सम्पादकीय

महात्मा गांधी से नरेंद्र मोदी तक की राजनीति में नमक क्यों शामिल रहता है

Gulabi Jagat
15 March 2022 8:21 AM GMT
महात्मा गांधी से नरेंद्र मोदी तक की राजनीति में नमक क्यों शामिल रहता है
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उत्तर प्रदेश के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत के कारणों में से एक राशन भी है
अनिमेष मुखर्जी।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत के कारणों में से एक राशन भी है. इसी दौरान एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें महिला कह रही थी कि उसने प्रधानमंत्री का नमक (Salt) खाया है, तो वोट देना पड़ेगा. चुनावों का नतीजा 10 मार्च को आया इसी 10 मार्च से दो दिन बाद 12 मार्च 1930 को गांधी जी (Gandhi Ji) ने डांडी यात्रा शुरू की थी. इस यात्रा के मूल में भी नमक पर लगने वाला टैक्स था, जिसने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं. हालांकि, चाणक्य नीति के मुताबिक मौर्य साम्राज्य में नमक पर 6 टैक्स लगते थे, इनमें से 4 व्यापारी देता था और 2 खरीदने वाले की जेब से जाते थे.
कुल मिलाकर सत्ता और नमक का बहुत पुराना याराना है. इतना पुराना कि हमारी शुरुआत ही नमक के समुद्र से हुई है. हमको लगता है कि जल ही जीवन है और पृथ्वी पर 80 प्रतिशत पानी है, लेकिन हम भूल जाते हैं कि ये सारा पानी नमकीन है और नमकीन पानी के बिना न जीवन संभव होता न मानव सभ्यता. कैसे? आइए जानते हैं.
नमक है तो जीवन है
खाना बनाने वाले जानते हैं कि सब्ज़ियों में नमक डालने से वे पानी छोड़ देती हैं. रोज़मर्रा के जीवन की ये घटना विज्ञान में ऑसमोसिस कहलाती है. ऐसा होना बहुत बड़ी बात नहीं लगती, लेकिन यही हमारे आपके जीवन और मानव सभ्यता का आधार है. यह तो हम जानते हैं कि शरीर से निकलने वाला हर द्रव चाहे वह खून हो या पसीना या कुछ और, नमकीन होता है. इसका कारण यही ऑस्मोसिस है. मानव शरीर में 72 प्रतिशत पानी है और इस पानी में लगभग 250 ग्राम नमक है.
शरीर के अंदर कोशिकाओं में कई झिल्लियां होती हैं. इनमें द्रव इधर से उधर नमक के आयनों के चलते ही जाता है. इसी तरह दिमाग से न्यूरॉन के ज़रिए शरीर के अंगों तक संदेश पहुंचाने में यही नमकीन आयन काम आते हैं. हमारे सांस लेने और दिल के धड़कने में जो मांसपेशियां काम करती हैं, वे भी इन आयनों की वजह से ही हरकत करती हैं. इसका मतलब हुआ कि नमक नहीं होता तो आपके शरीर की कोशिकाओं में कोई चीज़ न जा पाती, न निकल पाती, न आपका दिल धड़कता न आपके फ़ेफड़े सांस भर पाते, तो फिर जीवन कैसे संभव होता.
जीवन का तो ठीक, लेकिन आप सोच रहे होंगे कि नमक का मानव सभ्यता के विकास से क्या लेना देना. देखिए, हमने ऊपर ही आपको बताया कि शरीर के तमाम द्रव नमकीन होते हैं. इसलिए, मांसाहारी जीवों की सोडियम क्लोराइड की ज़रूरत उससे पूरी हो जाती है. शाकाहारी जानवरों के लिए यह थोड़ा सा मुश्किल है, लेकिन वे इसे मिट्टी और दूसरी चीज़ों को चाटकर पूरी कर लेते हैं. इंसान ने जब खेती करके खाना शुरू किया, तो उसके भोजन में नमक की कमी थी. उसे पूरा करने के लिए लोग उन जगहों के आस-पास बसे, जहां नमक आसानी से उपलब्ध था. व्यापार शुरू हुआ, तो बंदरगाह भी इसी काम आए. यहां तक कि प्राचीन रोम में सबसे पहली पक्की सड़क इसलिए बनी कि नमक सीधे सत्ता तक पहुंच सके. नमक बनाना सबसे पहला उद्योग बना और नमक सबसे पहली कमोडिटी.
नमक इश्क का
गुलज़ार साहब के तरीके से कहें तो नमक का इश्क से करीबी राब्ता है. शायद आपने सुना हो कि प्राचीन रोम में वेतन के तौर पर नमक दिया जाता था, यहीं से सैलरी शब्द की उत्पत्ति हुई. ये कहानी का एक पहलू है. एक और शब्द है 'सैलेशियस' इसका इस्तेमाल अश्लील या कामुक के अर्थ में होता है. रोम में प्रेम में डूबे इंसान को 'सैलेक्स' कहते थे जहां से सेलेशियस शब्द की उत्पत्ति हुई. सैलेक्स और सैलेशियस दोनों का मूल नमकीन है. मार्क कर्लन्स्की की किताब 'सॉल्ट' के मुताबिक, प्राचीन समय में जिन जहाज़ों पर नमक लदा होता, उनपर चूहे ज़्यादा पैदा होते. इसलिए नमक को उत्पादकता से जोड़ लिया गया.
