवाई हमले से भून दो, मगर भारत जो भी कदम उठाएगा, सोच समझ कर ही उठाएगा। हां, अमरीका और पश्चिमी देशों की इस संदर्भ में खामोशी अवश्य ही रहस्यमयी बनी हुई है।

चूंकि तालिबान के पास वायु सेना नहीं है, कोई भी देश उस पर अपने लड़ाके विमानों से हमला कर सकता है, मगर किसी भी शक्ति और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ भी चुप है। लगता है यह कुछ बड़े देशों का नूरा कुश्ती का खेल है जिसमें हामिद करज़ई को अपना पैसा मिल गया, तालिबान से भी सांठगांठ हो गई, असुर चीन भी अफगानिस्तान पर ऐसे ही अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है जैसे कि उसने पाकिस्तान और ईरान के साथ किया हुआ है। चीन अफगानिस्तान के साथ इसलिए लगना चाहता है कि अब तक हामिद करज़ई के राज में भारत कई बिलियन डॉलर का काम कर चुका है जो चीन की नज़रों में अवश्य खटकता होगा। उधर पाकिस्तान में लोग तालिबान पर बनते हुए हैं। कुछ सोचते हैं कि तालिबान ने एक महा शक्ति को धूल चटाई, मगर फिर भी एक आध तबका तालिबान की जीत से नाखुश है क्योंकि उन्हें डर है कि जो 18000 बंदी तालिबान छोड़े गए हैं, उनमें एक पाकिस्तानी आईएसआई का चेला मौलाना फकीर मुहम्मद भी है जो अफगानिस्तान के तालिबान का साथी है और पाकिस्तान में एक आज़ाद तालिबान राष्ट्र बनाना चाहता है। इसलिए अधिकतर पाकिस्तानी तालिबान की विजय से डरे हुए हैं। वैसे सच तो यह है कि 1970 के दशक में तब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने तालिबान के फिरके की मदद की थी। उधर अशरफ गनी का भी कुछ समय पहले पाकिस्तान ने स्वागत किया था।
अफगानिस्तान की दुर्दशा का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि उसकी सेना ने अपने दीन के कारण पूर्ण समर्पण कर दिया है अर्थात बाग़ी हो गई है, जिसके कारण तालिबान ने अपना विजय बिगुल बजा दिया है। इस अंतरराष्ट्रीय साजिश में कौन शामिल है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर इस समय देश में बड़े संगीन हालात हैं। काबुल की सड़कों पर बर्बरता का नंगा नाच हो रहा है और भारत ने अफगानिस्तान में अपनी पूंजी लगाकर जो चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनाई थीं, उन पर तालिबानी आतंकी अपनी बंदूकें लहराते हुए गाडि़यों में दौड़ रहे हैं। अमरीका और नाटो की सेना ने 60-70 हज़ार तालिबान को गुफाओं में छिपने पर मजबूर कर दिया था, मगर 3 लाख अफगान सेना ने जिस प्रकार से घुटने टेक कर देश तालिबान के हवाले कर दिया, उससे एक शांतिवादी व्यक्ति की चिंता काफी बढ़ गई है। जिस प्रकार से हामिद करज़ई मुंह छिपा कर ओमान भागे हैं, उससे यही प्रमाणित होता है कि वे भले ही अपने अमरीकन आकाओं से अपना खर्चा-भत्ता ले रहे थे, मगर देशवासियों की परवाह किए बिना रफूचक्कर हो गए। बामियान की परवाना हुसैनी, जोकि पंजाब यूनिवर्सिटी में छात्रा हैं, बताती हैं कि खबरें आ रही हैं कि तालिबान ने नौजवान लड़कियों को बंदूक के ज़ोर पर उठाना शुरू कर दिया है। अब लड़कियों का घर से निकलना लगभग नामुमकिन हो गया है। परवाना ने अमरीका, संयुक्त राष्ट्र संघ और भारत से गुहार लगाई है कि वे सब मिलकर अफगानिस्तान में हालत को सुधारने में मदद करें। उन्हें दुख है कि उनका देश अंधे कुएं में धकेल दिया गया है। हां, तालिबान से मुहब्बत करने वाली एक लॉबी भारत में भी है। एक पोर्टल पर मैंने वरिष्ठ पत्रकार सईद नक़वी को मुहम्मद अहमद को दिए गए अपने एक साक्षात्कार में कहते सुना कि अमरीका ने अफगानिस्तान से अपने कदम खींच कर बहुत अच्छा किया क्योंकि उसने अपनी पिट्ठू सरकार राष्ट्रपति हामिद करज़ई को गद्दी पर बैठा रखा था और वहां से भारत, चीन, पाकिस्तान और ईरान पर नज़र जमाए हुए था।
