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हिन्दू वोटों के लिए क्यों हो रही मारा मारी
संयम श्रीवास्तव।
हिंदुस्तान की सियासत में तुष्टिकरण का शब्द केवल एक ही मजहब के लोगों के साथ इस्तेमाल होता था, चुनाव आते ही तमाम राजनीतिक पार्टियां उस समुदाय के तुष्टिकरण को लेकर सक्रिय हो जाती थीं. लेकिन 2014 के आम चुनावों के बाद देश की राजनीतिक स्थिति बदल गई और इसके साथ ही बदल गया तुष्टिकरण का खेल. अब सियासी पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण शब्द से बचती दिखाई दे रही हैं, जो कल तक उसके पीछे भागती थीं. और ऐसा सिर्फ यूपी बिहार में ही नहीं बल्कि देश के हर राज्य में हो रहा है.
दरअसल पंजाब (Punjab) में पिछले चुनावों कांग्रेस (Congress) की अमरिंदर सरकार बनने का एक महत्वपूर्ण कारण यही था कि यहां पर कांग्रेस पार्टी हिंदू कांग्रेस थी. चूंकि हिंदुओं की बात करने वाली पार्टी बीजेपी इस राज्य में अकालियों के साथ थी इसलिए पंजाबी हिंदू अमरिंदर की कांग्रेस के साथ हो लिए थे. यही कारण था कि कैप्टन अमरिंदर राष्ट्रीय मुद्दों पर हमेशा कांग्रेस पार्टी के बजाय नरेंद्र मोदी के साथ खड़े नजर आते थे. वो चाहे अनुच्छेद 370 को खत्म करने का मुद्दा रहा हो या पाकिस्तान को दुश्मन मानने की बात हो कैप्टन अमरिंदर हमेशा बीजेपी का स्टैंड लेते हुए देखे जाते थे. पर अब जब कैप्टन अमरिंदर कांग्रेस छोड़ कर अपनी नई पार्टी बना रहे हैं तो कांग्रेस के नए नेतृत्व के लिए भी जरूरी हो गया कि वो हिंदुओं को लुभाने वाले काम करे. इसी को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्नी मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं. दूसरी तरफ बीजेपी का साथ छूटने के बाद अकालियों के लिए भी जरूरी हो गया कि वो भी अपनी हिंदू समर्थित छवि बनाएं.
38.5 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं पर नजर
कुछ ही महीनों में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां के तमाम राजनीतिक दल अब हिंदुओं को अपने पाले में करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं. इसी सिलसिले में पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी पिछले महीने केदारनाथ धाम दर्शन करने गए थे. शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल भी हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी मंदिर गए थे. वहीं आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी अक्टूबर में जालंधर के तालाब देवी मंदिर गए थे. दरअसल मंदिरों के चक्कर काट रहे नेताओं की नजर पंजाब के 38.5 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं पर है, जो पंजाब में एक मुट्ठी की तरह होते हैं और यह जहां जाते हैं जीत उसी की होती है.
मंदिरों के सहारे पंजाब में जीत चाहते हैं नेता
पंजाब में जीत का परचम लहराने का ख्वाब देख रहे नेताओं को लगता है कि वहां के हिंदू वोटरों को अगर अपने साथ लाना है, तो सबसे पहले उनके संवेदनशील हिस्से यानि उनकी आस्था को छूना होगा. इसीलिए तो पंजाब के राजनेता लगातार मंदिरों के चक्कर काट रहे हैं. देश में सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर चल पड़ी कांग्रेस पार्टी के पंजाब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अभी हाल ही में जालंधर के शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर में माथा टेक चुके हैं. इसके साथ ही भगवान परशुराम तपोस्थली को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए उन्होंने 10 करोड़ रुपए भी दिए. यहां तक की परशुराम की माता रेणुका से जुड़े स्थल के विकास के लिए भी उन्होंने 75 लाख रुपए देने का वादा किया. और यह भी कहा कि महाभारत रामायण और गीता पर शोध के लिए पंजाब विश्वविद्यालय में एक पीठ का गठन किया जाएगा. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि वह अब संस्कृत सीखेंगे और महाभारत और पीएचडी करेंगे. पंजाब में हिंदू वोटरों को लेकर कांग्रेस में आज से पहले कभी इतनी आतुरता नहीं देखी गई.
