सम्पादकीय

करोड़ों लोगों का पेट भरने वाली गाय को राजनीतिक पशु क्यों बनाया जा रहा है?

Gulabi
3 Sep 2021 11:02 AM GMT
करोड़ों लोगों का पेट भरने वाली गाय को राजनीतिक पशु क्यों बनाया जा रहा है?
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भारत में गाय राष्ट्रीय पशु बने न बने एक राजनीतिक पशु ज़रूर बन गई है

भारत में गाय राष्ट्रीय पशु बने न बने एक राजनीतिक पशु ज़रूर बन गई है. बहस के एक तरफ वैसे लोग हैं जो गाय को गौ माता का दर्जा देते हैं, उसकी पूजन करते हैं और उसका संरक्षण करना चाहते हैं, दूसरी तरफ वैसे लोग हैं जो गाय को भक्षण के लिए उपयुक्त समझते हैं. इलाहाबाद हाइकोर्ट के एक जज की टिप्पणी यहां गौरतलब है, जिन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दे. ज़ाहिर है इस बहस में वैसे लोग भी कूद पड़े, जिनका अपना राजनीतिक स्वार्थ है. उनको लगता है कि एक हाई कोर्ट के जज द्वारा इस तरह की टिप्पणी कहां तक जायज़ है?

