सम्पादकीय

वैक्सीन टार्गेट को पूरा करना भारत के लिए अभी भी बड़ी चुनौती क्यों है?

Rani Sahu
19 July 2021 1:13 PM GMT
वैक्सीन टार्गेट को पूरा करना भारत के लिए अभी भी बड़ी चुनौती क्यों है?
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वैक्सीन टार्गेट को पूरा करना भारत के लिए अभी भी बड़ी चुनौती क्यों है?

पंकज कुमार भारत के नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया (Mansukh Mandaviya) ने पीएम मोदी (PM Modi) की तारीफ करते हुए ट्वीट किया है कि शुरुआती दस करोड़ टीका लगाने में 85 दिन लगे थे . वहीं "सबको वैक्सीन, मुफ्त वैक्सीन "अभियान की वजह से अंतिम दस करोड़ के आंकड़े को छूने में महज 24 दिन लगे हैं. दरअसल अंतिम 30 करोड़ से 40 करोड़ के आंकड़े पार करने में 24 दिन लगे हैं लेकिन इस तेज रफ्तार के बावजूद भारत अपने लक्ष्य से काफी पीछे है .

भारत तेज़ रफ्तार से चल रहे टीकाकरण के बावजूद लक्ष्य से दूर क्यों है ?
भारत में टीकाकरण की रफ्तार हर 10 करोड़ डोज के दरमियान तेज हो रही है. पहला 10 करोड़ डोज लगाने में 85 दिनों का समय लगा था .जबकि दूसरे और तीसरे 10 करोड़ डो़ज लगाने में 45 और 29 दिनों का वक्त लगा था लेकिन चौथे दस करोड़ डोजेज को महज 24 दिनों में लगाया गया है जो देश में तेजी से बढ़ रहे वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया का सूचक है. लेकिन तेज रफ्तार के बावजूद लक्ष्य को छू पाने में भारत कामयाब होता नहीं दिखाई पड़ रहा है.
नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने जुलाई के टीकाकरण का लक्ष्य बढ़ा कर 12 करोड़ से 13.5 करोड़ कर दिया है. ज़ाहिर है इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए रोजाना 43.5 लाख लोगों को वैक्सीन लगाना बेहद जरूरी है. लेकिन एक से पंद्रह जुलाई के बीच टीकाकरण की जो दर 39.8 लाख था वो अंतिम सात दिनों में उससे भी घटकर 37.7 लाख के पास पहुंच गया है. जो निर्धारित लक्ष्य 43.5 लाख से तकरीबन 6 लाख डोजेज रोजाना कम है.
वैक्सीन के निर्धारित लक्ष्य से पीछे क्यों है भारत?
दरअसल डिमांड की अपेक्षा वैक्सीन की सप्लाई देश में कम हो रही है. वैक्सीन का प्रोडक्शन निर्धारित लक्ष्य की तुलना में कम है वहीं सरकार का निर्धारित लक्ष्य भी हकीकत के मापदंड पर वाजिब दिखाई नहीं पड़ता है. भारत सरकार द्वारा कोर्ट में दिए गए शपथपत्र के मुताबिक मई महीने में साढ़े आठ करोड़ वैक्सीन का प्रोडक्शन होना चाहिए था. वहीं जुलाई महीने में कोविशील्ड और कोवैक्सीन का प्रोडक्शन 15.5 करोड़ होना चाहिए था. इस हिसाब से भारत को 28.3 लाख वैक्सीन के डोजेज का प्रोडक्शन मई और जून महीने में करना चाहिए था जबकि जुलाई महीने में इसका प्रोडक्शन 51.7 लाख रोजाना होना चाहिए था. लेकिन हकीकत में आंकड़ा लक्ष्य से कहीं कम रहा .
सरकार द्वारा शपथपत्र में वर्णित आंकड़ों के हिसाब से जुलाई में 15.5 करोड़ वैक्सीन के लक्ष्य की प्राप्ति का जिक्र है लेकिन वर्तमान में टीकाकरण का जो रफ्तार है उसमें 12 करोड़ का आंकड़ा जुलाई महीने में छूना मुश्किल दिखाई पड़ रहा है. शपथपत्र में जनवरी से लेकर जुलाई तक के बीच 51.6 करोड़ टीकाकरण का दावा किया गया है जो वर्तमान दर के हिसाब से 45 करोड़ का आंकड़ा मुश्किल से छूता हुआ दिखाई पड़ रहा है.
जुलाई से दिसंबर के बीच टीकाकरण के हालात में होगी तब्दीली ?
सरकार द्वारा कोर्ट में दिए गए शपथपत्र के मुताबिक अगस्त से दिसंबर के बीच 135 करोड़ डोज का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. पहले ये 216 करोड़ बताया गया था लेकिन जून महीने में तब्दीली करने की वजह से 135 करोड़ का आंकड़ा पेश किया गया है. इस कड़ी में जून महीने में कई कंपनियों के नाम हटा दिए गए जो वैक्सीन के ट्रायल में शुरुआती फेज में पाए गए हैं. इन कंपनियों में नाम शुमार है नोवोवैक्स,जीन्नोवा,और बी बी नासल का जो वैक्सीन मुहैया कराने वाली कंपनियों की लिस्ट से हटा दिए गए हैं. कहा जा रहा है कि सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिय़ा द्वारा 50 करोड़ कोविशील्ड के डोज के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है लेकिन बाकी कंपनीज पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना रियलिस्टिक नहीं है.
दरअसल जुलाई से दिसंबर के दरमियान कोवैक्सीन के 40 करोड़ डोजेज देश को मुहैया कराने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. जुलाई तक कोवैक्सीन के निर्माता भारत बायोटेक को कोवैक्सीन के 8 करोड़ डोजेज के सप्लाई करने थे जो 30 जून तक महज 4 करोड़ ही कर पाया है.
इसलिए भारत बायोटैक पर सरकार द्वारा इस कदर आधारित रहना अव्यवहारिक करार दिया जा रहा है. इतना ही नहीं जुलाई से दिसंबर के बीच 135 करोड़ के आंकड़े को छूने के लिए स्पूतनिक वी के 10 करोड़, कोरबीवैक्स के 30 करोड़ और जाइडस कैडिला के 5 करोड़ डोजेज के लक्ष्य का निर्धारण दिसंबर तक है जिसे पूरा किए जाने को लेकर लेकर ऊहापोह की स्थिति है.
भारत सरकार के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर टीवी 9 को बताया नए स्वास्थ्य मंत्री को आने का मतलब वैक्सीन को लेकर सरकार का एग्रेसिव अप्रोच है जो जल्द ही मूर्त रूप लेता हुआ दिखाई पड़ेगा. दरअसल मंत्रालय में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कोरोना को लेकर सरकार किसी भी तरह की कोई कोताही बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है और इसकी वजह है यूपी में आने वाला साल 2022 का विधानसभा चुनाव जो साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है.


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