सम्पादकीय

सीमित दायरे में ओपीएस क्यों?

Rani Sahu
13 Jun 2023 1:52 PM GMT
सीमित दायरे में ओपीएस क्यों?
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13 जनवरी 2023 का ऐतिहासिक दिन कर्मचारियों के लिए हमेशा याद रहने वाला अध्याय छोड़ कर गया है। प्रदेश का सरकारी कर्मचारी हमेशा इसे याद रखेगा क्योंकि इसी दिन कर्मचारियों की लंबित मांग को वर्तमान की सुक्खू सरकार ने मानते हुए ओपीएस को लागू करने की घोषणा की और अब पुरानी पेंशन को लागू भी कर दिया। पुरानी पेंशन सरकारी कर्मचारियों के लिए बेहतर और सुरक्षित विकल्प है। ओपीएस बहाली की घोषणा करने वाला हिमाचल प्रदेश देश का पांचवां राज्य बन गया है। पुरानी पेंशन की मांग को स्वीकारते हुए लगभग डेढ़ लाख कर्मचारियों को बुढ़ापे का सहारा देकर इतिहास रचा है। विधानसभा चुनाव के दौरान ओपीएस को बहाल करना वर्तमान सरकार की दस में से एक गारंटी थी और इसी गारंटी ने सरकार को सत्ता में आने के लिए फायदा भी दिया। प्रदेश का ऐसा सौभाग्य है कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने जो वादा किया था वो सत्ता में आने के बाद पूरा भी किया। प्रदेश के लाखों कर्मचारी पुरानी पेंशन की बहाली के लिए वर्ष 2015 से लगातार संघर्षरत थे तथा अब एक अप्रैल 2023 से उनको इसका लाभ मिलना शुरू भी हो जाएगा।
जिस प्रदेश का मुखिया अपनी कार्यशैली से अपने लोगों के जीवन की खुशहाली के लिए योजनाओं को धरातल पर उतारता है, तब उस प्रदेश के सुखद भविष्य को कोई नकार नहीं सकता। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होते हैं। उन्हीं के कठिन परिश्रम और सहयोग से राज्य सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को सही दिशा में क्रियान्वित कर सकती है। कर्मचारियों का स्वाभिमान लौटाने तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुरानी पेंशन योजना पर ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। प्रदेश के संसाधन सीमित होने के बाद भी मुख्यमंत्री सुक्खू ने यह फैसला लिया जिसका अनुसरण अब दूसरे प्रदेश भी करेंगे जिनके संसाधन हमसे बेहतर हैं। वर्ष 2003 से सेवानिवृत्ति के पश्चात कर्मचारियों की स्थिति दयनीय बनती जा रही थी। चंद रुपए जो पेंशन के रूप में मिलते थे उससे घर का खर्च चलाने के लाले पड़ जाते थे। इसी स्थिति को भांपते हुए कर्मचारियों ने एकजुटता का रास्ता अपनाया और संघर्ष किया तथा प्रदेश के मुखिया ने ओपीएस रूपी फल प्रदेशवासियों को प्रदान किया। आंदोलन के समय में भी हिमाचल के बोर्ड और निगमों के कर्मचारियों ने भी बढ़ -चढ़ कर सहयोग दिया और धर्मशाला आभार रैली में भी अपना समर्थन दिया। लगातार कई वर्ष मेहनत करने के बाद एक व्यक्ति कर्मचारी चयन आयोग या लोक सेवा आयोग से चयनित होकर नौकरी में आता है। चयन आयोग उनको विभागों में या बोर्ड या कॉर्पोरेशन में नियुक्ति देता है। प्रदेश के इतिहास का काला सच यह भी है कि प्लेसमेंट अगर विभागों में होती है तो आज उन्हें पुरानी पेंशन का लाभ मिलेगा, पेंशन उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगी और जिंदगी के आखिरी मुकाम में उनको ठोकरें नहीं खानी पड़ेंगी। लेकिन अगर बिजली बोर्ड, एचआरटीसी और शिक्षा बोर्ड में भी होती है तब भी पेंशन मिलेगी, लेकिन इसके अलावा भी 15 से 20 ऐसे बोर्ड व कॉर्पोरेशन तथा सहकारी विपणन संघ हैं जो पेंशन से वंचित हैं जिनमें कर्मचारियों की संख्या लगभग 10000 के करीब है तथा लगातार यह संख्या कम होती जा रही है।
