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- मंदिर और शौचालय में आज...
हेमंत शर्मा .
सलाम चाचा. पूरे मुहल्ले के चाचा थे. उन्हें मैं पूरी अकीदत के साथ सलाम करता हूं. बरसों तक मैं उनकी आंखों से ही उन्हें पहचानता रहा. क्योंकि मुंह और नाक पर वे हमेशा गमछा बांधे रहते थे. साफ सफाई के औजार संभाले उनकी गंदगी ढूंढती आंखे ही हमें हमेशा दिखाई पड़ती थीं. जाड़ा, गर्मी और बरसात कोई भी महीना हो, सलाम चचा सुबह सात बजे ड्यूटी पर आ जाते और उनके कन्धे पर टंगी मशक हमारे कौतुक का कारण होती. बहुत दिनों तक मुझे मशक कोई जानवर जैसी दिखाई देती थी. मशक में सरकारी नल से पानी भरने की समूची प्रक्रिया हमारी उत्सुकता के केन्द्र में होती थी. चचा नालियों की सफ़ाई को काम की तरह नही बल्कि धर्म की तरह करते थे. मशक में पानी भरने के उनके कर्मकांड को मेरी जिज्ञासा शुरू से अंत तक निहारती रहती. कन्धे पर मशक टांगें, गमछे से मुंह बांधे सलाम चचा हमें कोई जादूगर से लगते थे.