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जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) की शुरुआती तस्वीरों ने खगोलविज्ञान में काफी उम्मीदें जगाई हैं. वैज्ञानिकों को भी लगता है कि इस टेलीस्कोप से अरबों साल पुराने समय के खगोलीय पिंड भी देखे जा सकेंगे जिन्हें अभी तक देखा नहीं जा सकता था. यह टेलीस्कोप से बहुत दूर से आती प्रकाश की धुंधली हो चुकी तरंगों (Faint light waves) को भी पहचान सकता है. यानी हमें और दूर के पिंड दिखाई दे सकते हैं जो इतने दूर हैं कि उनकी तरंगों को हम तक पहुंचने में हजारों से करोड़ों अरबों साल तक का भी समय लगता है. इसी लिए वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टेलीस्कोप हमें समय की यात्रा (Time machine) करा सकता है.
समय के पीछे देखना
इस टेलीस्कोप से उन धुंधले पिंडों को देखे जा सकने की संभावना बढ़ी है जो अब तक हबल स्पेस टेलीस्कोप से भी बहुत धुंधले दिखाई देते थे. सामान्य तौर पर अजीब सा लगता है कि हम समय के पीछे देख सकते हैं, लेकिन वास्तव में खगोलविद हर रोज यही करते हैं. ब्रह्माण्ड इतना विस्तृत है कि इसमें पिंडों के बीच दूरियां बहुत ज्यादा होती हैं कि सबसे तेज चलने वाले प्रकाश को कई पिंडों की बीच की दूरी तय करने में करोड़ों अरबों साल लग जाते हैं.
प्रकाश की गति और यात्रा
खुद सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश को आने में 8 मिनट से भी ज्यादा का समय लगता है. प्रकाश की गति तीन लाख किलोमीटर प्रति सेंकेंड होती है. ऐसे में अगर हम कोई ऐसा पिंड देख रहे हैं जिसके प्रकाश को हम तक पहुंचने में लाखों साल लगे तो वास्तव में हमें लाखो साल पुराने पिंड को देख रहे हैं ना कि उसके आज के स्वरूप को. यानि हम जो सूर्य पृथ्वी पर देखते हैं वह 8 मिनट 32 सेंकेड पुराना होता है.
बहुत ज्यादा दूरी
खगोलीय पिंडों की दूरी इतनी ज्यादा होती है कि वैज्ञानिकों ने इन दूरियों की ईकाई प्रकाशवर्ष रखी है जो प्रकाश द्वारा एक साल में तय की गई दूरी होती है. वेब टेलीस्कोप ने जो हाल ही कैरीना नेब्युला की तस्वीर निकाली है उसमें पैदा हो रहे तारे वास्तव में 7.5 हजार साल पहले पैदा हुए थे क्योंकि यह निहारिका 7500 प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है.
ब्रह्माण्ड का इतिहास
जब भी हम पृथ्वी से दूर देखते हैं तो हम अपने पीछे के समय को ही देख रहे होते हैं. इसी के जरिए हम ब्रह्माण्ड इतिहास के बारे में जानकारी हासिल कर पाते हैं और उसके कई रहस्यों को सुलझा सकते हैं. और यह जानने में वेब स्पेस टेलीस्कोप हमारी बेहतर मदद कर सकता है क्योंकि वह उन तरंगों को पहचान सकता है जो बहुत लंबा सफर करने के कारण धुंधली हो चुकी हैं.
हबल और वेब में अंतर
जहां हबल स्पेस टेलीस्कोप को पराबैंगनी किरणें और इलोक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैक्ट्रम के दिखाई देने वाले हिस्से यानि दिखने वाला प्रकाश को ही पकड़ सकता है. वेब टेलीस्कोप इंफ्रारेड प्रकाश के विस्तृत तरंगों को पकड़ने में सक्षम है. यानि वह समय के पीछे देखने में हबल से भी ज्यादा सक्षम है.
कॉज्मोलॉजिकल रेडशिफ्ट
गैलेक्सी विद्युतचुंबकीय स्पैक्ट्रम में दृष्टिगोचर प्रकाश सहित गामा विकिरण से लेकर रेडियो तरंगे तक उत्सर्जित करती हैं. जब गैलेक्सी हमारे पास होती हैं तो उनसे आने वाली तंरगों में बदलाव नहीं होता है, लेकिन जब वे बहुत ही ज्यादा दूर होती हैं तो वहां से आने वाले तरंगों की वेवलेंथ ब्रह्माण्ड के तेजी से हो रहे विस्तार के कारण बड़ी हो जाती है. यानि लाखों करोड़ों साल पहले जिस पिंड को हम पास से अपनी आंखों से देख सकते थे. अब उसे केवल इंफ्रारेड वाले टेलीस्कोप ही देख सकते हैं. तरंगों के इस बदालव को कॉज्मोलॉजिकल रेडशिफ्ट कहते हैं.
ब्रह्माण्ड के विस्तार के कारण ही कि जो प्रकाश हम 13.7 अरब प्रकाशवर्ष बाद देख रहे हैं वास्तव में वह उस पिंड का है हमसे करीब 46 अरब प्रकाश वर्ष दूर हो सकता है. फिलहाल इस विस्तार के प्रमाणिक कारण तो नहीं मिला है , लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे डार्क ऊर्जा है जिस पर विद्युतचुंबकीय तरंगों का नहीं बल्कि केवल गुरुत्व का प्रभाव पड़ता है. इसी लिए केवल 13.8 अरब साल पुराना ब्रह्माण्ड 93 अरब प्रकाश वर्ष के क्षेत्र में फैला है. और वेब टेलीस्कोप इसकी बारे नई जानकारियां देने के लिए तैयार