सम्पादकीय

लोकतंत्र क्यों बीमार है?

Gulabi Jagat
14 April 2022 5:14 AM GMT
लोकतंत्र क्यों बीमार है?
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लोकतंत्र क्यों बीमार है, यह समझने के लिए एक ताजा अध्ययन कई सूत्र उपलब्ध कराता है
By NI Editorial
लोकतंत्र क्यों बीमार है, यह समझने के लिए एक ताजा अध्ययन कई सूत्र उपलब्ध कराता है। इसलिए इस अध्ययन पर गौर किया जाना चाहिए। इस अध्ययन ने मर्ज की नब्ज पर हाथ रखी है। इस अध्ययन रिपोर्ट मे कहा गया है कि ब्रिटेन में लोगों का अपने देश के लोकतंत्र से भरोसा तेजी से उठ रहा है।
यह तो अब आम जानकारी की बात है कि पश्चिम ढंग से लोकतंत्र की सेहत ठीक नहीं है। लोकतंत्र के प्रति ऐसे मोहभंग की स्थिति है। हाल के दशकों में तमाम धनी देशों लोगों की ऐसी सोच कई रूपों में जाहिर हुई है। मसलन, मतदान में भागीदारी घटी है, तो कहीं पार्टी सदस्यता में भारी गिरावट आई है। उधर पोपुलिस्ट यानी भड़काऊ नारों के आधार पर सस्ती लोकप्रियता की राजनीति करने वाले नेताओँ के लिए बढ़ा समर्थन बढ़ा है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इस समझने के लिए एक ताजा अध्ययन कई सूत्र उपलब्ध कराता है। इसलिए इस अध्ययन पर गौर किया जाना चाहिए। कहा जा सकता है कि इस अध्ययन ने मर्ज की नब्ज पर हाथ रखी है। इस अध्ययन रिपोर्ट मे कहा गया है कि ब्रिटेन में लोगों का अपने देश के लोकतंत्र से भरोसा तेजी से उठ रहा है। खास युवा मतदाताओं में ये राह गहराई है कि ब्रिटिश लोकतंत्र देश की जनता के हितों को पूरा करने में नाकाम हो गया है। अब ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि राजनीतिक दलों के लिए अब ज्यादा उन्हें चंदा देने वाले धनी तबके और कारोबारी घराने ज्यादा अहम हो गए हैँ। थिंक टैंक आईपीपीआर ने अखबार ऑब्जर्वर के सहयोग से यह अध्ययन किया। इस अध्ययन के दौरान सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि सरकार जो फैसले लेती है, उसमें उनकी राय को महत्त्व दिया जाता है।
इसके उलट 25 प्रतिशत मतदाताओं ने राय जताई कि सरकारों की नीतियों को तय करने में बड़ी भूमिका उन्हें चंदा देने वाले समूहों की होती है। 16 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि सरकार की नीतियां कारोबारी समूह और बड़ी कंपनियां तय करते हैँ। 13 प्रतिशत लोगों ने राय जताई कि सरकार की नीतियां तय करने में मीडिया की प्रमुख भूमिका होती है। जबकि 12 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि लॉबिंग करने वाले समूहों की प्रमुख भूमिका होती है। चंदा देने समूह, कारोबारी समूह, और लॉबिंग करने वाले समूह लगभग एक जैसे हितों के प्रतिनिधि होते हैँ। मीडिया घरानों पर भी इन्हीं तबकों का नियंत्रण होता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि ब्रिटिश मतदाताओं में लगभग दो तिहाई यह मानते हैं कि सरकारें कॉरपोरेट घरानों और धनी-मानी तबकों के स्वार्थ के मुताबिक चल रही हैँ। जाहिर है, राजनीतिक दलों को लोकतंत्र की मौजूदा हालत पर सोच-विचार करना होगा। नेताओं को आम नागरिकों से फिर से अपना जुड़ाव कायम करना होगा।
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