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- हंगामा है क्यूं बरपा?
आदित्य नारायण चोपड़ा: भाजपा की पूर्व प्रवक्ता श्रीमती नूपुर शर्मा के पैगम्बर हजरत मोहम्मद के बारे में की गई टिप्पणी को लेकर पूरे देश में मुसलमान नागरिकों ने जो कोहराम मचाया हुआ है और जुम्मे के दिन मस्जिदों में नमाज अदा करने के बाद विरोध-प्रदर्शन करने का जो तरीका अख्तियार किया है वह जिन्ना की जहनियत का ही दूसरा स्वरूप है क्योंकि ऐसा करके मुस्लिम नागरिक यह सिद्ध करना चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष भारत की व्यवस्था के भीतर भी वे अपनी धार्मिक व्यवस्था में ही रहना चाहते हैं। आजाद भारत में यह कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता क्योंकि यह संविधान की व्यवस्था में रहने वाले लोगों का देश है। भारत के संविधान की छत्रछाया में नूपुर शर्मा की टिप्पणी को आपत्तिजनक मानते हुए सम्बन्धित कानून की दफाओं के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है और पुलिस ने बाकायदा मुकदमें दर्ज कर लिये हैं जिनका निपटारा अब अदालत में होगा। पुलिस कार्रवाई के बावजूद नूपुर शर्मा के खिलाफ गिरफ्तारी की मांग करना और विभिन्न स्रोतों से उन्हें व उनके परिवार के सदस्यों का सिर कलम करने या अन्य पैशाचिक सजाएं देने का आह्वान करने वाले लोग सिर्फ अपने मजहब की वरीयता संविधान पर थोपना चाहते हैं जो कि 21वीं सदी के हिन्दोस्तान में किसी भी तौर पर कबूल नहीं की जा सकती। मगर यह मानसिकता वही है जो भारत के टुकड़े कराने वाले मुहम्मद अली जिन्ना की थी। भारत का कानून किसी मजहब को आगे रख कर नहीं बनाया गया है बल्कि भारत व भारतीयता को आगे रख कर बनाया गया है जिसमें सभी नागरिकों के लिए कोई भी मजहब उनका निजी मामला है। मगर मजहब के नाम पर मस्जिदों में इकट्ठा होने वाले मुसलमानों के लिए ये स्थान प्रदर्शन स्थल किसी भी स्थिति नहीं हो सकते लेकिन ताजा जुम्मे के दिन जिस प्रकार मुरादाबाद से लेकर सहारनपुर, प्रयागराज, रांची, हावड़ा, शोलापुर और दिल्ली की जामा मस्जिद व कुछ अन्य स्थानों नमाज के बाद जिस तरह के उन्मादी प्रदर्शन हुए और नूपुर शर्मा को गिरफ्तार करने की मांग के साथ ही कुछ दूसरे भड़काने वाले नारे लगे उन्हें देख कर यही कहा जा सकता है कि इन प्रदर्शनों में भाग लेने वाले मुसलमानों के लिए भारत के संविधान से ऊपर अपना मजहब है। नूपुर शर्मा को अदालत क्या सजा देगी इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता मगर ये फैसला करने वाले प्रदर्शनकारी कौन होते हैं कि उन्हें पहले गिरफ्तार किया जाये। यह काम कानून का है और पुलिस इस काम को मुल्जिम के खिलाफ लगाई गई दफाओं को देख कर ही करेगी। शासन व्यवस्था को यदि भीड़ इकट्ठी करके उसके इशारों पर चलाया जाने लगेगा तो यह 'कबायली दौर' की वापसी होगी। भारत का संविधान कोई 'आसमानी किताब' नहीं है बल्कि इसी मुल्क के लोगों की जद्दोजहद से पैदा हुई वह तजवीज है जिसमें हर इंसान की समस्याओं का हल ढूंढने की कोशिश की गई है। स्वतन्त्र भारत में जिन्ना की जहनियत को जिन्दा रखने की जड़ यही है। जिन्ना ने पाकिस्तान यही कह कर बनवाया था कि मुसलमानों की सांस्कृतिक, सामाजिक व धार्मिक रवायतें हिन्दुओं से पूरी तरह उलट हैं और यहां तक उलट हैं कि हिन्दू इतिहास के जिन किरदारों को अपना हीरो (नायक) मानते हैं वे मुसलमानों के लिए विलेन (खलनायक) हैं और मुसलमानों के हीरो हिन्दुओं के लिए विलेन हैं परन्तु जिन्ना की इस जहनियत की मुखालफत उस समय भी राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं ने की थी जिनमें सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान का नाम सबसे ऊपर आता है। परन्तु दुखद यह रहा कि स्वतन्त्र भारत में हमने मुसलमानों को अपनी अलग पहचान बनाये रखने के वे सभी उपकरण उपलब्ध करा दिये जिससे वे 'राष्ट्रवादी मुस्लिम' न बन कर 'मुस्लिम राष्ट्रवादी' बने रहे।संपादकीय :हैप्पी, बर्थडे पापाभारत, अमेरिका और चीनरिजर्व बैंक और अर्थव्यवस्थासीडीएस : नियमों में बदलावकानपुर की हिंसा : सच की खोजसबको मुबारकइसी वजह से नास्तिक से लेकर मूर्ति पूजक या निराकार उपासक भी हिन्दू हो सकता है और ईश्वर की सत्ता को ही न मानने वाले पंथ भी यहां फल-फूल सकते हैं। यही कारण है कि हिन्दू अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में बहुत उदार व सहनशील होते हैं और दया व करुणा और अहिंसा को भी धर्म कहते हैं। यदि भारत की इस अनूठी विशेषता को इसकी धरती पर रहने वाले हर मजहब के लोग समझ जायेंगे तो स्वतः ही राष्ट्रवादी हो जायेंगे फिर चाहे वे मुसलमान ही क्यों न हों। मगर आज का मौजू बहुत चिन्ता पैदा करने वाला है क्योंकि रसूल-अल्लाह सले-अल्लाह- अलै-वसल्लम की शान में की गई विवादित गुस्ताखी को मुद्दा बना कर कुछ लोग मुल्क के अमन-चैन को बर्बाद करने पर तुले नजर आते हैं। सबसे पहले उन्हें इस मुल्क की उस सखावत का वास्ता है जिसने श्री कृष्ण का उपासक रसखान पठान भी पैदा किया और अब्दुर रहीम खानेखाना (रहीम) जैसा उपनिषेदों का ज्ञाता भी पैदा किया। मगर क्या कयामत है कि आज के हिन्दोस्तान में इनकी विरासत की शान बढ़ाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है, उल्टे हंगामा बरपाने की तदबीरें लड़ाई जा रही हैं और मुसलमानों को बहकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। अगर मस्जिद से नमाज अदा करने वाले लोग 'तकरीबें' करके अपने बच्चों को पढ़ाने की कसम उठाया करते तो मेरा हिन्दोस्तान किस 'मयार' तक पहुंच जाता। ''इबने मरियम हुआ करे कोई, मेरे दर्द की दवा करे कोई।