सम्पादकीय

क्यों कांग्रेस पार्टी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूर्ण सफाया निश्चित बनता जा रहा है?

Gulabi
10 Nov 2021 9:47 AM GMT
क्यों कांग्रेस पार्टी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूर्ण सफाया निश्चित बनता जा रहा है?
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कांग्रेस पार्टी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश

अजय झा.

एक समय था जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अन्य दल अछूत मानते थे. समय का पासा कुछ ऐसा पलटा है कि अब भारत की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी (Congress Party) अछूत बन गई है. उत्तर प्रदेश में तो कम से कम ऐसा ही दिख रहा है. विधानसभा चुनाव सिर पर है और एक के बाद एक दल कांग्रेस पार्टी से किनारा करते जा रहे हैं. पहले समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने कांग्रेस के साथ किसी चुनावी समझौते से मना कर दिया, फिर बहुजन समाज पार्टी ने भी घोषणा कर दिया कि वह अकेले ही प्रदेश में चुनाव लड़ेगी, और अब राष्ट्रीय लोक दल ने भी कांग्रेस पार्टी से मुंह मोड़ लिया है. यानि अब इच्छा से नहीं बल्कि मजबूरीवश कांग्रेस पार्टी को प्रदेश के सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा.


आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी का अभी एक बयान आया जिसमे उन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ किसी समझौते से इनकार कर दिया. जयंत ने कहा कि उनकी पार्टी की बातचीत समाजवादी पार्टी से चल रही है और जल्द ही इसकी घोषणा भी हो जाएगी. जयंत चौधरी का बयान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से एक मुलाकात के बाद आया. दोनों की मुलाकात लखनऊ के हवाईअड्डे पर हुई और फिर दोनों ने लखनऊ से दिल्ली की यात्रा छत्तीसगढ़ सरकार के हवाई जहाज से एक साथ की. आरएलडी की इस घोषणा के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी दल अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की बैसाखी बनने को तैयार नहीं है. हो भी क्यों जबकि कांग्रेस पार्टी का उत्तर प्रदेश में फिलहाल कोई अस्तित्व ही नहीं दिख रख रहा है? 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र सात सीटों पर सफलता और 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से मात्र एक सीट पर विजय, कौन सी पार्टी कांग्रेस पार्टी को साथ लेकर सफल होने की सोचेगी.


उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी अकेली पड़ गई हैं
प्रियंका गांधी पर तरस आता है. उनको सक्रिय राजनीति में आए अभी सिर्फ ढाई साल ही हुआ है और भारत के सबसे बड़े तथा राजनीतिक दृष्टि से सबसे कठिन और महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश की कमान उन्हें सौंप दी गयी. मां सोनिया गांधी आखिरी बार लगभग दो साल पहले उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव क्षेत्र राय बरेली गई थीं और बड़े भाई राहुल गांधी भी अमेठी से लोकसभा चुनाव हारने के बाद उत्तर प्रदेश में कभी कभी ही गेस्ट रोल में दिखते हैं. पिछले महीने लखीमपुर खीरी में हिंसक वारदात के बाद पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के साथ पीड़ित परिवारों के आंसू पोछने गए थे. प्रियंका गांधी भी साथ में थीं. उसके बाद फिर राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश से दूरी बना ली है.

उत्तर प्रदेश ने उनका दिल तोड़ दिया है. बड़े धूमधाम के साथ 2017 के चुनाव में वह समाजवादी पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश चुनाव में उतरे थे. उनकी मंशा थी कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की जोरदार वापसी होगी, पर उत्तर प्रदेश की जनता ने उनसे मुंह मोड़ लिया और पार्टी लुढ़क कर अपने सबसे ख़राब प्रदर्शन के साथ सात सीटों पर ही सिमट गयी, और लोकसभा चुनाव में तो राहुल गांधी की अमेठी में फजीहत ही हो गयी. यानि प्रियंका को अब ना तो परिवार का साथ है ना ही कोई दोस्त मिल रहा है जो इस बुरे समय में उनके काम आये. बस एक ही उम्मीद थी कि जयंत चौधरी का साथ उन्हें मिल जाए तो पश्चिम उत्तर प्रदेश उनकी साख बचा लेगी. पर जयंत चौधरी ने भी अब ठेंगा दिखा दिया.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी अब बड़े नेता हो गए हैं
आरएलडी खुद ही एक डूबी हुई पार्टी थी. पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर सफलता और लोकसभा चुनाव में शून्य, पर जयंत चौधरी यकायक बड़े महत्वपूर्ण नेता बन गए हैं. कारण है किसान आन्दोलन. राकेश टिकैत जैसे किसान नेता पहले ही कांग्रेस पार्टी से दूर हो चुके थे और कृषि कानूनों के आने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान बीजेपी से खफा हो गए हैं. ऐसे समय में आंदोलनकारी किसानों को अपने सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह की याद आयी. चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह ने इतनी बार अपना चोंगा बदला कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान उनसे नाराज़ हो गए. कभी वह कांग्रेस पार्टी के साथ, कभी समाजवादी पार्टी के साथ और कभी बीजेपी के साथ दिखे, जिसके कारण आरएलडी के जाट और मुस्लीम मतदाता ने अजीत सिंह का ही साथ छोड़ दिया था. अजीत सिंह की हाल ही में मृत्यु के बाद उनके पुत्र जयंत ने अब पार्टी की कमान संभाली है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसनों को जयंत में उनके दादा चरण सिंह की झलक दिखी और वह वह आरएलडी के साथ जुड़ते दिख रहे हैं.

बीजेपी के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुश्किलें बढ़ेंगी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 77 विधानसभा क्षेत्र है. आरएलडी और समाजवादी पार्टी का अगर चुनावी समझौता हो गया तो जाट, मुस्लिम और यादव वोट इकट्ठा होने की स्थिति में पश्चिम उत्तर प्रदेश का उत्तर प्रदेश की अगली सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका होगी. बीजेपी भी इस समीकरण से अवगत है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कल ही मेरठ जिले के कैराना के दौरे पर थे. बीजेपी के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश में चांस तब ही बन सकता है अगर एक बार फिर से पश्चिम उत्तर प्रदेश हिन्दू बनाम मुस्लिम की राजनीति में 2017 की तरह बंट जाए.

वैसे भी पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों को कांग्रेस पार्टी में ज्यादा भरोसा नहीं है. और जिस तरह से किसान आन्दोलन को कांग्रेस पार्टी अपनी वापसी के लिए इस्तमाल करने की चेष्टा कर रही थी, टिकैत जैसे नेता कांग्रेस पार्टी को शक की निगाह से देखने लगे हैं. शायद यही कारण है कि जयंत चौधरी ने यह फैसला किया कि कांग्रेस पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा.

प्रियंका गांधी की अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह कहां से 403 ऐसे नेताओं को ढूंढे जिनमे आंशिक रूप से भी चुनाव जीतने की क्षमता हो. बहरहाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव रोचक बनता दिख रहा है, पर दुखद बात यही है कि इस क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी का पूर्ण सफाया अब तय हो गया है. इस स्थिति में प्रियंका गांधी पर सिर्फ तरस ही खाया जा सकता है.


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