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- किसान आत्महंता क्यों...
किसान आंदोलन के बॉर्डर कुछ खुल चुके हैं और कुछ खुलने हैं। टीकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर अवरोधक हटाए गए हैं। बड़े बोल्डर भी हटाए जा रहे हैं। कीलें और कंटीले तार उखाड़ेे जा रहे हैं। कुछ रास्ता जरूर खुला है। दोपहिया वाहन और एंबुलेंस गुज़र सकते हैं। सामान ढोने वाले भारी वाहन अब भी ठहरे हुए हैं। सबसे बड़ा धरनास्थल सिंघु बॉर्डर रहा है। फिलहाल वहां यथास्थिति है। पुलिस और किसान नेताओं में सहमति नहीं बन पाई है। किसान आंदोलन जारी रहेगा। किसान अपनी मांगों पर अड़े और डटे हैं। मुद्दों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का भी असर उन पर नहीं है। कुछ किसान नेताओं ने 'दिल्ली कूच' की बात कही है। हालांकि निर्णय अभी घोषित किया जाना है। रास्ते भी सर्वोच्च अदालत की तल्ख टिप्पणियों के बाद खोले गए हैं। इस बीच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2020 तक की रपट जारी की गई है, जिसका सारांश है कि किसान अब भी आत्महंता है। उसकी आत्महत्या केस 18 फीसदी बढ़े हैं। बीते साल 10,677 किसानों ने आत्महत्या की है। उनमें 5579 पूरी तरह किसान थे, जबकि 5098 खेतिहर मजदूर थे। किसानों के अलावा छात्र, पेशेवर, उद्यमी, रिटायर व्यक्ति आदि की संख्या 1,53,052 है, जिन्होंने आत्महत्या की है।
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