सम्पादकीय

प्रशासनिक नियमों के संशोधन से क्यों हैं ममता बनर्जी परेशान?

Gulabi
22 Jan 2022 8:23 AM GMT
प्रशासनिक नियमों के संशोधन से क्यों हैं ममता बनर्जी परेशान?
x
यह संशोधन केंद्र बनाम राज्य का विवाद शुरू कर सकता है
अजय झा.
केन्द्र सरकार (Central government) के प्रस्तावित भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारियों से संबंधित नियम संशोधन पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. प्रस्तावित संशोधन के तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होगा कि वह किसी भी राज्य से IAS, IPS और Indian Forest Service के अधिकारी को केंद्र में काम करने के लिए बुला सकती है, और राज्य सरकार को उन्हें रोकने का कोई अधिकार नहीं होगा.
केंद्र सरकार की दलील है कि केंद्र में अफसरों की काफी कमी होती जा रही है जिस कारण कई मंत्रालय और विभागों में कई महत्वपूर्ण पद खली पड़े हैं. बताया गया है कि संयुक्त सचिव (Joint Secretary) की संख्या जहां 2011 में 309 थी, IAS अधिकारियों की कमी के कारण अब केंद्र में उनकी संख्या मात्र 233 रह गयी है. वर्तमान नियमों के अनुसार अभी राज्य सरकार यह फैसला लेती है कि किस अधिकरी को और कितने समय में लिए केन्द्रीय सेवा में भेजा जाएगा.
यह संशोधन केंद्र बनाम राज्य का विवाद शुरू कर सकता है
केंद्र सरकार का कोई अपना कैडर नहीं होता है. केंद्र में नियुक्त सभी अधिकारी किसी ना किसी राज्य के कैडर से जुड़े होते हैं और उन्हें केंद्र सरकार के अनुरोध पर केन्द्रीय सेवा के लिए राज्य सरकारों द्वारा भेजा जाता है. केंद्र का अधिकार सिर्फ इतना ही होता है कि उन अधिकारियों को किस पद पर नियुक्त करना है.
केंद्र सरकार की दलील में दम है. पर अभी से जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है, लगता है कि यह विवाद तूल पकड़ने वाला है. ममता बनर्जी का मानना है कि अगर केंद्र सरकार के पास यह अधिकार आ गया तो वह राज्य सरकारों के कार्य में विघ्न डाल सकते हैं. पश्चिम बंगाल के बाद एक और विपक्षी प्रदेश महाराष्ट्र ने भी इस प्रस्तावित संशोधन पर आपत्ति व्यक्त की है. उम्मीद है कि कुछ और विपक्षी राज्य भी इसमें जुड़ सकते हैं और यह केंद्र बनाम राज्य के पुराने विवाद में बदल सकता है.
इस विवाद की शुरुआत ममता बनर्जी ने ही की थी
ममता बनर्जी की परेशानी समझी जा सकती है, क्योंकि इसकी शुरुआत भी उन्होंने ही की थी. समुद्री तूफ़ान यास से हुए क्षति की समीक्षा करने 28 मई 2021 को जब प्रधानमंत्री मोदी ओडिशा और पश्चिम बंगाल गए थे, तो ममता बनर्जी ने एक तरह से उस मीटिंग का बहिष्कार किया था. मीटिंग में देर से आईं और वहां सुवेंदु अधिकारी, जिन्होंने ममता बनर्जी को नंदीग्राम में विधानसभा चुनाव में पराजित किया था, को देखकर वह इस कदर नाराज हो गयीं कि वह मीटिंग से ना खुद उठा कर चली गयीं बल्कि अपने साथ पश्चिम बंगला के तात्कालिक मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को भी ले कर गयीं. सुवेंदु अधिकारी उस मीटिंग में नेता प्रतिपक्ष के नाते आमंत्रित किए गए थे. बाद में ममता बनर्जी ने सफाई दी कि चूंकि उनका मुख्य सचिव के साथ पहले से प्रभावित क्षेत्रों के दौरे का कार्यक्रम तय था, वह मीटिंग से प्रधानमंत्री की अनुमति से उठ कर गयी थीं, जिसका खंडन केंद्र सरकार ने बाद में किया.
