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मध्यप्रदेश बीजेपी के कार्यकर्ताओं में क्यों है बेचैनी
दिनेश गुप्ता।
गुना के सांसद केपी यादव (KP Yadav) ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) को पत्र लिखकर केन्द्रीय नागरिक विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और उनके समर्थक मंत्री और विधायकों की शिकायत की है. सिंधिया और उनके समर्थकों को लेकर यादव की शिकायत यह है कि सांसद होने के बाद भी उन्हें कार्यक्रमों में नहीं बुलाया जाता. शिलापट्टिका में भी नाम नहीं लिखा जाता.
केपी यादव ने ही पिछले लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को पराजित किया था. सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद यादव की राजनीति एक बार फिर वहीं आकर ठहर गई है, जहां से वे कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर हुए थे. सिंधिया के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग की राजनीति पूरी तरह से बदल गई है.
शिवराज के पास था यादव की समस्या का समाधान?
के पी यादव के पत्र में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उनका हल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी निकाल सकते थे. स्थानीय सांसद को सरकारी कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाने के निर्देश पहले से ही हैं. लेकिन, यादव ने पत्र सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा है. जाहिर है कि यादव अपने पत्र के माध्यम से व्यापक संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. प्रदेश की ओबीसी राजनीति से भी इसे जोड़कर देखा जा रहा है.
के पी यादव मध्यप्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता भी हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली उस राज्य स्तरीय समिति के सदस्य भी हैं जो केन्द्र सरकार, विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों में व्यय की जाने वाली राशि के अधिकतम उपयोग को सुनिश्ति करती है.
अन्य सांसदों की तुलना में यादव को पार्टी लगातार महत्व दे रही है. उन्होंने विभिन्न समितियों में भी नामजद किया जा रहा है. इसके बाद भी सांसद का आरोप है कि सिंधिया समर्थक मंत्री सांसद की अध्यक्षता वाली समिति अघोषित तौर पर बहिष्कार करते हैं. यादव ने पार्टी के निष्ठावान और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का उल्लेख भी पत्र में किया है. राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को यादव द्वारा यह पत्र पिछले माह लिखा गया था. लेकिन, वायरल दो दिन पहले हुआ है. पत्र का वायरल होना इस बात की ओर इशारा करता है कि सिंधिया के बीजेपी में आने से पार्टी में जमीनी स्तर पर भी कई बदलाव आए हैं.
सिंधिया के बीजेपी में आने से प्रभावित हुई केपी यादव की राजनीति
केपी यादव बीजेपी में आने से पहले सिंधिया के अशोकनगर जिले में सांसद प्रतिनिधि के तौर पर अपनी पहचान रखते थे. वर्ष 2018 में मुंगावली विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में टिकट न मिलने के बाद यादव बीजेपी के संपर्क में आए. वे मूल रूप से बीजेपी वाले नहीं हैं. बीजेपी ने वर्ष 2019 में उन्हें सिंधिया के खिलाफ लोकसभा का टिकट दिया और चुनाव जीत गए.
के पी यादव की इस जीत में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे की भूमिका प्रमुख रही. लेकिन, अपने प्रतिनिधि रहे कार्यकर्ता से मिली पराजय सिंधिया के लिए राजनीतिक तौर पर नुकसानदेह मानी गई. राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. कांग्रेस जिन दो सीटों को जीतने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त दिख रही थी, उसमें गुना के अलावा छिंदवाड़ा की सीट भी थी.
छिंदवाड़ा की सीट पर कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ भी बमुश्किल चुनाव जीत सके थे. मार्च 2020 में सिंधिया अपने समर्थक 28 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. कांग्रेस के अल्पमत में आने से बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिल गया. सरकार सिंधिया के कारण बनी लिहाजा उन सभी विधायकों को शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में जगह भी मिली. उप चुनाव में जो विधायक दुबारा चुनकर नहीं आ सके उन्हें निगम, मंडल में अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा दिया गया.
मध्यप्रदेश बीजेपी में सिंधिया विरोधियों का चेहरा बन पाएंगे यादव
बीजेपी में सबसे ज्यादा बेचैनी उन नेताओं में देखी जा रही है, जो सिंधिया अथवा महल विरोधी राजनीति करते रहे हैं. इनमें जयभान सिंह पवैया का नाम सबसे ऊपर आता है. लेकिन, सिंधिया ने अपनी तरफ से रिश्तों को सुधारने की पहल भी की.
