सम्पादकीय

कांग्रेस पार्टी को विधानसभा चुनावों के लिए जोड़ीदार क्यों नहीं मिल रहे?

Shiddhant Shriwas
19 Oct 2021 11:27 AM GMT
कांग्रेस पार्टी को विधानसभा चुनावों के लिए जोड़ीदार क्यों नहीं मिल रहे?
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अब तक कांग्रेस मुक्त भारत का सपना सिर्फ बीजेपी का था. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के प्रति विपक्ष का बर्ताव है उसे देख कर लगता है कि यह सपना शायद अब विपक्ष का भी बन गया है.

कुछ ही महीने में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) होने हैं. तमाम राजनीतिक दल अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनावी मैदान में गठबंधन की किलेबंदी कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) जहां आरएलडी (RLD) और कई राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन कर रही है. वहीं बीएसपी (BSP) भी यूपी के चुनाव में छोटे दलों को साधने में जुटी हुई है. बीजेपी के साथ पहले से अपना दल, निषाद पार्टी और कई अन्य दल हैं. लेकिन इन सब के बीच सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस (Congress) की है. क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी की आज स्थिति ऐसी हो गई है कि उसके साथ कोई चुनावी मैदान में उतरना नहीं चाहता.

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में भी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने भले ही अपने ओल्ड गॉर्ड्स की बोलती बंद कर दी हो, लेकिन अंदरखाने में उन्हें भी यह बात पता है कि पार्टी की हालत खस्ता है. और अपने बल पर आगामी विधानसाभा चुनावों में प्रदर्शन बेहतर नहीं होने वाला है. 2017 में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर यूपी में चुनाव लड़ा था. लेकिन उस गठबंधन का परिणाम इतना बुरा साबित हुआ की 'यूपी के दो लड़कों' की दोस्ती हमेशा के लिए टूट गई और अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि समाजवादी पार्टी अब आगे के चुनाव कांग्रेस के बिना लड़ेगी.
रही बात बीएसपी की तो वह तो पहले से ही कांग्रेस से खार खाई हुई है और 2017 के चुनाव के बाद से ही वह कांग्रेस पर हमलावर है. बची थीं छोटी-छोटी राजनीतिक पार्टियां जिनसे कांग्रेस को थोड़ी बहुत उम्मीद थी, वह सब पार्टियां अब आपस में मिल कर ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के साथ एक तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी में हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो आने वाले चुनाव में कांग्रसे चुनावी मैदान में एक दम अकेली बेसाहारा नजर आने वाली है.
प्रियंका गांधी की सक्रिय भूमिका भी नहीं सुधार सकी कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से सूखा मरूस्थल है. जहां हर तरफ सिर्फ हार ही हार नजर आती है. इस मरूस्थल को जीत के पानी से हरा भरा करने की जिम्मेदारी मिली प्रियंका गांधी को. प्रियंका गांधी ने इसके लिए खूब मेहनत की. किसी भी मुद्दे को नहीं छोड़ा. हाथरस से लखीमपुर खीरी तक हर जगह डटी रहीं. दरअसल प्रियंका गांधी को लगता था कि उनका यह जुझारू रूप देख कर समाजवादी पार्टी या फिर बीएसपी शायद कांग्रेस से गठबंधन कर ले और 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इज्जत बच जाए. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ. प्रियंका गांधी के इतनी सक्रियता के बावजूद भी अन्य राजनीतिक दलों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.
बीजेपी के विरोध में, लेकिन कांग्रेस के साथ नहीं!
देश में इस वक्त कांग्रेस समेत हर विपक्षी दल चाहता है कि केंद्र से बीजेपी की सरकार चली जाए और वह उसके लिए प्रयास भी कर रहा है. लेकिन यहां कांग्रेस के लिए मुश्किल यह है कि विपक्ष की सोच भले ही उसकी सोच से मिल रही हो, लेकिन विपक्ष इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ चुनावी मैदान में खड़ा होना नहीं चाहता है. दक्षिण से लेकर उत्तर तक हर तरफ कांग्रेस धीरे-धीरे अकेली पड़ती जा रही है. हालांकि यूपी में अगर कांग्रेस कुछ चमत्कार कर दिखाती है जिसकी उम्मीद ना के बराबर है तो शायद 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ क्षेत्रीय दल उसके साथ आ जाएं.
'मुंगेरी लाल के हसीन सपनों' में जी रही है कांग्रेस
कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि वह 'मुंगेरी लाल के हसीन सपनों' में जीती है. जहां उसे सब कुछ अपने लिए अच्छा ही अच्छा नज़र आता है. कांग्रेस के आलाकमान को लगता है कि जमीन पर कांग्रेस अभी बरगद की तरह अपनी जड़े जमाए हुए है. लेकिन उसे शायद पता नहीं की उसकी स्थिति आज जमीन पर लगे उस पौधे की तरह हो गई है जिसे अगर जल्द जीत का पानी नहीं मिला तो वह हार की तपिश से कभी भी सूख जाएगा. कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि वह हर जगह बडे़ भाई की भूमिका में रहना चाहती है, जबकि असलियत में उसकी स्थिति मंझले भाई की भी नहीं है.
बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत के तमाम राज्य. हर जगह कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बन चुकी है. ऐसे में वह उम्मीद करती है कि आगामी चुनावों में नेतृत्व की डोर उसके हाथों में रहे, जो किसी को स्वीकार नहीं है. ममता बनर्जी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, चंद्रशेखर राव जैसे कई नेताओं ने पहले ही बता दिया है कि विपक्ष की किलेबंदी में कांग्रेस जरूर होगी, लेकिन सिपाही की भूमिका में. सेनापति की भूमिका में नहीं. हालांकि कांग्रेस सेनापति की भूमिका से नीचे कुछ नहीं चाहती है, इसीलिए वह आज हर राज्य में अकेली पड़ती जा रही है.
क्या विपक्ष भी देखने लगा है कांग्रेस मुक्त भारत का सपना
अब तक कांग्रेस मुक्त भारत का सपना सिर्फ बीजेपी का था. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के प्रति विपक्ष का बर्ताव है उसे देख कर लगता है कि यह सपना शायद अब विपक्ष का भी बन गया है. केंद्र से गायब कांग्रेस अब राज्यों के भरोसे ही जिंदा है. लेकिन तमाम क्षेत्रीय पार्टियां अब राज्यों में भी कांग्रेस को हटाने के लिए दाना पानी लेकर चढ़ गई हैं. पश्चिम बंगाल में भारी जीत के बाद ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है. जीत के बाद ही उन्होंने ऐलान कर दिया था कि टीएमसी अब देश के कोने-कोने में अपना कैडर तैयार करेगी. ममता बनर्जी ने तो यहां तक ऐलान कर दिया था कि उनकी नजर अब दिल्ली पर भी है. उसेक लिए उन्होंने विपक्षी एकता की शुरूआत भी कर दी है.
वैसे ही कांग्रेस से दिल्ली छीनने वाली आम आदमी पार्टी अब उससे पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और गोवा भी छीनना चाहती है. ध्यान रहे कि अगर उत्तर प्रदेश छोड़ दिया जाए तो बाकि के सभी राज्यों में कांग्रेस दूसरे या पहले नंबर की पार्टी होती है. पर इन राज्यों में अब जिस तरह से 'आप' अपनी बढ़त बना रही है, वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस यहां तीसरे नंबर का पार्टी बन जाएगी. महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना उसकी चलने नहीं देते. दक्षिण भारत के राज्यों में भी कांग्रेस अब धीरे-धीरे नीचे खिसकती जा रही है.


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