अलपन बंदोपाध्याय 21 मई को सेवानिवृत्त होने वाले थे, पर पश्चिम बंगाल सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने उनके रिटायरमेंट को तीन महीनों के लिए बढ़ा दिया था. उस मीटिंग के चार दिन बाद ही केंद्र सरकार ने अलपन बंदोपाध्याय को केंद्र में काम करने का आदेश दिया जिसे ममता बनर्जी सरकार ने ठुकरा दिया. बंदोपाध्याय ने इस विवाद में उलझने और केंद्र सरकार में अपनी सेवा देने से बेहतर रिटायर होने का निर्णय लेना समझा, जिसके ठीक बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्त कर दिया.
राजनीतिक विवाद में किसी अधिकारी को उलझाना ठीक नहीं
बंदोपाध्याय की जगह कोई भी अधिकारी होता तो उसके सामने यही समस्या होती कि वह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री में चल रहे विवाद में किसकी सुने और किसकी अवहेलना करे. ऐसी स्थिति शायद ही पहले किसी IAS अधिकारी ने अनुभव किया था. चूंकि वह पश्चिम बंगाल कैडर के अधिकारी थे और पश्चिम बंगाल सरकार में मुख्य सचिव थे, उन्होंने जो किया उसे किसी हद तक सही भी ठहराया जा सकता है, क्योंकि उन्हें मुख्य सचिव के रूप में मुख्यमंत्री को ना कि प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करना होता था. पर ममता बनर्जी को इसका अहसास होना चाहिए था कि एक राजनीतिक विवाद में किसी अधिकारी को उलझाना कोई बुद्धिमत्ता नहीं थी.
ममता बनर्जी की नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत स्तर पर मतभेद या नाराजगी समझी जा सकती है. कुछ ही दिनों पहले प्रदेश चुनाव के दौरान वह एक दूसरे पर हमला कर रहे थे. पर मोदी उस दिन कोलकाता में प्रधानमंत्री के रूप में मौजूद थे, ना कि बीजेपी नेता के रूप में. संवैधानिक पदों की गरिमा का आदर करना उन सभी से अपेक्षित है, जिन्हें भारत के संविधान में आस्था है. ममता बनर्जी की नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. उन्हें सोचना चाहिए था कि अगर वह भारत की प्रधानमंत्री बन गयीं तो क्या उन्हें किसी मुख्यमंत्री का और उस राज्य के मुख्य सचिव का इस तरह का व्यवहार स्वीकार्य होगा?
वहीं दूसरी तरफ, अगर IAS और IPS अधिकारियों के कार्य संबंधित निमयों में संशोधन केंद्र में अधिकारियों की कमी के कारण लेने का प्रस्ताव है तो इससे किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि देश सेवा राज्य सेवा से पहले आता है. पर अगर इन नियमों में संशोधन सिर्फ राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से और राज्य सरकारों पर नकेल कसने की दृष्टि से लिया जा रहा है तो मोदी सरकार को भी यह याद रखना चाहिए कि बीजेपी सत्ता में अनंत काल में लिए नहीं है. केंद्र में भविष्य में किसी और पार्टी की भी सरकार बन सकती है. जनतंत्र में सब कुछ संभव है. उस स्थिति में राज्य के बीजेपी सरकारों का क्या हाल होगा, यह भी नहीं भूलना चाहिए. जरूरत है कि प्रशासनिक विवादों को प्रशासनिक स्तर पर ही सुलझाया जाए और उन्हें राजनीति में ना घसीटा जाए, क्योंकि पार्टी और नेता आते और जाते रहेंगे, पर देश स्थायी होता है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Next Story