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- बांध विस्थापन का दर्द...
उपचुनाव फतेहपुर की वेला पर भी इस हल्के से हजारों पौंग बांध विस्थापितों का मुद्दा गायब है। नेतागण एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने तक सीमित हैं। जनता की समस्याओं से उनका कोई सरोकार नजर नहीं आता है। दशकों गुजर जाने के बावजूद बेघर हुए लोगों को न्याय पाने के लिए सडक़ों पर उतरना पड़े तो इससे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था की त्रासदी और क्या हो सकती है। अफसोस इस बात का कि जमीन दी धानी, मगऱ बन न सके पौंग बांध विस्थापित अब तक भी राजस्थानी। केंद्र और हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकारें होने पर भी इन असहाय गरीब परिवारों के नाम पर सिर्फ राजनीति ही की जाती रही है। पीडि़त व्यक्ति को देरी से मिलने वाला न्याय, न्याय नहीं होता, जहां कई पीढिय़ों के लोग बेबसी की वजह से मर चुके हों। सरकारें और न्यायालय बेघर हुए लोगों को आज दिन तक न्याय नहीं दिला पाए हैं। अब पौंग बांध विस्थापितों को न्याय की आस तो बस सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय से है। सात दशकों से विस्थापन का दंश झेल रहे पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मिलने वाले मुरब्बों की प्रक्रिया कब पूरी होगी, कोई नहीं जानता है।