सम्पादकीय

गुजरात के गांवों तक क्यों नहीं पहुंची कृषि कानूनों के विरोध की आंच

Gulabi
3 March 2021 2:26 PM GMT
गुजरात के गांवों तक क्यों नहीं पहुंची कृषि कानूनों के विरोध की आंच
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किसान आंदोलन (Farmers Protest) के हीरो बन चुके किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने अभी हाल ही में हरियाणा

किसान आंदोलन (Farmers Protest) के हीरो बन चुके किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने अभी हाल ही में हरियाणा में एक किसान रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि 'गुजरात के किसान बहुत प्रताड़ित हैं, उनको आवाज देने के लिए जल्द ही गुजरात जाउँगा.' गुजरात पंचायतों के चुनाव (Gujarat Panchayat Election) में मिले बीजेपी के सपोर्ट को देखते हुए शायद टिकैत अब गुजरात जाने का प्लान जल्दी न करें. गुजरात में तालुका परिषद के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. यह जीत इस मायने में बड़ी है क्योंकि 2010 के बाद बीजेपी (BJP) को ऐसी सफलता मिली है. 2015 के चुनावों में भी ऐसी सफलता भारतीय जनता पार्टी को नहीं मिली थी.

यह जीत इस मायने में और भी बढ़ जाती है क्योंकि गांवों में 90 प्रतिशत वोट किसान का होता है. देश भर में चल रहे किसान आंदोलन को देखते हुए ये उम्मीद की जा रही थी कि बीजेपी के वोट गांवों में घटेंगे. पर गुजरात में उम्मीद के विपरीत गांवों में वोट बढ़ गए. साथ ही पाटीदारों के बाहुल्य वाले इलाकों में भी बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन बताता है कि गुजरात के किसान तीनों कृषि कानूनों (Agricultural Law) पर बीजेपी के साथ हैं.
गुजरात में 85 फीसदी किसान सीमांत
केंद्र सरकार के आंकड़ों की बात करें तो गुजरात के किसानों की आय पंजाब और हरियाणा के किसानों की आधी है. कृषि सांख्यिकी 2016 के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात के किसानों की आय महीने में मात्र 7,926 रुपए है. जबकि पंजाब के किसान हर महीने 18,049 रुपए कमा रहे हैं. आंकड़े गवाह है कि गुजरात के किसानों की रोजमर्रा की आय 264 रुपए है, जो अकुशल कृषि मजदूर की दैनिक मजदूरी 341 रुपए से करीब 77 रुपए कम है. इस तरह गुजरात में 39.30 लाख किसान परिवारों की वार्षिक आय 1 लाख रुपए से भी कम है. राज्य के किसानों की गरीबी का असली कारण करीब 85 फीसदी किसान लघु और सीमांत किसान हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है. यही वे किसान हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टार्गेट पर हैं. इन्हीं किसानों के लिए 6 हजार सलाना की स्कीम आई हुई है और ये लोग गुजरात तो क्या हर स्टेट में हैं भारी संख्या में हैं और इन पर किसान आंदोलन का कोई असर नहीं है.
पैन इंडिया नहीं बन सका किसान आंदोलन
देश भर में सीमांत कृषकों की संख्या करीब 86 परसेंट है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हर स्पीच में इन किसानों की चर्चा करना नहीं भूलते. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं दरअसल देश में बड़ी संख्या सीमांत कृषकों की है जिन्हें किसान आंदोलन से कोई फायदा नहीं मिलने वाला है. किसानों को हर तीसरे महीने 2 हजार रुपये मिल रहे हैं. किसान के छोटे-मोटे खर्चे के लिए इतना मिल जाता है . इन किसानों को किसान आंदोलन से कोई मतलब नहीं है. इनके लिए किसान आंदोलन के मंच से कोई बात नहीं कर रहा है और इसका सीधा प्रभाव ये हो रहा है कि आंदोलन पैन इंडिया रूप नहीं ले पा रहा है. ईस्टर्न यूपी और बिहार ही नहीं गुजरात और महाराष्ट्र के भी छोटे किसान आंदोलन से जुड़ नहीं पा रहे हैं.
गुजरात से ही शुरू हुआ कृषि सुधार
गुजरात के लोग बिजनेस ओरिएंटेड होते हैं. किसान की अब तक मजबूरी होती थी कि वो बाहर की मंडी में अपना अनाज नहीं बेच सकता था. सबसे पहले गुजरात और महाराष्ट्र से ही ये सुधार शुरू हुआ आर्थिक मामलों के पत्रकार हरीश तिवारी कहते हैं कि शंकर लाल गुरू गुजरात कांग्रेस के नेता ( विधायक) रहे हैं, उन्हीं के लीडरशिप में कृषि सुधार समिति बनी थी जिसके आधार पर एपीएमसी रिफार्म हुए. उनके सुझाव ही किसान फार्म बिल के आधार हैं. किसान बिल में जो भी सुधार हो रहे हैं वो कंज्यूमर बेस नहीं है. केरल-बिहार आदि राज्यों में एपीएमसी कमेटी है ही नहीं और गुजरात में है भी तो बहुत स्टैबलिश नहीं है. तिवारी कहते हैं कि दिल्ली में जो किसान डटे हुए हैं वो किसान नहीं है ट्रेडर्स हैं. वेस्टर्न यूपी में गन्ने का सीजन चल रहा है जो किसान गन्ने की खेती कर रहे हैं उनके पास इस समय सांस लेने की फुरसत नहीं है. उनके पास इतना समय कहां है कि वो गाजियाबाद में जाकर धरने पर बैठें. गुजरात का किसान प्रोग्रेसिव सोच वाला है. गुजरात के गांव बहुत बड़े होते हैं वहां के किसान अवेयर होते हैं. आज तक कोई किसान नेता ये नहीं बता पाए कि नरेंद्र मोदी ने अंबानी और अडानी को बेचा क्या है? गुजरात का किसान समझता है इसलिए उसे किसान आंदोलन से कोई मतलब नहीं है.
किसान आंदोलन का असर नहीं
गुजरात में बारदोली के पत्रकार हितेश बताते हैं कि गुजरात में बीजेपी को किसानों का समर्थन तो पहले से ही था. उनका कहना है कि यहां किसान आंदोलन का कोई असर नहीं है. साऊथ गुजरात में गन्ना किसानों की बहुतायत है और उन्हें सरकार से अच्छा मूल्य मिल रहा है. सभी गन्ना समितियों में भी बीजेपी का कब्जा है. किसान संगठन है वे यहां पर भी विरोध कर रहे हैं पर किसान नेताओं की बात किसान समझने को तैयार नहीं है. यहां कांग्रेस पूरी तरह फेल है इसलिए भी किसान आंदोलन यहां सिरे नहीं चढ़ पार रहा है.


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