सम्पादकीय

बंगाल की चुनावी हिंसा पर विपक्ष चुप क्यों

Rani Sahu
14 July 2023 6:50 PM GMT
बंगाल की चुनावी हिंसा पर विपक्ष चुप क्यों
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पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के चुनाव सुधारों के अथक प्रयासों से मिली सफलता के बावजूद पश्चिमी बंगाल देश का एकमात्र राज्य है जहां हर स्तर के चुनावों में हिंसा का तांडव जारी है। पंचायत चुनावों में इस बार 50 से अधिक लोग चुनावी हिंसा का शिकार हुए। इनमें 12 से अधिक मुस्लिम थे। आश्चर्य की बात यह है कि देश में लोकतंत्र की दुहाई देने वाले विपक्षी दलों ने अल्पसंख्यकों की हत्या पर घडिय़ाली आंसू बहाना भी जरूरी नहीं समझा। यही विपक्षी दल भाजपा पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार सहित दूसरे आरोपों को लेकर एकजुट होने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल हिंसा प्रभावित मणिपुर में गए थे। किन्तु बंगाल में हुई भीषण हिंसा पर राहुल एक शब्द तक नहीं बोले। राहुल को बंगाल में पंचायत चुनाव में लोकतंत्र की हत्या दिखाई नहीं दी। बंगाल में हुई हिंसा में बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की मौत हुई है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सिर्फ इतना ही कहा कि बंगाल में लोकतंत्र नहीं है। कांग्रेस के फायरब्रांड नेता दिग्विजय सिंह ने कहा भयानक हुआ। डराने वाला है। गौरतलब है कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बावजूद हिंसा में एक भी मौत नहीं हुई थी। पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने पंचायत चुनाव में हुई हिंसा पर कहा, ‘मैंने जमीन पर जो देखा वह बहुत परेशान करने वाला है, वहां हिंसा और हत्याएं हो रही हैं। एक बात जो मैंने देखी है, वह यह है कि गरीब लोग ही मारे जाते हैं, हत्यारे भी गरीब हैं…हमें गरीबी को खत्म करना चाहिए, लेकिन इसके बजाय हम गरीबों को मार रहे हैं।’ बंगाल इसका हकदार नहीं है। भाजपा ने कहा, ‘अगर यह दृश्य बीजेपी शासित राज्य में देखने को मिला होता, तो हाहाकार मच गया होता। अब राहुल गांधी कहां हैं… वह मोहब्बत की दुकान खोलने वाले थे।’ राज्य सरकार ने संवेदनशील बूथ की सही संख्या नहीं दी, जितने लोग मारे गए हैं, इसमें राज्य के जिम्मेदार लोग शामिल हैं। फायरिंग, बमबारी, मतपेटी को जलाया गया। ये सारे नेता, जो हाथ पकड़-पकड़ कर राज्यों में खड़े होते हैं, कहां हैं ये सारे नेता? कहां हैं लालू प्रसाद यादव, कहां हैं नीतीश कुमार और कहां हैं मोहब्बत की दुकान खोलने वाले राहुल गांधी? गृह मंत्रालय ने साफ कहा कि पंचायत चुनाव में उनके तैनाती वाले बूथों पर कोई हिंसा नहीं हुई है। जिन बूथों पर सीएपीएफ तैनात की गई थी, वहां कोई अप्रिय घटना/हिंसा नहीं हुई है। यदि माहौल बिगाडऩे की कोशिश की गई तो तुरंत शांति बहाल की गई। संवेदनशील बूथों पर सीएपीएफ को तैनात किया जाना चाहिए था, लेकिन संबंधित जिलों के डीएम ने केंद्रीय बलों को तैनात करने की योजना बनाई। डीएम ने जिन बूथों पर केंद्रीय बल को सुरक्षा के लिए भेजा. वहां सीएपीएफ ने व्यवस्था संभाली।
