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कांग्रेस पार्टी क्यों परेशान है?
अजय झा.
उत्तराखंड कांग्रेस में इन दिनों बड़ी खलबली मची हुई है. यह खलबली इस लिए नहीं कि एक चुनावी सर्वे में यह बताया गया है कि इस बार प्रदेश में हर एक पांच साल में सरकार बदलने का इतिहास बदलने वाला है और कम सीटों से ही सही, पर भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से बहुमत हासिल कर सकती है. इस खलबली का कारण है उत्तराखंड सरकार द्वारा स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) को राज्य का सबसे बड़ा उत्तराखंड गौरव सम्मान देने का निर्णय. राज्य की बीजेपी सरकार ने ना सिर्फ नारायण दत्त तिवारी को यह सम्मान दिया, बल्कि एक सड़क जो उनके कुमायूं स्थित पुश्तैनी गांव को जोड़ती है, उसे एन डी तिवारी के नाम पर रख दिया है. बल्कि उधम सिंह नगर जिले के पंत नगर इंडस्ट्रियल एस्टेट का नाम भी तिवारी के नाम पर रख दिया है. जिसके बाद से ही कांग्रेस पार्टी की परेशानी बढ़ गयी है.
कांग्रेस पार्टी पुरजोर कोशिश में लगी है कि प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में उसकी जीत हो. उत्तराखंड का अब तक का इतिहास है, चार बार चुनाव हुआ है और चारों बार विपक्ष की सरकार बनी है. पर शुक्रवार को आए एक ओपिनियन पोल के अनुसार बीजेपी एक बार फिर से चुनाव जीत सकती है. जहां कांग्रेस पार्टी को 30 और 34 के बीच सीट मिलने की सम्भावना दिखाई गयी है, बीजेपी के खाते में कम से कम 36 और अधिकतम 40 सीटों पर जीत की सम्भावना बताई गयी है, जो 2017 के 57 सीटों से काफी कम है पर 70 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए पर्याप्त है.
एनडी तिवारी को सम्मान देना बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक है
अगर केंद्र और राज्य दोनों जगहों में एक ही दल की सरकार हो तो उसका एक फायदा होता है कि सरकार को खुफिया तंत्रों से सूचना मिलती रहती है और उसे किसी निजी चैनल के सर्वे का इंतज़ार नहीं करना पड़ता है. स्पष्ट है कि बीजेपी के पास अग्रिम सूचना थी कि चुनाव नजदीकी होने वाला है और पार्टी को कुछ ऐसा करना होगा कि उसके सीटों की संख्या और बढ़े. लिहाजा पार्टी ने तिवारी को सम्मान के नाम पर एक मास्टर स्ट्रोक लगा दिया है. तिवारी उत्तराखंड के इतिहास में गोविन्द बल्लभ पंत और हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ सबसे बड़े राजनीतिक नेताओं में से एक थे. तीन बार अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, केंद्र में विदेश और फिर वित्त मंत्री रहे तथा 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.
2002 में उत्तराखंड के पहले चुने हुए मुख्यमंत्री बने और बाद में आंध्रप्रदेश के राज्यपाल भी रहे. अब तक के 21 साल के इतिहास में, जबसे उत्तर प्रदेश से अलग हो कर उत्तराखंड एक पृथक राज्य बना, प्रदेश में 10 मुख्यमंत्री बने हैं, पर तिवारी ही एकलौते ऐसे नेता रहे जो पूरे पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे. उत्तराखंड के विकास में उनकी भूमिका सराहनीय रही. तीन वर्ष पूर्व 93 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई और मरने से पहले वह रिटायर्ड जीवन जरूर जी रहे थे, पर बीजेपी के काफी करीब हो गए थे.
बीजेपी दूसरे दलों के नेताओं को बना लेती है अपना आइकॉन
वैसे बीजेपी की एक खासियत है. उसे दूसरे दलों के नेताओं को अपना आइकॉन बनाने में कोई संकोच नहीं होता. जनसंघ की स्थापना स्वतंत्रता के बाद हुई और जनसंघ का विलय 1977 में जनता पार्टी में हो गया. 1980 में बीजेपी की स्थापना हुई. लिहाजा बीजेपी के पास आइकॉन की काफी क़िल्लत रही है. सिर्फ दीन दयाल उपाध्याय और श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ही इसके पूर्व के बड़े नेता थे, जिनके नाम पर वोट नहीं मिलते थे. लिहाजा गुजरात में चुनाव जीतने के लिए पहले महात्मा गांधी और बाद में सरदार पटेल के नाम का बीजेपी इस्तेमाल करने लगी. सरदार की कांग्रेस पार्टी द्वारा अनदेखी के बात खूब उछाली गयी. जिसका फायदा बीजेपी को मिला. सरदार पटेल की भव्य मूर्ति इसका गवाह है कि बीजेपी ने सरदार पटेल को जितना सम्मान दिया, वह कांग्रेस पार्टी ने नहीं दिया. क्योंकि वह जवाहरलाल नेहरु के समकालीन थे और माना जाता है कि अगर महात्मा गांधी ने नेहरु का पक्ष नहीं लिया होता तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते.
बीजेपी को अब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में एक आइकॉन जरूर मिल गया है, पर गांधी, सरदार पटेल, उपाध्याय, मुख़र्जी या वाजपेयी के नाम पर उत्तराखंड में वोट नहीं मिलने वाला है, लिहाजा बीजेपी को एक स्थानीय आइकॉन की जरूरत थी, जिसकी भरपाई स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के रूप में करने की कोशिश की जा रही है, जो कांग्रेस पार्टी को मंजूर नहीं है.
ब्राह्मणों को अपनी तरफ कर पाएगी बीजेपी
वर्तमान के कांग्रेस पार्टी की कमान प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के हाथों में है. जब तिवारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो रावत उनकी नाक में दम भरने का काम करते थे और जब 2012 में रावत मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने तिवारी की अनदेखी करनी शुरू कर दी और उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके की वह हकदार थे. रावत और तिवारी दोनों कुमायूं मंडल के ब्राह्मण हैं. पर जब रावत को लगने लगा कि कांग्रेस आलाकमान जीत की स्थिति में भी शायद उन्हें मुख्यमंत्री ना बनाये तो उन्होंने दलित मुख्यमंत्री का शगूफा फोड़ दिया, जिससे उत्तराखंड में ब्राह्मण और राजपूत समुदाय खुश नहीं हैं.
अब तक के सभी मुख्यमंत्री इन्हीं दो जातियों से रहे हैं. वर्तमान में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राजपूत हैं और अब तिवारी के नाम पर बीजेपी ब्राह्मण जाती के वोट लेने की कोशिश कर रही है. अगर जाति की ही बात हो तो उत्तराखंड के ब्राह्मण रावत से ज्यादा तिवारी का सम्मान करते हैं. कांग्रेस पार्टी को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं ब्राह्मण समुदाय बीजेपी का समर्थन ना करने लगें, अगर बीजेपी का तिवारी वाला पासा सही पड़ गया तो फिर बीजेपी ओपिनियन पोल में दिए 36 से 40 सीटों से कहीं आगे निकल जाएगी, जो कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी का कारण बन गया है.
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