यहां तक कि पुराने वैज्ञानिक वैन हैल्मॉन्ट मानते थे कि इंसान के पसीने में भीगी कमीज़ को 22 दिन गेंहूं के साथ रखने से चूहे अपने आप पैदा हो जाते हैं. इन्हीं सबके चलते दुनिया में शादी की बहुत सी रस्मों में वर-वधु अपने पास नमक रखते हैं. दुनिया में लगभग सभी संप्रदायों, धर्मों यहां तक कि आदिवासी समुदायों तक में धार्मिक शुद्धता के व्रत आदि में नमक की मनाही रहती है, क्योंकि नमक को अवचेतन रूप से शारीरिक संबंधों की इच्छा से जोड़ कर देखा जाता है.
खास तौर पर भारत की बात कहें, तो ऋगवेद में नमक का ज़िक्र नहीं है, लेकिन इसके बाद के वैदिक साहित्य में इसका काफ़ी वर्णन है. इसकी धार्मिक मान्यता भी थी. इस समय पर छात्रों, विधवाओं और नव दंपत्ति को शादी के पहले तीन दिन तक नमक खाने की मनाही थी. कारण, तो आप समझ ही गए होंगे. भारतीय नमक का एक और खास प्रकार है, काला नमक. आज दुनिया पिंक सॉल्ट और रॉक सॉल्ट की बात करती हो, लेकिन आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रंथों में भी काले नमक का ज़िक्र मिलता है. काले नमक में मौजूद सल्फ़ेट की वजह से इसका स्वाद और रंग अलग हो जाता है और इसकी अलग पहचान बनती है. वैसे हम आप जो काला नमक खाते हैं, उसमें से ज़्यादातर भट्टी में पकाकर बनता है. हालांकि भट्टी में पकाए गए नमक का अर्थ यह नहीं कि ये कम गुणवत्ता वाला है. कोरिया में एमथीस्ट बैंबू स़ॉल्ट (Amethyst Bamboo) बनता है. इसमें बांस के अंदर नमक को पकाते हैं और यह प्रक्रिया 9 बार दोहराई जाती है. इससे जो नमक बनता है उसकी कीमत 3000 रुपए किलो के आस-पास होती है.
नमक की केमिस्ट्री
ये तो आप जान ही गए कि नमक और इश्क दोनों में केमिस्ट्री एक कॉमन फैक्टर है, लेकिन नमक की अपनी केमिस्ट्री भी किसी प्रेम कहानी से कम नहीं. सोडियम एक ऐसी धातु है जिसे पानी में डालो तो आग लग जाए. थोड़ा सा छेड़ दो, तो फट जाए. दूसरी तरफ़ क्लोरीन एक जहरीली गैस है. पहले विश्व युद्ध में जर्मन सेना ने इसी क्लोरीन का इस्तेमाल रसायनिक हथियार के तौर पर किया था, लेकिन जब ये सोडियम और क्लोरीन दोनों मिलते हैं तो सोडियम क्लोराइड बनता है जो न ज़हरीला है, न विस्फोटक. मतलब अच्छे-अच्छे विस्फ़ोटक प्रवृत्ति के लोगों को इश्क की ये केमिस्ट्री शांत कर देती है.
इसी तरह की प्रक्रिया से सोडियम क्लोराइड के अलावा पोटेशियम क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड जैसे तमाम सॉल्ट बनते हैं, लेकिन उनमें से ज़्यादातर का स्वाद हमारे लिए मुनासिब नहीं होता. इसके अलावा जब समुद्र के नमकीन पानी की बात करें, तो उसमें सिर्फ़ सोडियम क्लोराइड नहीं होता, तमाम लवण होते हैं. ऐसे में उसे पीना सही नहीं होता. समुद्र का पानी पीने से शरीर की कोशिकाओं की केमिस्ट्री बिगड़ जाती है और इंसान को भ्रम डिहाइड्रेशन जैसी समस्याएं हो जाती हैं. हालांकि आज हम मेहनत कम करते हैं और नमक ज़्यादा खाते हैं, जिसके नतीजे में तमाम बीमारियां हमें घेर रहीं हैं. इसलिए संभव हो तो अपने खाने में नमक थोड़ा कम करें और पसीने में इसे थोड़ा ज़्यादा बहाएं.
शायद आपने वो फ्रेंच लोक कथा सुनी हो जिसमें एक राजकुमारी अपने पिता से कहती है कि वो उन्हें नमक जितना प्यार करती है और राजा उसे राज्य से निकाल देते हैं. बाद में राजा को अपनी गलती का अहसास होता है. मानव सभ्यता की नींव रखने वाले नमक की महत्ता हमेशा सभ्यताओं में हमेशा से रही है. मिस्र की ममी से लेकर कालिया के गब्बर सिंह को नमक याद दिलाने तक, नमक हर जगह छिड़का जाता रहा है. बस ये इतना ज़्यादा घुला मिला है कि हमें इसका अहसास नहीं होता. तो चलिए, किस्सा यहीं खत्म करते हैं, ताकि कुछ नमकीन हो जाए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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