समस्या की वजह सिंधिया नहीं उनके समर्थक हैं. रायसेन जिले में डॉक्टर गौरीशंकर शेजवार प्रभावित हुए तो इंदौर तुलसी सिलावट ने बीजेपी की राजनीति के गणित को बदला. कांग्रेस छोड़ने के बाद भी इन समर्थकों ने अपनी राजनीति के तौर तरीके नहीं बदले. भारतीय जनता पार्टी की राजनीति संगठन पर आधारित मानी जाती है. लेकिन, कांग्रेस नेता महत्वपूर्ण होता है. सिंधिया के बीजेपी में आ जाने से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की राजनीति भी प्रभावित हुई है. सिंधिया के बीजेपी में आने से पहले तक ग्वालियर-चंबल संभाग में तोमर की राय महत्वपूर्ण होती थी. ग्वालियर-चंबल संभाग में विधानसभा की कुल चौंतीस सीटें हैं. लोकसभा की चार सीटें हैं.
नरेन्द्र सिंह तोमर हर चुनाव में अपनी सीट बदलते रहते हैं. वर्तमान में वे मुरैना से सांसद हैं. इससे पहले ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे. अभी ग्वालियर से सांसद विवेक शेजवलकर हैं. सिंधिया के पार्टी में आने से उनकी राजनीति भी स्वाभाविक तौर पर प्रभावित हुई है. यादव की राजनीति पर सबसे ज्यादा असर उन समर्थकों के कारण पड़ा है जो कांग्रेस के दिनों में भी उनका विरोध करते थे. अब वे बीजेपी में भी विरोध कर रहे हैं. इनमें प्रमुख रूप से लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री बृजेन्द्र सिंह यादव हैं.
मध्यप्रदेश बीजेपी में माना जाता है सिंधिया को भविष्य का चेहरा
प्रदेश की राजनीति में सिंधिया का कद बीजेपी के कई क्षेत्रीय नेताओं की तुलना बहुत बड़ा है. कांग्रेस में उनकी राजनीति राहुल गांधी के कारण प्रभावित हो रही थी. जब तक सिंधिया कांग्रेस में थे, तब तक बीजेपी के कई नेता उनके पक्ष में दिखाई देते थे. सिंधिया के पार्टी में आ जाने से सबसे ज्यादा असुविधा भी ऐसे ही नेताओं को हो रही है. पार्टी में सिंधिया के चेहरे को भविष्य के चेहरे के तौर पर देखा जाता है.
शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के तौर पर लगभग 17 साल का समय हो गया है. पार्टी अब तक उनका विकल्प तलाश नहीं कर पाई है. मुख्यमंत्री चौहान को भी इस बात का अहसास है कि वे सिंधिया के कारण ही चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं. इस कारण भी वे उनके प्रभाव क्षेत्र से जुड़े प्रशासनिक फैसले सहमति के बाद ही करते हैं.
सांसद केपी यादव का एक बड़ा आरोप यह भी है कि अंचल के प्रशासनिक अधिकारी भी उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर रहे हैं. कार्यकर्ता परेशान हैं. यादव के दावों से इतर यह तथ्य भी सामने है कि अंचल में विकास कार्यों का श्रेय लेने की प्रतिस्पर्धा चल रही है. यादव लोकसभा सदस्य हैं इस कारण हर नई योजना का श्रेय अपने खाते में डालना चाहते हैं. शिवपुरी का माधव नेशनल सफारी का मामला इसका उदाहरण है. केन्द्र ने इस सफारी में जल्द ही टाइगर भेजने की घोषणा की है. सिंधिया और यादव दोनों ही इसे अपनी-अपनी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं. यद्यपि सफारी दशकों पुरानी है. लेकिन, इसमें कोई शेर अथवा चीता नहीं है. यादव के सिंधिया विरोधी पत्र से कांग्रेस उत्साहित है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने चुटकी लेते हुए कहा कि ऐसे तो कई दु:खी होंगे. अभी तो केपी यादव का ही पत्र सामने है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा कहते हैं कि वे इस बारे में सांसद यादव से बात कर समन्वय बनाने की पहल करेंगे.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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