इन संगठनों में कार्यरत कर्मचारी समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे क्या सरकारी कर्मचारी हैं, धन्नासेठों के कर्मचारी हैं या प्राइवेट कर्मचारी हैं। सरकार ने खुद के बनाए हुए इन संगठनों के प्रति कभी गंभीरता से नहीं सोचा। इन कर्मचारियों को कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफओ) में रखकर उनका मानसिक शोषण हो रहा है। कई बार इन कर्मचारियों ने अपनी मांग रखी, लेकिन भूतकाल की सरकारों ने ध्यान देने की तकल्लूफ नही उठाई और न तो इनकी यूनियनें इतनी मजबूत हैं कि अपनी जायज बात मनवाने के लिए सरकार को विवश कर दें। मुख्यमंत्री ने चुनाव से पूर्व यह विश्वास दिलाया था कि सत्ता में आने के बाद वह सभी बोर्ड व कॉर्पोरेशन को पेंशन के दायरे में लेकर आएंगे, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इन बोर्ड व कॉर्पोरेशन में 10000 के करीब कर्मचारी अपने विभाग में कर्मचारियों की समस्या से जूझने के बावजूद 2 से 3 कर्मचारियों का काम अकेले कर रहे हैं। पूरी उम्र पढ़ाई करके तथा सरकारी नौकरी हासिल करके भी वे पेंशन से वंचित हंै तथा सरकारी सेवा में आने के बाद भी खुद को ठगा सा महसूस करते हंै। सरकार की हर योजना तथा प्रत्येक कार्य में वे अपना पूरा सहयोग देते हंै। सरकार के सारे नियम यहां लागू किए जाते हैं, लेकिन पेंशन के वक्त उनसे सौतेला व्यवहार किया जाता है तथा सरकार उनसे पल्ला झाड़ लेती है। इसका दर्द उन कर्मचारियों की रिटायरमेंट के बाद देखो जो दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं तथा सेवानिवृत्ति के बाद सम्मानजनक जीवन नहीं जी पा रहे हैं। आज प्रदेश के लाखों कर्मचारी अपने उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रहे हैं, लेकिन कर्मचारियों का यह तबका आज भी निराशा में है।
निगम और बोर्ड कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन लाभ न देकर उनका मजाक ही बना है तथा जीवन के अंतिम पड़ाव में उन कर्मचारियों को ठोकरें खाने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने सेवा के दौरान प्रदेश की समृद्धि में जीवन का अहम समय कुर्बान किया है। राजस्थान की गहलोत सरकार इस दिशा में एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचकर इतिहास रचने वाली है तथा 15 जून तक जीपीएफ लिंक पेंशन योजना लागू करके पेंशन निधि का गठन कर रही है जिसको लेकर वित्त विभाग ने दिशा-निर्देश जारी भी कर दिए हंै। वर्तमान की सुक्खू सरकार से इन कर्मचारियों को काफी आशाएं हैं तथा उनको पूर्ण विश्वास है कि वर्तमान सरकार उनकी आशाओं पर खरा उतरेगी। मुख्यमंत्री जी घोषणाएं तो कर रहे हैं कि सभी को पेंशन के दायरे में लेकर आएंगे, लेकिन धरातल पर कोई काम बनता दिख नहीं रहा है। मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि चाहे सरकार या सरकार का संगठन हो, जिसमें ताउम्र सेवा की है, वाजिब पेंशन लगाए ताकि उन सीनियर सिटीजन की गरिमा बनी रहे तथा सरकार का कहना सही भी लगे कि हमने पेंशन सही मायने में बहाल कर दी है। ओपीएस के दायरे को बढ़ाया जाना चाहिए।
संजय कुमार
समाज सेवक
By: divyahimachal
Rani Sahu

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