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कांग्रेस वर्किंग कमेटी (Congress Working Committee) के घिसे पिटे राग से नाराज कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने एक बार फिर पार्टी को ‘घर की कांग्रेस’ से बाहर निकल कर ‘सबकी कांग्रेस’ बनने की सलाह दे डाली है
पंकज कुमार
कांग्रेस वर्किंग कमेटी (Congress Working Committee) के घिसे पिटे राग से नाराज कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने एक बार फिर पार्टी को 'घर की कांग्रेस' से बाहर निकल कर 'सबकी कांग्रेस' बनने की सलाह दे डाली है. कपिल सिब्बल ने साफ कह दिया कि गांधी परिवार (Gandhi Family) को नेतृत्व छोड़कर चुनाव कराना चाहिए और पार्टी में नए नेतृत्व को मौका दिया जाना चाहिए. कांग्रेस वर्किंग कमेटी को आड़े हाथों लेते हुए सिब्बल ने कह दिया कि असली कांग्रेस वर्किंग कमेटी के बाहर है जो कांग्रेस को बुलंदियों पर देखना चाहती है. आजादी के बाद अभी तक 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें गैर-नेहरू-गांधी परिवार के 7 लोगों ने अध्यक्ष पद संभाला है.
कांग्रेस को इस दरमियान 4 चुनावों में जीत मिली है. कपिल सिब्बल इतिहास के पन्नों को पलटकर कांग्रेस के स्वर्णिम युग की तरफ लौटना चाहते हैं, जब कांग्रेस परिवारवाद से बाहर निकलकर लोकतांत्रिक पार्टी हुआ करती थी. दरअसल गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर 1998 से 2017 तक विराजमान रही हैं. 19 साल तक कांग्रेस की अध्यक्षा रहने का उनका सबसे लंबा रिकॉर्ड है. कांग्रेस 2004 और 2009 में सोनिया के नेतृत्व में सत्ता पर काबिज हुई और इस दरमियान कांग्रेस के युवराज के तौर पर राहुल राजनीति में कदम रखकर पार्टी में अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहे.
युवराज को महाराज बनाने का औपचारिक एलान
युवराज को महाराज बनाने का औपचारिक एलान साल 2017 में हुआ, जब राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. राहुल के नेतृत्व में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में कांग्रेस की जीत हुई. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस की करारी शिकस्त ने राहुल को अध्यक्ष पद छोड़ने को विवश कर दिया. राहुल परंपरागत सीट अमेठी भी हार गए, 134 साल पुरानी पार्टी 52 सीटों पर सिमट गई. राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और पार्टी गांधी परिवार के बाहर अध्यक्ष का चुनाव करेगी ऐसा दिखाई पड़ने लगा.
लेकिन तीन साल बाद भी कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के बाहर अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने में नाकामयाब रही है. कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है, लेकिन एक के बाद दूसरी हार से आहत कपिल सिब्बल लगातार ऐसे सवाल उठाकर कांग्रेस को जगाने का प्रयास कर रहे हैं. कपिल सिब्बल कांग्रेस वर्किंग कमेटी द्वारा गांधी परिवार पर भरोसा जताए जाने पर कटाक्ष करते हुए साफ लहजे में कहते हैं कि कांग्रेस को कौन चला रहा है ये सबको पता है. इसलिए पार्टी के नेतृत्व से गांधी परिवार को किनारा कर लेना चाहिए.
सिब्बल राहुल गांधी द्वारा चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने की घोषणा पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं हैं तो उन्होंने चन्नी को सीएम किस हैसियत से बनाया. ज़ाहिर है पार्टी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके नेतृत्व में काम कर रही थी. इसलिए राहुल गांधी को अध्यक्ष पद स्वीकार करने के लिए निवेदन करना किसी मजाक से कम नहीं है. दरअसल सिब्बल नए नेतृत्व को मौका देने के पक्ष में आवाज़ बुलंद कर रहे हैं और इसलिए साफ लफ्जों में कहते हैं कि पार्टी के औपचारिक अध्यक्ष राहुल गांधी के नहीं होने के बावजूद पार्टी उन्हीं के नेतृत्व में चल रही है. इसलिए पार्टी को गांधी परिवार के बाहर नेता की तलाश करनी चाहिए.
