सम्पादकीय

ईमानदारों की श्रेणी में आने से क्यों कतराते हैं अफ़सर

Triveni
20 Dec 2022 2:48 PM GMT
ईमानदारों की श्रेणी में आने से क्यों कतराते हैं अफ़सर
x

फाइल फोटो 

कैसी विडंबना है कि आईएएस अफ़सरों में यह होड़ लगी है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कैसी विडंबना है कि आईएएस अफ़सरों में यह होड़ लगी है कि कहीं उनकी गिनती ईमानदार अफ़सरों की श्रेणी में न होने लगे! अगर ऐसा हुआ तो उन्हें पनिशमेंट पोस्टिंग मिलने लगेगी। दरअसल, यह ट्रेंड अफ़सरों की भाषा या सोच को नहीं, बल्कि सरकारों के स्वभाव को दर्शाता है।

ज़्यादातर सरकारें उन्हीं अफ़सरों को अच्छा या बहुत अच्छा मानने लगी हैं जो उनकी सहूलियत के हिसाब से चीजों को तोड़-मरोड़ सकें या डेटा को उनकी प्रशंसा में पेश कर सकें। कोई ईमानदार अफ़सर तो ऐसा करने से रहा, इसलिए उसे लूप लाइन में डाल दिया जाता है। ख़ासकर, चुनावों के वक्त तो ऐसा सर्वाधिक होता है। हर कोई जानता है कि चुनाव घोषणा के पहले थोक में कलेक्टर-एसपी के तबादले किए जाते हैं। क्यों? ताकि मौजूदा सरकार के हिसाब से चीजें चल सकें।
दरअसल, हाल में आईआईएम ने एक सर्वे किया जिसमें मौजूदा और भावी आईएएस से सवालों के ज़रिए यह निष्कर्ष निकाला गया कि ये अफ़सर केवल इसलिए घूस लेना प्रिफर करते हैं ताकि वे ईमानदार श्रेणी में न गिने जाएँ। अगर ऐसा होता है तो उन्हें पनिशमेंट पोस्टिंग दे दी जाएगी। फिर कारण यह भी है कि घूस लेते पकड़े जाने की सजा भी बहुत ज़्यादा नहीं है।
हमारी व्यवस्था इतनी लचर है कि मामला आगे चलकर फिस्स हो जाता है और अक्सर इस तरह के आरोपियों का दोष साबित ही नहीं हो पाता। लोग बरी हो जाते हैं। कहीं उन्हें दूसरे अफ़सर सपोर्ट कर देते हैं और कई वकील भी ऐसे मामलों को लड़कर जीतने में उस्ताद होते हैं।
जनता सोचती है कि नए बच्चे जब बड़े अफ़सर बनकर काम करेंगे तो वे लोगों की मजबूरियों, असल समस्याओं को ज़्यादा क़रीब से देख पाएँगे या समझ पाएँगे। हो सकता है कुछ देर, कुछ दिन, कुछ महीनों या कुछ सालों तक ऐसा होता भी हो, लेकिन बाद में हमारी भ्रष्ट व्यवस्था उस युवा अफ़सर को इस तरह चारों ओर से जकड़ लेती है कि वह अपनी मर्ज़ी से हिल- डुल भी नहीं पाता।
ऐसे में ये अफ़सर भ्रष्ट होने को लालायित होते हैं तो कोई अचरज की बात नहीं है। व्यवस्था ही जब उन्हें भ्रष्ट बनाने पर तुली हो तो कोई क्या कर सकता है? ख़ैर ईमानदारी की चमक अलग ही होती है। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार अफ़सर बचे ही नहीं हों। बहुत हैं।
भ्रष्टाचारियों की संख्या से भी ज़्यादा आज ईमानदार अफ़सर मौजूद हैं, लेकिन जैसे कि कहा जाता है - एक मछली, पूरे तालाब को गंदा कर देती है। वही हाल यहाँ भी है। कुछ भ्रष्ट अफ़सरों के कारण पूरी नौकरशाही बदनाम होती रही है और अब भी बदनाम है। हालाँकि आप ईमानदार बने रहना चाहते हैं तो कोई ताक़त आपको डिगा नहीं सकती। बस, साल में तीन- चार ट्रांसफ़र झेलने को तैयार रहना होता है।

Next Story