उन्होंने यह भी कहा कि जो भी राजनेता अमरीका से डिग्री लेता है, वह उसे इसका इनाम देता है, जैसा कि करज़ई ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के साथ-साथ भारत में शिमला में भी शिक्षा प्राप्त की थी, तो उन्हें अफगानिस्तान में फिट कर दिया। ऐसे ही जिओर्जिया के राष्ट्रपति मिखाइल साकाश्विली, जो कि एक अमेरिकन यूनिवर्सिटी से थे और काफी दिन वहां रहे भी थे, उन्हें अपना कठपुतली राष्ट्रपति बना दिया। ऐसे ही लिथ्यूएनिया की राष्ट्रपति डालिया ग्रायबौस्काइते, जो कि जिओर्जटाऊन यूनिवर्सिटी से थीं, उन्हें भी राष्ट्रपति बना कर इनाम दिया। अपने साम्राज्यवाद के मिशन के अंतर्गत उसने इराक व अन्य अरब देशों पर अपना वर्चस्व बना रखा है और फ्री का तेल लूट रहा है। इन बातों के मद्देनज़र अमरीका के सैनिकों की वापसी तथा अमरीका और पश्चिमी देशों की इस संदर्भ में खामोशी अवश्य ही रहस्यमयी बनी हुई है। चूंकि तालिबान के पास वायु सेना नहीं है, कोई भी देश उस पर अपने लड़ाके विमानों से हमला कर सकता है, मगर किसी भी शक्ति और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ की चुप्पी सईद नकवी के अनुसार ठीक है। वह मानते हैं कि समय के रहते अफगानिस्तान में सब कुछ ठीक हो जाएगा। कुछ ऐसी ही आशा प्रकट की है दिल्ली के पूर्व अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डा. जफरुल इस्लाम खान ने कि अफगानिस्तान से भारत को नहीं बल्कि अफगानिस्तान को डरने की आवश्यकता है और यह कि चूंकि भारत ने अफगानिस्तान में सड़कें, पुल, डैम आदि काफी विकास कार्य किया है, तालिबान भारत के साथ दोस्ती का रिश्ता बनाकर रखना चाहेंगे।
नकवी और इस्लाम की बातों में कहां तक दम है, यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल तो अफगानिस्तान में हाहाकार मचा हुआ है और जो हवाई जहाज़ में ढोर-डंगर की माफिक अपने को ठूंसते हुए नागरिकों, जिनमें महिलाएं और बच्चे व बुजुर्ग भी शामिल थे, के वीडियो भी वायरल हुए हैं जो वास्तव में दिल-ओ-दिमाग को हिला देने और झकझोर कर देने वाले हैं, बताते हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है अफगानिस्तान में। खबरें ये भी आ रही हैं कि तालिबान ने सभी ब्यूटी पार्लरों को बंद कराकर महिलाओं के पोस्टरों पर कालिख या सफेदी पोतनी शुरू कर दी है। इस्लामी शरिया में तो ऐसा कोई हुक्म नहीं है और वैसे भी ये लोग शरिया और कुरान के हुक्मों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। आज भारत में वर्षों से कई हज़ार अफगानिस्तानवासी आराम से रह रहे हैं। बहुत से तो 20 वर्ष पूर्व ही आ गए थे जब तालिबान का पहला राज-काज लगभग स्थापित हो चुका था। वास्तव में जब अफगानिस्तान के किंग शाह ज़हीर शाह का राज था तब यह देश बड़ा ही समृद्ध था और पूरे विश्व से यहां सैलानी आकर यहां के मेवे, फलों और ज़बरदस्त कुदरती समां से लुत्फदोज़ होने आते थे। आज इसकी दुर्दशा देख कलेजा फटता है। सबकी यही दुआ है कि अफगानिस्तान के नागरिकों और विशेष रूप से महिलाओं की सलामती रहे और यह देश सही हाथों में जाए।
फिरोज बख्त अहमद
स्वतंत्र लेखक


Next Story