कांग्रेस गांधी परिवार के बगैर चलने का मादा वाकई रखती है
कर्नाटक के दिग्गज नेता डी के शिवकुमार, अशोक गहलोत समेत मीडिया में सुर्खियां बटोरने वाले दिग्विजय सिंह गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस पार्टी का सर्वाइवल नामुमकिन मानते हैं. 137 साल पुरानी पार्टी गांधी परिवार के बगैर चलने में नाकाबिल है इस बात पर मुहर कांग्रेस वर्किंग कमेटी में 60 से ज्यादा नेता लगा चुके हैं. साल 2019 से लेकर अब तक कांग्रेस नए अध्यक्ष की तलाश करने में नाकामयाब रही है, इसलिए अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर गांधी परिवार की बहू सोनियां गांधी के नेतृत्व में काम चला रही है और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के तमाम दिग्गज गांधी परिवार के नेतृत्व पर भरोसा जता वापस राहुल गांधी से नेतृत्व स्वीकार करने की गुहार लगा रहे हैं. ज़ाहिर है कई नेता ऐसा कह चुके हैं कि कांग्रेस को एकजुट गांधी परिवार के नेतृत्व के बगैर रखना नामुमकिन है.
गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस चलाना वाकई मुश्किल है?
देश की आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी के कुल 19 अध्यक्षों में सिर्फ 5 गांधी परिवार से रहे हैं. ये बात और है कि गांधी परिवार अध्यक्ष पद पर 37 सालों तक काबिज रहा है. कपिल सिब्बल गांधी परिवार से इतर नेतृत्व की मांग कर उन 14 अन्य अध्यक्षों का हवाला दे रहे हैं जिनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी मजबूत हुआ करती थी. इतना ही नहीं सिब्बल कहते हैं कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के लोग कांग्रेस वर्किंग कमेटी से बाहर गांधी परिवार के बाहर नेतृत्व का राग अलापते हैं, लेकिन गांधी परिवार के सामने घिसी पिटी बात कह वफादारी का सुबूत देने की कोशिश करते हैं जो आम कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरती है. ऐसे में सवाल उठता है कि लगातार खराब प्रदर्शन कर रही कांग्रेस पार्टी कपिल सिब्बल की मांग पर पार्टी के नेतृत्व को गांधी परिवार से बाहर किसी अन्य के हाथों से सौंपेगा?
इसको समझने के लिए उस वाकये को समझते हैं जब इंदिरा गांधी ने पार्टी को तोड़कर इंदिरा कांग्रेस बना लिया था. कांग्रेस से कांग्रेस (आई) बनाने का औचित्य क्या था. दरअसल साल 1977-78 में कांग्रेस के अध्यक्ष ब्रह्मनंद रेड्डी बने, लेकिन कांग्रेस का विभाजन हो गया और कांग्रेस (आई) बनकर तैयार हो गई. तब से लेकर साल 1984 तक इंदिरा गांधी पीएम भी रहीं और अध्यक्ष पद पर भी काबिज रहीं. ज़ाहिर है गांधी परिवार की पकड़ यहीं से कांग्रेस पार्टी पर पूरी तरह मजबूत हो चुकी थी और एक लोकतांत्रिक पार्टी परिवारवाद की चपेट में आगे बढ़ने लगी थी. ये सिलसिला साल 1985 से लेकर 1991 तक भी जारी रहा जब राजीव गांधी पीएम और अध्यक्ष पद पर बने रहे. संगठन और सत्ता पर मजबूत पकड़ रखने के लिए साल 1991 से 1996 तक पी वी नरसिम्हा राव ने भी अध्यक्ष से लेकर पीएम पद को संभाले रखा.
साल 1996 में नरसिंहाराव सरकार की हार के बाद कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा फिर से बढ़ने लगा और सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद गांधी परिवार के भरोसेमंद सिपाही की तरह शुरूआत में काम करते रहे. लेकिन 1998 में सोनियां गांधी के एक्टिव पॉलिटिक्स ज्वाइन करने के बाद सोनियां गांधी लगातार कांग्रेस की अध्यक्षा साल 2017 तक बनी रहीं. साल 2017 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद संभाला लेकिन साल 2019 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया और सोनियां गांधी एक बार फिर अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी संभाल रही हैं. ज़ाहिर है साल 1977-78 में इंदिरा कांग्रेस बनने के बाद गांधी परिवार का ही कांग्रेस पर वर्चस्व पूरी तरह से रहा है. इंदिरा गांधी द्वारा कांग्रेस को तोड़ कर कांग्रेस (आई) बनाने के बाद गांधी परिवार ही कांग्रेस का सर्वेसर्वा रहा है.
