सम्पादकीय

विपक्ष की जुबान क्यों?

Gulabi
11 Nov 2021 4:00 AM GMT
विपक्ष की जुबान क्यों?
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विपक्ष की जुबान

कांग्रेस ने मांग की है कि ताजा खुलासे की रोशनी में संयुक्त संसदीय जांच दल की नियुक्ति होनी चाहिए। भाजपा को सचमुच भरोसा है कि ऐसी जांच से कांग्रेस फंसेगी, तो वह इस मांग को स्वीकार क्यों नहीं कर लेती? कांग्रेस की दूसरी मांग है कि सरकार इलेक्ट्रॉल ब़ॉन्ड्स की सारी जानकारी सार्वजनिक कर दे।


राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में फ्रांस की वेबसाइट मीडिया पार्ट ने खुलासा किया कि इन विमानों की निर्माता कंपनी देसों ने बिचौलिये सुहेन गुप्ता को दलाली का भुगतान किया था। तीन साल पहले इस बारे में दस्तावेज सीबीआई को मिल गए। लेकिन सीबीआई ने कोई जांच शुरू नहीं की। यानी वह मामले को दबा देने में भागीदार बनी। इस खुलासे पर विपक्ष मुख्य रूप से कांग्रेस ने आक्रामक रुख अपनाया। तो उसके जवाब में भाजपा की तरफ से यह दावा किया गया कि दलाली का यह भुगतान तब हुआ था, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी। लेकिन प्रश्न यह है कि अगर यह बात सच है, तो सीबीआई कांग्रेस को क्यों बचा रही है? दस्तावेज मिलने के बाद उसने उसकी मुस्तैदी से जांच शुरू क्यों नहीं की? देश के लिए मुद्दा यह नहीं है कि रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार कांग्रेस की सरकार के समय हुआ, यह भाजपा के शासनकाल में। इसके लिए जो भी दोषी है, उसे सजा होनी चाहिए। अभी चूंकि सात साल से भाजपा सत्ता में है, तो जाहिर है, सवाल उससे ही पूछे जाएंगे। उसे इस प्रकरण में उठने वाले प्रश्नों के विश्वसनीय उत्तर जनता के सामने रखना चाहिए। लेकिन उसने आरोप के बदले आरोप मढ़ने का अपना पुराना तरीका अपनाया।
अब कांग्रेस ने मांग की है कि ताजा खुलासे की रोशनी में संयुक्त संसदीय जांच दल की नियुक्ति होनी चाहिए। अगर भाजपा को सचमुच भरोसा है कि ऐसी जांच से कांग्रेस फंसेगी, तो वह इस मांग को स्वीकार क्यों नहीं कर लेती? कांग्रेस की दूसरी मांग है कि सरकार इलेक्ट्रॉल ब़ॉन्ड्स की सारी जानकारी सार्वजनिक कर दे। उससे पता चल जाएगा कि पैसा किसे मिला। यह मांग इस प्रकरण में और व्यापक संदर्भ में भी उचित है। इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स का ममला शुरू से विवाद और संदेहों से घिरा हुआ है। यह जिम्मेदारी भाजपा की है, वह इस मामले में अपना दामन पाक-साफ साबित करे। आरोप के बदले जवाबी आरोप मढ़ने से यह जरूर होता है कि सत्ताधारी दल के समर्थकों को विवेकहीन हो चुकी बहस में शोर मचाने का तर्क मिलता है। लेकिन उससे समस्या का समाधान नहीं होता। ना ही उससे किसी संदेह का निवारण होता है। बल्कि उससे अलग-अलग 'सच' और सोच के साथ जीने की प्रवृत्ति से आम जनमत और विभाजित होता है। इसके दीर्घकालिक परिणाम खराब ही होने हैँ।

नया इण्डिया

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