सम्पादकीय

अपने दुश्मनों से समझौता करने पर क्यों मजबूर हुआ तालिबान

Gulabi
26 Aug 2021 4:03 PM GMT
अपने दुश्मनों से समझौता करने पर क्यों मजबूर हुआ तालिबान
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अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) अपने दुश्मनों के साथ समझौते पर मजबूर हो गया है

पंकज कुमार।

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) अपने दुश्मनों के साथ समझौते पर मजबूर हो गया है. तालिबान के खिलाफ जंग लड़ने वालों से वो हाथ मिलाने की फिराक में है. अफगानिस्तान में अमेरिकी दोस्तों को तालिबान अपनी सरकार में अहम पदों से नवाजना चाहता है, ताकि तालिबान मजबूत सरकार बना सके और अफगानिस्तान में सिविल वॉर का डर खत्म हो जाए. अफगानिस्तान में तालिबान अपनी सरकार बनाने में जुटा है. तालिबान की कोशिश एक समावेशी सरकार (Inclusive Government) बनाने की है. इसके लिए तालिबान कई जातीय नेताओं (Ethnic Leaders) के संपर्क में है.

उसे डर है कि इन वॉर लॉर्ड्स को सरकार में शामिल नहीं कराया गया तो 90 के दशक जैसा कलह और आंतरिक विद्रोह अफगानिस्तान में फिर से शुरू हो सकता है. इसलिए तालिबान अपनी सरकार में आठ लोगों को शामिल करना चाहता है, जो अलग-अलग जाति के नेता हैं और तालिबान के खिलाफ लड़ते रहे हैं. तालिबान इस कड़ी में हामिद करजई और अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह जैसे नेताओं से मीटिंग कर रहा है. तालिबान चाहता है कि उज्बेक, ताजिक और हाजरा जाति के जो वॉर लॉर्ड्स हैं उनके साथ समझौता हो और समावेशी सरकार मज़बूत रूप से पदस्थापित हो.
वो जातीय नेता जिन्हें तालिबान अपनी सरकार में शामिल करना चाहता है
पहला नाम है गुलबुद्दीन हिकमतयार का जो 72 साल की उम्र की दहलीज पार कर चुका है. ये शख्स अफगानिस्तान का पूर्व प्रधानमंत्री रहा है और हिज्ब-ए-इस्लामी का शक्तिशाली नेता रह चुका है. कोल्ड वॉर के समय यूएस ने इसे ट्रेनिंग दिया था और रूस के खिलाफ चली जंग में ये मुजाहिद्दीन फोर्सेज का हिस्सा बन लड़ाई में शामिल था. पिछले 25 सालों में तालिबान का दोस्त और दुश्मन दोनों रह चुका है. यूएस वर्तमान में इसे (Specially Designated Global Terrorist) करार दे चुका है. अलकायदा का हिमायती रहा हिकमतयार यूएस और नाटो फोर्सेज पर सुसाइड हमले का पैरोकार रहा है. हाल में उसने कहा है कि अफगनिस्तान में सरकार बातचीत और चुनाव के जरिए बननी चाहिए. फिलहाल तालिबान के संपर्क में रहने वाला हिकमतयार आईएसआई से गहरा ताल्लुक रखता है. इसलिए ये अहम प्लेयर माना जा रहा है.
दूसरा नाम है हामिद करजई का. 63 साल के हामिद करजई अमेरिका के टेकओवर के बाद पहले राष्ट्रपति बने थे. हामिद उन लोगों से बात कर रहे हैं, जो कभी उन्हें मारने की फिराक में रहते थे. करजई ने एक वीडियो के सहारे मैसेज दिया है कि वो अफगानिस्तान में ही रहना चाहते हैं और उस वीडियो में उनकी दो बेटियां भी दिखाई पड़ रही हैं. हामिद करजई भारत में पढ़े लिखे हैं और यूएस द्वारा ड्रोन के प्रयोग का विरोध करते रहे हैं. हामिद करजई ने साल 2014 के सिक्योरिटी पैक्ट पर साइन करने से मना कर दिया था, जिसके तहत यूएस के सैनिक साल 2014 के बाद अफगानिस्तान में रह सकते थे.
