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गत दिनों रक्षा मंत्री ने एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से देश को बताया कि सेना में अब अग्निपथ स्कीम के तहत योग्य युवाओं को नौकरी दी जाएगी
Anand Singh
by Lagatar News
गत दिनों रक्षा मंत्री ने एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से देश को बताया कि सेना में अब अग्निपथ स्कीम के तहत योग्य युवाओं को नौकरी दी जाएगी. कहा गया कि जमाना तेजी के साथ बदल रहा है, अतः हमें भी बदलना होगा. सेना के कई अफसरों ने कहा कि अब पीढ़ी बदल रही है. हमें भी सेना तो उसी के अनुसार तैयार करना होगा.
लेकिन, सब कुछ इतना आसान नहीं दिखता है. जिस दिन से ये योजना लांच की गई है, उसी दिन से देश के कई हिस्सों से इसके विरोध में तल्ख स्वर उठ रहे हैं. अधिकांश छात्र मान रहे हैं कि यह सेना में एक तरीके से कांट्रैक्ट सिस्टम है, "बैक डोर एंट्री" स्कीम है, जिसके लिए देश तैयार नहीं. सेना की तैयारी कर रहे लोगों का मानना है कि वह दिन-रात इसलिए पसीना नहीं बहा रहे हैं कि वो 4 साल नौकरी करें और चार साल के बाद चंद रुपये लेकर अपने घर चले आएं.
छात्रों का कहना है कि मोदी सरकार ने हर साल एक करोड़ नौकरी देने का वादा किया था. वह तो पूरा हुआ नहीं. अब जो ये झुनझुना बजाया जा रहा है, इसका हर तरीके से विरोध होगा. ये लोग कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं.
सेना के कई पूर्व अफसर भी कह रहे हैं कि यह स्कीम सही नहीं है. इसका असर उन जवानों पर भी पड़ेगा, जो अभी सर्विस कर रहे हैं. अभी के हालात ऐसे नहीं कि आप सेना को थोड़ा भी डिस्टर्ब करें या फिर उसके इंफ्रास्ट्रक्चर में थोड़ी-बहुत भी छेड़खानी करें.
इन पूर्व अफसरों का मानना है कि अगर सरकार की मंशा साफ है तो उन्हें उसी तर्ज पर युवाओं को नौकरी देनी चाहिए, जिस तर्ज पर आज तक दी जाती रही है. सरकार अभी जिस तरीके से अग्निपथ स्कीम को लागू कर रही है, उससे तो यही लगता है कि अब सेना में भी ठेकेदारी प्रथा शुरू हो जाएगी. अगर ऐसा हो गया तो ये देश के लिए ठीक नहीं होगा. देश की सेनाएं बेहद अनुशासित हैं लेकिन इस किस्म से अगर "बैक डोर एंट्री" स्कीम होती है तो कोई गारंटी नहीं कि वे अनुशासित रह पाएंगी क्योंकि अंततः इंसान वो भी (सेना के जवान) हैं.
इस स्कीम का जो सबसे दुर्बल पक्ष है, जिस पर लोग सबसे ज्यादा प्रहार कर रहे हैं, वो है 4 साल के बाद 75 फीसद जवानों की छुट्टी. वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम कहते है कि सरकार 4 साल तक युवाओं को ट्रेंड करेगी, पैसे खर्च करेगी, उन्हें पैसे देगी और जब वह कुछ सीख जाएगा, ट्रेंड हो जाएगा, तो आप उसे घर भेज देंगे. फिर वह क्या करेगा? सेना को जब उसकी ज्यादा जरूरत होगी, तब आप उसे घर भेज देंगे. ऐसा 100 में से 75 लोगों के साथ होगा. जो 25 बचेंगे, वही आगे सर्वाइव कर पाएंगे. ये मापदंड कहीं से उचित नहीं.
यह सवाल सत्य है कि 4 लाख लोगों में से आप 1 लाख को ही क्यों सेना में कन्टीन्यू करेंगे? 3 लाख को आप घर क्यों भेज देंगे? जब चयन प्रक्रिया एक है, चयन प्रक्रिया के थ्रू ही 4 लाख लोगों को आप सिलेक्ट कर रहे हैं तो एक लाख लोगों को छांट देना कहीं से उचित नहीं. फिर साढ़े 17 से साढ़े 21 साल तक अगर किसी ने नौकरी कर ली तो साढ़े 21 के बाद उसे एक बार फिर से नौकरी की मशक्कत करनी पड़गी. वह कहां से नौकरी पाएगा? समाज में तो यही मैसेज जाएगा न कि देखो, सेना ने इसे 4 साल के बाद नमस्ते कर दिया. उस नमस्ते के बाद उन्हें दोबारा नौकरी पर कौन रखेगा, यह सोचने वाली बात है.
अगर भारत सरकार इस पर गौर कर हो रही आलोचनाओं के आलोक में कुछ संशोधन करती है तो ठीक अन्यथा आने वाले दिनों में विरोध का यह स्वर और बुलंद होगा. जाहिर है, देश एक नए विवाद में उलझता चला जाएगा जो आज की तारीख में कहीं से ठीक नहीं है.
Rani Sahu
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