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आप और हम इंसान हैं और फैंस भी हैं, और हर फैन की तरह हम और आप अक्सर इस बात पर बहस करते हैं कि
रविचंद्रन अश्विन को आखिर भारत का महानतम ऑफ स्पिनर कहने से जानकारों को हिचकिचाहट क्यों होती है? अनिल कुंबले के चलते निश्चित तौर पर अश्विन को महनातम स्पिनर तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन महानतम ऑफ स्पिनर में तो कोई बहस का मुद्दा है नहीं. अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि किसी दो युग के अलग-अलग खिलाड़ियों की महानता की तुलना नहीं की जा सकती है, लेकिन ये तो किताबी बातें हैं , सिर्फ कहने के लिए ही होती हैं.
आप और हम इंसान हैं और फैंस भी हैं, और हर फैन की तरह हम और आप अक्सर इस बात पर बहस करते हैं कि बेहतर कौन, अश्विन या भज्जी? सोशल मीडिया में ट्रोलिंग के दौर में अगर आप किसी एक खिलाड़ी विशेष को बेहतर बताने का जोखिम उठातें है तो अक्सर दूसरे खिलाड़ी के समर्थक आप पर टूट पड़ते हैं. कभी तर्कों से तो अक्सर कुतर्कों से.. कभी शानदार आंकड़ों से तो कभी बेमतलब के आंकड़ों से..
बहरहाल, जब जिक्र आंकड़ो का हुआ है तो ये कहना ज़रुरी है कि हरभजन सिंह को जहां 417 टेस्ट विकेट के लिए 103 मैचों का सफर तय करना पड़ा वहीं अश्विन ने ये दूरी महज 80 टेस्ट में तय कर ली.
23 मैचों का फासला एक पूरा करियर होता है जनाब!
एक या दो नहीं बल्कि 23 मैच. और ये कोई मामूली संख्या नहीं है, क्योंकि मौजूदा समय में बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता चेतन शर्मा का कुल करियर 23 मैचों का ही रहा है. यानि 23 मैचों का फासला अच्छे से अच्छे खिलाड़ियों का पूरा करियर होता है. नहीं तो आप ये बात अमित मिश्रा से पूछिए जिन्हें अब तक 23 टेस्ट खेलने का मौका भी नहीं मिला है.
अश्विन की बल्लेबाज़ी को कोई गंभीरता से नहीं लेता है…
ऐसा नहीं है कि सिर्फ अश्विन की गेंदबाज़ के तौर पर उनकी महानता की अनदेखी की जाती है. अक्सर बल्ले से जो वो रन बनाते हैं , उन्हें भी कई जानकार हवा में ही उड़ा देते हैं. अजीत अगरकर या फिर हार्दिक पंड्या जैसा गेंदबाज़ अगर थोड़ी सी भी अच्छी बल्लेबाज़ी कर लें, तो उन्हें अगला कपिल देव का तमगा तुरंत मिल जाता है, लेकिन 5 टेस्ट शतक बनाने के बावजूद अश्विन की बल्लेबाज़ी को कोई गंभीरता से नहीं लेता है.
अगर टेस्ट क्रिकेट में आपको 5 शतक की अहमियत जाननी है तो ये सवाल कभी युवराज सिंह, संजय मांजरेकर, विनोद कांबली और संदीप पाटिल जैसे बल्लेबाज़ों से पूछ लिजियेगा जिन्होंने अपने पूरे करियर में कभी इतने शतक नहीं लगायें जितने अश्विन ने जमायें हैं! ये बात भी अक्सर बहुत लोगों को कचोटती है कि आखिर क्यों अश्विन को उनके नियमित कप्तान विराट कोहली उन्हें वो सम्मान नहीं देते हैं जिसके वो वाकई हकदार हैं.
विराट तो विराट, टीम इंडिया के पूर्व कोच रवि शास्त्री का भी रवैया अश्विन के प्रति बहुत शानदार नहीं रहा था. अश्विन की अवहेलना वैसी ही की जाती है जैसा कि एक वक्त अनिल कुंबले जैसे दिग्गज के साथ होता था. 618 टेस्ट विकेट लेने वाले कुंबले को कई मौकों पर भज्जी के चलते प्लेइंग इलेवन से बाहर होना पड़ता था. अगर ऐसा नहीं होता तो कुंबले के नाम टेस्ट क्रिकेट में शायद 700 से ज़्यादा विकेट होते.