इस कड़ी में एक नाम है अब्दुल्ला अब्दुल्ला. डॉक्टर से राजनीतिज्ञ बना ये शख्स नॉर्दन एलायंस के नेता अहमद शाह मसूद का सलाहकार था. ये ताजिक जाति से ताल्लुक रखता है और रूस और तालिबान के खिलाफ लड़ चुका है. फिलहाल अब्दुल्ला अबदुल्ला तालिबान के साथ शांतिपूर्ण तरीके से पावर ट्रांसफर की बात कर रहा है. ये अफगानिस्तान के राष्ट्रपति पद के लिए दो बार प्रयास कर चुका है और साल 2014 में राष्ट्रपति पद के बेहद करीब था. अमेरिकी मध्यस्थता की वजह से गनी और अब्दुल्ला के बीच पावर शेयरिंग को लेकर डील हुई थी.
अब्दुल रशीद दोस्तम भी पहले तालिबान के दुश्मन थे. लेकिन बदलते वक्त में तालिबान उनसे समझौता करने को तैयार है. 67 साल के दोस्तम पूर्व वाइस प्रेसिडेंट और वॉर लॉर्ड हैं, जो नॉर्दन एलायंस का हिस्सा थे. दोस्तम साल 1996 से लेकर 2001 तक सत्ता में रहे हैं. दोस्तम ने गनी सरकार को सपोर्ट किया था और साल 2013 से लेकर अगले 6 साल तक वो उपराष्ट्रपति रह चुके हैं. दोस्तम पर मास किलिंग से लेकर पॉलिटिकल राइवल के बलात्कार का आरोप लग चुका है, जिससे वो इन्कार करते रहे हैं. दोस्तम काफी सालों से तुर्की में रह रहे थे. तालिबान जब अफगानिस्तान में कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहा था तो दोस्तम से उम्मीद की जा रही थी कि नॉर्दन सिटी के मजार-ए-शरीफ को बचाने के लिए वो लड़ाई लड़ेंगे लेकिन वो भाग निकले, वो फिलहाल कहां हैं इसका पता नहीं है.
तालिबान अपने जानी दुश्मनों को भी पटाने में लगा है?
अपने आपको अफगानिस्तान का केयर टेकर राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह से भी तालिबान संपर्क कर रहा है. ये तालिबानी द्वारा कई हमलों में बाल बाल बचे हैं. ये फिलहाल पंजशीर वैली में हैं और ताजिक नेता अहमद मसूद के साथ हाथ मिलाकर तालिबान से अंतिम दम तक लड़ाई लड़ने का दम भर रहे हैं. सालेह अहमद मसूद के साथ हाथ मिलाकर पंजशीर से तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. 32 साल के अहमद मसूद तालिबान विरोधी ताकतों का चेहरा बन कर उभरे हैं. यूके से पढ़ाई कर चुके मसूद पश्चिम के देशों से हथियार की मांग कर रहे हैं. अहमद मसूद पर भी तालिबान डोरे डाल रहा है जो पंजशीर प्रोविंस में तालिबान से जोरदार जंग लड़ रहे हैं.
इस लिस्ट मे एक नाम अता अहमद नूर का भी है. 57 साल के ताजिक नेता अहमद नूर तालिबान के सख्त विरोधी रहे हैं. ये बाल्ख प्रोविंस के गवर्नर भी रहे हैं, जो बेहद धनी प्रोविंस माना जाता है. साल 2018 में राष्ट्रपति अशरफ गनी ने नूर को गवर्नर पद से हटा दिया था. अहमद नूर तालिबान के हमले के बाद मजार-ए-शरीफ से दोस्तम के साथ भाग निकले हैं, ऐसा कहा जा रहा है, लेकिन तालिबान इनको समावेशी सरकार का हिस्सा बनाने की इच्छा रखता है.
इन नामों में एक और नाम मोहम्मद करीम खलीली का है. हाजरा एथनिक ग्रुप से ताल्लुक रखने वाले खलीली अफगान राजनीतिज्ञों के डेलिगेशन के साथ 15 अगस्त के बाद पाकिस्तान पहुंचे थे. अपने फेसबुक पर खलीली ने लिखकर मंशा साफ कर दिया है कि पाकिस्तान की मदद से तालिबान उनके संपर्क में हैं. मोहम्मद करीम खलीली तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में स्टेबल सरकार की उम्मीद कर रहे और कह रहे हैं कि अफगानिस्तान का भविष्य तालिबान द्वारा स्टेबल सरकार बनाने पर निर्भर करेगा.
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