पिछले कुछ वर्षों में गौकशी को लेकर बहुत से राज्यों ने अपने-अपने नियम बनाए हैं, हालांकि इसके बावजूद भी गौहत्या और नतीजतन ह्यूमन लिंचिंग की घटनाएं भी देखने को मिल रही हैं. ऐसे में किसी हाई कोर्ट के जज का बहस के बीच में कूद पड़ने से विवाद पैदा होना तो जायज़ ही है.
गाय भारतीय अर्थव्यवस्था की वाहक भी है-
भारत में गाय को लेकर राजनीति इतनी ध्रुविकृत हो जाती है कि उपादेयता या उपयोगिता के बारे में चर्चा गौण हो जाती है. राजनीतिक बहस में इस बात को दरकिनार कर दिया जाता है कि भारतवर्ष के करोड़ों किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में गाय की कितनी बड़ी भूमिका रही है. भारत में गौवंश की संख्या सर्वाधिक है, हमारे बाद ब्राज़ील और चीन का नंबर आता है. भारतीय अर्थव्यवस्था की उन्नति के लिए गाय की भूमिका पर वर्षों से गहन शोध भी हो रहा है लेकिन गाय को एक भक्ष्य के तौर पर प्रचारित करने में कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी लगे हुए हैं.
भारतीय समाज में जहां 80 फीसद लोग कृषि कार्यों से जुड़े हुए हैं वहां एक आदर्श घर की अर्थव्यवस्था के केंद्र में एक गाय होती है, जो उसे सामान्य समय में ही नहीं, अकाल और दुर्भिक्ष के समय में भी सहारा देती है. महात्मा गांधी कहते हैं देश का सुख और समृद्धि गौ-रक्षण के साथ जुड़ी हुई है, इसलिए पुरातन संस्कृति में ऋषि मुनियों ने सांसारिक जीवन का त्याग किया लेकिन गौ का त्याग नहीं किया. कई सौ साल तक भारत पर राज करने के बाद मुगलों को भी इस बात का एहसास हो गया था कि भारतवर्ष में गाय बहुसंख्यक हिन्दू आस्था से जुड़ी हुई है. इसलिए अकबर, जहांगीर और हुमायूं के शासनकाल में गौ-हत्या पर रोक देखने को मिलती थी.
हिन्दू धर्मग्रंथों में गाय को माता कहा गया है-
वेदों से लेकर ऋचाओं तक में गाय की महिमा का वर्णन है-अथर्ववेद में लिखा गया है-'धेनु सद्नम रचियाम,' यानि गाय सभी संपत्तियों का भंडार है.
वेदों में उद्धृत है-
'माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदिव्यानाम मृतस्य नाभि:.
प्रनु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट..'
'गाय को रुद्रों की माता कहा गया है, वसुओं की पुत्री और आदित्यों की बहन और अमृतों का खजाना कहा गया है. गाय को परोपकारी और वध न करने योग्य माना गया है. गाय चूंकि मनुष्यों का पोषण करती है इसलिए भारतीय राजाओं की गौशालाएं हमेशा गायों से भरी रहती थीं.'
महाभारत में एक आख्यान का ज़िक्र आता है जब पांडवों में अग्रज युधिष्टिर से यक्ष सवाल करते हैं-अमृत किम? (अमृत क्या है?) युधिष्ठिर जवाब देते हैं, 'गवाअमृतम अर्थात गाय का दूध ही अमृत है. भगवान श्रीकृष्ण का पूरा जीवन ही गायों के इर्द-गिर्द घूमता रहा, इस बात का सहज अंदाज़ा आप लगा सकते हैं कि उस समय भी गाय की आर्थिक समृद्धि में कितनी बड़ी भूमिका रही थी. जब गायों के स्वामित्व के आधार पर उपाधि मिलती थी, गौपालक के पास पांच लाख गायें हो उसे उप नन्द और जिसके पास नौ लाख गायें हो उसे नन्द की उपाधि मिलती थी.
भारतीय गायों का दुनिया भर में बोलबाला-
भारत में मॉनसून की अनिश्चितता हमेशा बनी रहती है इसलिए गाय का पालन किसानों के लिए हमेशा संबल बना रहा. आज भारत में गौ वंश की संख्या 20 करोड़ पार कर गई है, जो पूरे विश्व की गौ-संख्या की आबादी का 33 प्रतिशत है. किसानों के परिश्रम का ही फल है कि आज भारत में जहां 2017-18 में महज 176 मिलियन टन दूध का उत्पादन होता था वो आज बढ़कर 200 मिलियन टन पार कर चुका है.
प्रति वर्ष भारत में दूध उत्पादन 4 फीसद के दर से बढ़ रहा है, जो लाखों किसानों को समृद्ध बना रहा है. भारतीय गायों में पाया जाने वाला ए-2 एक ऐसा औषधीय तत्व है जो हमें डायबीटीज़ और मोटापे से से भी बचाता है. ये अच्छी बात है कि भारत सरकार पिछले कुछ समय से भारतीय गायों के नस्लों के संवर्धन पर काम कर रही है. ये सुनकर आम भारतीय को खुशी होनी चाहिए कि जिस जर्सी या होलस्टीन गाय के पीछे हमारे किसान भाग रहे हैं, उसके दूध को विदेशों में ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है. ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ए2-कॉर्पोरेशन जैसी संस्था है, जो भारतीय गायों के उत्पाद को प्रचारित और प्रसारित करने में लगी लगी है.
आज भारत की गिर, साहीवल और थारपारकर नस्ल की गाय ब्राज़ील की अर्थव्यवस्था का केंद्र बन गई हैं. ये सुनकर आपको अचरज लगेगा कि जो ब्राज़ील आज से सौ साल पहले भारत से साहीवल और गिर नस्ल की गाय लेकर गया था, वहीं आज हमें उसी नस्ल को संवर्धित करके बेच भी रहा है और हम हैं कि अपनी अमूल्य विरासत को ही गंवाते जा रहे हैं. ब्राज़ील तो शुरू में इन गायों को मांस के उत्पादन के लिए ही लेकर गया था लेकिन वहां के लोगों ने बाद में पाया कि भारतीय गायें तो वाकई अमृत का भंडार हैं. ब्राज़ील इन भारतीय गायों से 40 लिटर/दिन दूध भी ले रहा है.
एक गाय की क्या कीमत है?आम तौर पर हम गाय की कीमत कैसे आंकते हैं? वो पूरी जिंदगी में कितना दूध देती है, कितने बच्चे देती है, कितना गोबर देती है, या उसके मांस की कीमत से? भारत में चल रहे सारे बहस का सार इसी में हैं. आधुनिक गौ रक्षा के जनक, महर्षि दयानन्द सरस्वती, अपनी रचना गौकरुणानिधि में लिखते हैं कि एक गाय पूरी ज़िंदगी में कम से कम 7 बछड़े और 6 बछड़ियों को जन्म देती है जो आगे चलकर कम से कम 4,10,044 लाख लोगों को दूध और अन्न देने में सक्षम होंगे. वहीं एक गाय के मांस भक्षण से सिर्फ 70-80 लोग ही अपनी भूख शांत कर सकेंगे.
गौपालन का व्यवहारिक पक्ष क्या हो
आज जब भी गौ-धन की बात होती है तो राजनीति होने लगती है लेकिन इसका व्यवहारिक पक्ष यह है कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए डेयरी सेक्टर में व्यापक स्तर पर निवेश की ज़रूरत है. इस बात का अंदाज़ा इस तथ्य से आप लगा सकते हैं कि पूरी भारतीय कृषि का लगभग 31 प्रतिशत कमाई पशुधन से ही हो रही है. जिस तरह से पूरे देश में दुनिया में श्वेत क्रांति की बयार चल रही है, आने वाले दिनों में भारतीय किसानों के लिए गौ-धन का महत्व और अधिक बढ़ गया है. भारत सरकार भी गांव-गांव में
लोन के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है कि वो रोजगार के लिए गौपालन करें. यही एक तरीका है भारत में किसानों की आय बढ़ाने का लेकिन इसके लिए राजनीति से ऊपर उठकर एक व्यापक सहमति बनाने की जरूरत होगी. ग्रामीण व्यवस्था के कायाकल्प के लिए गौपालन एक महत्वपूर्ण आधारशिला साबित हो सकती है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्रज मोहन सिंह, एडिटर, इनपुट, न्यूज 18 बिहार-झारखंड
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे.
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