भारत में विकेटों की झड़ी लगाना कौन सी बड़ी बात है?
भज्जी के कट्टर समर्थक और अश्विन के आलोचक दबी ज़ुबा में ये भी कहने से नहीं चूकते हैं कि अरे यार, भारत में विकेटों की झड़ी लगाना कौन सी बड़ी बात है, अगर अश्विन में दम है तो सेना (साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया) मुल्कों में जाकर कमाल दिखाएं. उन्हें पिछले 12 विदेशी टेस्ट में अश्विन के 43 विकेट को दिखाना ज़रुरी है (18 ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ 4 मैचो में), 15 इंग्लैंड में 5 मैचों में और 7 विकेट South Africa में सिर्फ 2 मैच खलेकर आएं.
भज्जी को इस बात का सुकून होता था कि उनके साथ हमेशा सौरव गांगुली जैसा कप्तान पीठ के पीछे खड़ा रहता है और उन्हें खुलकर खेलने की आज़ादी थी, लेकिन अश्विन को हर मैच में ख़ासकर विदेशों में ऐसे दौर से गुज़रना पड़ता है, जहां उन्हें पता ही नहीं होता है कि उन्हें खेलने मिलेगा भी या नहीं. इस साल इंग्लैंड दौरे पर लगातार 4 मैचों में कोहली ने उन्हें बाहर बिठाये रखा, तो इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन से रहा नहीं गया.
और, उन्होंने कामेंट्री के दौरान ये कह डाला कि कि ये फैसला विराट की महज़ ज़िद थी. शेन वार्न औऱ माइकल वॉन जैसे पूर्व कप्तानों ने भी हुसैन का साथ देते हुए टीम इंडिया के कप्तान और कोच के फैसले पर हैरानी जताई थी.
भारत में ही सम्मान देने से जानकारों को होती है दिक्कत?
लेकिन, अपने देश भारत में संजय मांजरेकर जैसे कामेंटेटर भी है जो इतने असाधारण खेल दिखाने के बावजूद अश्विन को सर्वकालीन महान की श्रैणी में गिनती करने से हिचकिचातें हैं. क्यों भई? विदेश में खेले गये 48 मैचों में हरभजन के 152 शिकार @ 38.90 की औसत और 76.2 की स्ट्राइक रेट(मतलब हर 100 गेंद पर कितने विकेट)से आयें हैं. अब अश्विन के रिकॉर्ड पर नज़र दौड़ायें. सिर्फ 31 विदेशी टेस्ट में 123 @ 31.18 की औसत और 63.7 के स्ट्राइक रेट से. यानि दोनों मानदंड़ों पर भज्जी से 20 नहीं बल्कि 21!
अश्विन की गिनती कपिल देव के साथ होने लगेगी!
बहरहाल, अब अगले कुछ सालों में अश्विन उस मील के पत्थर की तरफ अग्रसर दिख रहें हैं जहां से उनकी तुलना भज्जी के साथ ठीक वैसी ही ख़त्म हो जायेगी कि जैसा कि एक ज़माने में ईरापल्ली प्रसन्ना की तुलना से हरभजन को नहीं गुज़रना पड़ने लगा. टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सिर्फ 7 गेंदबाज़ों ने 500 या उससे ज़्यादा टेस्ट विकेट हासिल किए हैं, जिनमें सिर्फ 3 स्पिनर हैं, मुथैया मुरलीधरण, शेन वार्न और कुंबले.
कपिल देव के 434 विकेटों को तोड़ा चेन्नई के अश्विन के लिए तो महज़ औपचारिकता है, लेकिन कुंबले के 617 का पीछा करना शायद मुमकिन नहीं. लेकिन अगर वो 500 के पार पहुंचते है तो हरभजन के साथ उनकी तुलना हमेशा के लिए शायद ख़त्म हो जाये और इस बीच 1-2 टेस्ट शतक उनके बल्ले से और लग जायें तो अश्विन की गिनती कपिल देव जैसे ऑलराउंडर के साथ होने लगेगी और वो स्वत: एक ख़ास लीग का हिस्सा हो जाएंगे!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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