अकाली दल जो अब बीजेपी से अलग हो गया है, उसे चिंता सताने लगी है कि बीजेपी के साथ रहते हुए उसे जो हिंदू वोटरों का समर्थन मिलता था, अब अलग होने पर नहीं मिलेगा. पंजाब में अकाली दल आज तक बिना बीजेपी के एक भी चुनवा नहीं जीती है. शायद यही वजह है कि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पहले राजस्थान के सालासर में बालाजी मंदिर गए, फिर माता अंजनी के मंदिर गए, उसके बाद जालंधर में श्री देवी तालाब मंदिर भी पहुंचे और हाल ही में पंजाब के राजपुरा में भगवान शिव के मंदिर पहुंचकर दर्शन किए. इन सब जगहों पर जाकर सुखबीर सिंह बादल ने खूब तस्वीरें खिंचाई और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया. ताकि वह दिखा सकें कि पंजाब में हिंदुओं के वह कितना हितैषी हैं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को हिंदू वोटरों का समर्थन दिलाना चाहते हैं. इसीलिए तो उन्होंने भी पहले जालंधर के देवी तालाब मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और फिर पंजाब में एक जगराते में हिस्सा लिया. अयोध्या में भी राम लला के दर्शन करने अरविंद केजरीवाल जा चुके हैं.
हिंदू वोटरों के खिसकने करने का डर है
पंजाब की सियासी पार्टियों को पता है कि इस बार पंजाब का हिंदू वोटर असमंजस की स्थिति में है. क्योंकि पहले यह हिंदू वोटर बीजेपी-अकाली दल गठबंधन और कांग्रेस के बीच बंटा हुआ था. लेकिन अब जब कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी छोड़ चुके हैं और बीजेपी अकाली दल से अलग हो चुकी है तो यह 38.5 फ़ीसदी हिंदू वोटर किसी भी ओर खिसक सकते हैं. इसीलिए हर राजनीतिक पार्टी पूरा प्रयास कर रही है कि इतना बड़ा समर्थन उन्हें मिल जाए.
दरअसल अब तक पंजाब में राजनीतिक समीकरण जो थे, वह पुराने ही तरीके से चल रहे थे. इसलिए वोटरों के चुनाव में ज्यादा परिवर्तन नहीं था. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब की स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है. कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी एक नई पार्टी बना चुके हैं जो चुनाव से पहले या चुनाव के बाद बीजेपी से गठबंधन कर सकते हैं. कांग्रेस अपने अंदर के कलह से जूझ रही है. अकाली दल और बीजेपी का 25 साल पुराना गठबंधन टूट चुका है और आम आदमी पार्टी के पास कोई मुख्यमंत्री चेहरा नहीं है.
45 विधानसभा सीटों पर अहम हैं हिंदू वोटर
पंजाब में हिंदू वोटरों की तादाद 38.5 फ़ीसदी है. जो राज्य की 45 विधानसभा सीटों पर या तो बहुसंख्यक है या फिर इतनी तादाद में है कि वह जीत और हार तय कर सकते हैं. इन 38.5 फ़ीसदी हिंदू वोटरों की खास बात यह है कि यह एक मुट्ठी की तरह हैं, जहां भी जाते हैं पूरी तरह से जाते हैं. पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले पत्रकारों करीब 7 से 10 फीसदी जरूर इधर-उधर खिसकते हैं, लेकिन बाकी के सभी मतदाता एक साथ वोट करते हैं. अनुमान लगाया जाता है कि जब 2017 के विधानसभा चुनाव में लगभग 10 फ़ीसदी हिंदू वोटर शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन से छिटक गए थे, जिसके चलते उन्हें राज्य में हार का मुंह देखना पड़ा था.
आम तौर पर देखा जाए तो पंजाब के हिंदू वोटर उसी पार्टी को वोट देते हैं जो कट्टरपंथी विचारधारा की विरोधी होती है. जो पंजाब में उनके कारोबार को सुरक्षा दे सके और राज्य में शांति बनाए रखे, हिंदू वोटर ज्यादातर उसी के साथ जाते हैं. लेकिन स्थिति इस बार काफी अलग है. एक तरफ पाकिस्तान से पंजाब को खतरा, जिसकी बात अमरिंदर सिंह करते रहे हैं. दूसरी तरफ खालिस्तान मूवमेंट का पंजाब में तेज होना. हिंदू वोटरों को परेशान कर रहा है.
Gulabi
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