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अयोध्या मामले में केंद्र सरकार टकराव नहीं चाहती और हम भी कोई टकराव नहीं चाहते
उमा भारती,
अयोध्या मामले में केंद्र सरकार टकराव नहीं चाहती और हम भी कोई टकराव नहीं चाहते।... हम चाहते हैं कि मामला आपस में वार्ता से सुलझे, यह सुनने में तो बहुत अच्छा है। शांतिपूर्वक सुलझे, तो बहुत अच्छा है। उलेमा और संत आपस में बैठ जाएं और सुलझा लें, तो बहुत अच्छा है।... मैंने बचपन में एक बात सुनी थी कि कबूतर जब बिल्ली को देखता है, तो वह जानता है कि बिल्ली उसको खा जाएगी। बिल्ली को कबूतर बहुत स्वादिष्ट लगता है। कबूतर इतना भोला और नादान होता है कि वह सोचता है कि आंख बंद कर लूंगा, तो बिल्ली दिखेगी नहीं। वह आंखें बंद कर लेता है और सोचता है कि बिल्ली दिखेगी नहीं, तो होगी ही नहीं। इस तरह से बिल्ली उसको खा जाती है। 1947 की स्थिति में धार्मिक स्थलों को बनाए रखना यानी कबूतर की तरह बिल्ली से आंखें मूंदना। जो तनाव बिल्ली की तरह पदचाप बढ़ाते हुए इस देश में आ रहा है, उसकी तरफ से कबूतर की भावना केअनुकूल आंखें मूंदना है और यह सोचकर कि 1947 की स्थिति में सब कुछ रखा जाए, तनाव को संरक्षित करके रखा जा रहा है, आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए!
मैं एक उदाहरण दे रही हूं। मैं बीस दिनों पहले बनारस गई थी। मैं जिस दिन वहां गई, उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी। मैंने ज्ञानवापी का स्थान कभी देखा नहीं था। मैं उसी स्थान को देखने के लिए वहां गई थी। उस जबरदस्त बारिश में भीगते हुए मैं उस जगह पर पहुंची, जिसमें विश्वनाथ भगवान का मंदिर तोड़कर औरंगजेब ने मस्जिद बनाई थी।... मैंने मंदिर के भग्नावशेष पर मस्जिद को खड़े देखा।... यहां पर मस्जिद बनाना था, तो मंदिर का अवशेष क्यों छोड़ा गया? क्या उस मंदिर के अवशेष को छोड़ने के पीछे औरंगजेब की बदनीयत नहीं थी कि हिंदुओं की भावी पीढ़ियों को याद रहे कि उनकी औकात क्या है और मुसलमानों की पीढ़ियों को याद रहे कि उनकी ताकत क्या है
यह तो औरंगजेब की बदनीयत थी और फिर अंग्रेजों की बदनीयत। मैं कांग्रेस की सरकार से और यह विधेयक लाने वालों से पूछना चाहती हूं कि औरंगजेब की बदनीयत की विरासत को आप क्यों कायम रखना चाहते हैं, अंग्रेजों की बदनीयत की विरासत को आप क्यों कायम करना चाहते हैं? क्यों चाहते हैं कि यह तनाव बना रहे?... जब तक बनारस के घाट बने रहेंगे, तब तक लोग वहां जाते रहेंगे और जब तक लोग जाते रहेंगे, उस स्थान को देखते रहेंगे।... फिर ज्वाला को दबाने के लिए यह प्रयास कि 1947 की स्थिति में ही रहने दो, उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करो। यदि यह बदनीयत नहीं है, तो फिर विवाद को हल करने का सही तरीका नहीं है। विवाद को हल करने का सही तरीका यह है कि इस देश के प्रत्येक धार्मिक स्थल को, प्रत्येक पूजा स्थल को उसकी वास्तविक स्थिति में बहाल कर दिया जाए, चाहे वह मंदिर हो, चाहे मस्जिद हो।... यदि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई और यदि किसी मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनाया गया, तो पूरी तैयारी करके, पूरी सूची बनाकर उनकी वास्तविक स्थिति बहाल करनी चाहिए।
...कहीं ऐसा तो नहीं है कि संसद में इस बिल को लाकर इतिहास के साथ बेईमानी करने की कोशिश कर रहे हैं? क्या किसी तिथि के द्वारा किसी इतिहास को बदल सकते हैं?...कहीं ऐसा तो नहीं कि हम इसके द्वारा इतिहास से आंखें चुराने की कोशिश कर रहे हैं?... देश में हिंदुओं को भी रहना है और मुसलमानों को भी रहना है और दोनों को बराबर के हक से रहना है। न हिंदुओं के हक इस देश में कम होंगे, न मुसलमानों के हक देश में कम होंगे। अगर दोनों को इस देश में रहना है, तो उनकी आने वाली पीढ़ियों के रिश्ते क्या हों, यह हमें देखना होगा। अगर हम यह चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों के रिश्ते मधुरता से भरे हुए हों, उसमें कटुता न हो, तो सबसे बढ़िया तरीका होगा कि इस विधेयक का रूप यह होना चाहिए कि इस देश के प्रत्येक पूजा स्थल को उसकी वास्तविक स्थिति में बहाल किया जाए। यही सबसे बढ़िया समाधान होना चाहिए।
लोग कहते हैं कि अगर ऐसा होगा, तो बहुत ज्यादा विवाद हो जाएगा, उनका निपटारा कैसे होगा। विवाद तो वैसे भी होंगे...। भगवान के लिए आने वाली पीढ़ी को सुख से जीने दें, शांति में जीने दें...। अभी तक जितना रक्तपात हो चुका है, उसके लिए भगवान से माफी मांग लो, लेकिन आगे रक्तपात न होने पाए, इसकी तैयारी करो। इसके लिए कुछ भी करना पड़े, करो।

Rani Sahu
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