ये बात और है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद गांधी परिवार द्वारा एक्टिव पॉलिटिक्स से दूर रहने की वजह से 5 सालों तक सत्ता और संगठन में नरसिंहा राव की पकड़ मजबूत थी लेकिन 1996 में चुनाव हारने के बाद नरसिंहा राव हाशिए पर धकेल दिए गए और गांधी परिवार के आर्शीवाद से ही सीताराम केसरी अध्यक्ष पद पर विराजमान हो सके थे. लेकिन साल 1998 से सोनिया गांधी के एक्टिव पॉलिटिक्स में कदम रखने के बाद कांग्रेस पार्टी पूरी तर गांधी परिवार की गिरफ्त में है. ऐसे में कपिल सिब्बल द्वारा नेतृत्व परिवर्तन की बात खुलकर करना कांग्रेस पार्टी पर चार दशक से गांधी परिवार के एकक्षत्र राज को चुनौती देने जैसा है.
गांधी परिवार से इतर सोच सकती है कांग्रेस?
कपिल सिब्बल कांग्रेस को संगठन के स्तर पर मजबूत बनाना चाहते हैं. सिब्बल चाहते हैं कि पार्टी परिवारवाद से बाहर निकलकर नए नेतृत्व को मौका दे जो बीजेपी की तरह नए नेतृत्व को उभार कर कांग्रेस को जन जन की पार्टी बनाने की कोशिश करे. कपिल सिब्बल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की नेतृत्व शैली का परिणाम देख चुके हैं, जहां उनके इर्द गिर्द के तथाकथित अनुभवहीन लोग पार्टी को हाशिए पर धकेलने का काम एक के बाद दूसरे फैसले लेकर कर रहे हैं. इस कड़ी में सिब्बल चाहते हैं कांग्रेस महाराष्ट्र से लेकर कश्मीर और कन्याकुमारी तक अपने आधार को मज़बूत करे.
सिब्बल कांग्रेस में साल 1977 से पहले वाली हालात चाहते हैं जहां पार्टी में लोकतंत्रिक व्यवस्था हो और अध्यक्ष का चयन लोकतांत्रिक तरीके से हो. दरअसल कांग्रेस में आजादी के बाद जेबी कृपलानी,पट्टाभि सीतारमैया, हिन्दी को अधिकारिक भाषा देने की मांग करने वाले पुरुषोत्तम दास टंडन, यूएन ढेबर समेत नीलम संजीव रेड्डी और भारतीय राजनीति में किंगमेकर कहे जाने वाले के. कामराज कांग्रेस के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते रहे. साल1968-69 में एस. निजलिंगप्पा, 1970-71 में बाबू जगजीवन राम के बाद शंकर दयाल शर्मा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने. साल 1975-77 में देवकांत बरुआ कांग्रेस के अध्यक्ष बने. जिन्होंने इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा का नारा दिया था और इसे इमरजेंसी का भी दौर कहा जाता है.
और 1977-78 के बाद ही कांग्रेस में दो फाड़ होने के बाद (जब ब्रह्मनंद रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष थे) इंदिरा गांधी कांग्रेस(आई) की अध्यक्ष बनीं. इंदिरा गांधी लगतार साल 1984 तक अध्यक्ष बनीं रहीं. कहा जा सकता है कि साल 77-78 के बाद से ही गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी पर पूरे तरीके से काबिज हो गया और संगठन से लेकर सत्ता तक उसकी ही चलती रही. इस बीच कुछ अन्य लोग तभी आ पाए जब कुछ सालों तक गांधी परिवार राजनीति से दूर रहा या फिर राजनीतिक रूप से रीढ़ विहीन व्यक्ति को सत्ता सौंप कर कांग्रेस पार्टी और सत्ता पर परोक्ष रूप से दबदबा कायम रखा.
गांधी परिवार के इतर नेतृत्व की मांग करने वाले कपिल सिब्बल के साथ वाकई कांग्रेस का कितना बड़ा धड़ा खड़ा है ये बड़ा सवाल है. गांधी परिवार से दो अहम सदस्य राजनीति की भेंट चढ़े हैं और जनता ने भी गांधी परिवार में हुई मौत के बाद सत्ता की चाभी कांग्रेस को सौंपी है. ऐसे में गांधी परिवार का विकल्प कांग्रेस में वाकई कोई और हो सकता है ये बड़ा सवाल है.
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Rani Sahu
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