बंगाल में पंचायत चुनाव का रिजल्ट आते ही हिंसा का दूसरा दौर शुरू हुआ। दक्षिण-24 परगना जिले के भंगोर में हिंसा में इंडियन सेकुलर फ्रंट के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई तो वहीं हाथ में गोली लगने से एडिशनल एसपी बुरी तरह से घायल हो गए। पूरा मामला काउंटिंग से जुड़ा हुआ है, जहां गिनती में पहले आईएसएफ कैंडिडेट आगे चल रहा था, लेकिन बाद में वह हार गया। इसी को लेकर शुरू हुए बवाल ने धीरे-धीरे बड़ी हिंसा का रूप ले लिया। 8 जुलाई को 74 हजार पंचायतों के लिए वोटिंग हुई थी, जहां कुछ मतदान केंद्र विवादित होने पर यहां दोबारा से वोटिंग करानी पड़ी थी। चुनाव के दौरान हर बूथ पर राज्य पुलिस के अलावा चार केंद्रीय बल के जवानों की तैनाती की गई थी। पश्चिमी बंगाल देश के चुनावी इतिहास में अनोखे रिकार्ड कायम कर रहा है। यह देश का ऐसा राज्य है जहां पंचायत स्तर पर चुनावी हिंसा को रोकने के लिए हाईकोर्ट के आदेश से अद्धसैनिक बलों की तैनाती की गई। अद्धसैनिक बलों की तैनाती का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरी ताकत से विरोध किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिल सकी। पश्चिमी बंगाल में चुनावी खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हजारों उम्मीदवार निर्विरोध विजयी हुए। डर के मारे लोगों ने पंचायत चुनाव लडऩे का नामांकन दाखिल नहीं किया। निर्विरोध ज्यादातर तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी जीते, हिंसा के डर से किसी ने नामांकन दाखिल नहीं किया। नामांकन वापस लेने की निर्धारित समय सीमा के बाद पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग के आंकड़े पुष्टि करते हैं कि तीनों स्तरों पर 73887 सीटों में से 7005 सीटों पर उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीत हासिल की है। यह कुल सीटों की संख्या का लगभग 9.48 प्रतिशत है। इनमें ज्यादातर ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं।
बंगाल के पंचायत चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा हिंसा के मामले उत्तर और दक्षिण 24 परगना के अलावा मुर्शिदाबाद और कूचबिहार से सामने आए हैं। कूचबिहार में तो टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उस वक्त हद ही कर दी जब मतपेटियां तक तोडऩे के बाद उसमें पानी डाला और कुछ में आग भी लगा दी। इसके साथ ही उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर में भी कमोबेश ऐसी ही घटनाएं देखने को मिलीं। विधानसभा चुनाव के दौरान भी पश्चिम बंगाल में 52 लोगों की जान गई थी। इस दौरान सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं की ही हत्या नहीं हुई, अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता भी इसमें शामिल थे। पश्चिम बंगाल में सीबीआई ने विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के सिलसिले में 43 मामले दर्ज किए थे। सीबीआई ने ये मामले कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में दर्ज किए थे। विधानसभा और लोकसभा चुनावों के इतर पंचायत चुनावों में भी यहां की धरती पर खून की नदियां बहना आम बात रही है। साल 2013 और 2018 में गोलीबारी, बमबारी, आगजनी, पत्थरबाजी और शारीरिक अंगों को काटने की कई घटनाएं दर्ज की गई थीं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार साल 2018 के पंचायत चुनावों में 13 लोगों की हत्या कर दी गई थी। आखिर चुनावों के दौरान बंगाल में हिंसा क्यों होती है? क्या यह पश्चिम बंगाल की नीयती है या सरकारी तंत्र की विफलता। चुनाव आयोग या सरकार, किसी न किसी को इन मौतों की जिम्मेवारी लेनी होगी।
योगेंद्र योगी
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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