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तबलीग़ी जमात पर सऊदी अरब के प्रतिबंध लगाने का मामला भारत में तूल पकड़ता जा रहा है
यूसुफ़ अंसारी तबलीग़ी जमात पर सऊदी अरब के प्रतिबंध लगाने का मामला भारत में तूल पकड़ता जा रहा है. तमाम मुस्लिम संगठन इस पर सख़्त एतराज जता रहे हैं. पहली बार दार-उल-उलूम देवबंद ने सऊदी अरब के ख़िलाफ़ सख़्त बयान जारी करके वहां की सरकार से इस फ़ैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है. दरअसल भारत के मुस्लिम संगठनों को सऊदी सरकार का तबलीग़ी जमात को आतंक का दरवाज़ा बताना और उससे जुड़े लोगों को क़ब्रपूजक बताना रास नहीं आ रहा. तबलीग़ी जमात के ख़िलाफ़ समझे जाने वाले संगठन भी इस मामले पर उसके पक्ष में खड़े हो गए हैं.
सऊदी अरब के इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने 6 दिसंबर को बाक़ायदा बयान जारी करके करके तबलीग़ी जमात पर प्रतिबंध लगाने की जानकारी दी. मंत्रालय ने अपने बयान में इस्लामी मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ़ अलशेख़ के निर्देशों का हवाला देते हुए तबलीग़ी जमात से जुड़े लोगों को जुमे की नमाज़ से पहले मस्जिदें खाली करने को कहा. साथ ही बयान में मस्जिदों के इमामों को जुमे की नमाज़ से पहले दिए वाले ख़ुतबे में लोगों को 'तबलीग़ी जमात' के साथ 'दावा' संगठन और इनकी कारगुज़ारियों के प्रति आगाह करने को कहा गया है.
तबलीग़ी जमात पर क्या है सऊदी अरब की राय
सऊदी अरब ने वहां के इमामों को तबलीग़ी जमात के प्रति मुख्य रूप से चार बिंदुओं पर लोगों को जागरूक करने की हिदायत दी है.
पहलाः- लोगों को बताया जाए कि कैसे तबलीग जमात रास्ते से भटक गई है. कैसे लोगों को गुमराह कर रही है. इसके ख़तरे के प्रति आगाह किया जाए और लोगों को बताया जाए कि ये 'आतंक का एक दरवाज़ा' है भले ही वो इसके उलट दावा करती है.
दूसराः- तबलीग़ जमात की बड़ी ग़ल्तियों को उजागर किया जाए.
तीनः- समाज के प्रति उसके ख़तरे से लोगों को आगाह किया जाए.
चौथाः-लोगों को बताया जाए कि पूरे सऊदी अरब में तबलीग़ी जमात और दावा समूह समेत किसी भी अलगाववादी संगठन से ताल्लुक़ रखने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया.
दार-उल-उलूम देवबंद का एतराज़
कई दिन की चुप्पी के बाद तबलीग़ी जमात पर प्रतिबंध लगाने के सऊदी सरकार के फैसले की दारुल उलूम देवबंदने कड़े शब्दों में निंदा की है. यह पहला मौका है, जब देवबंद की ओर से खुलकर सऊदी सरकार की आलोचना की गई है. दुनिया भर में इस्लामिक शिक्षा के लिए मशहूर दारुल उलूम देवबंद के मुखिया मौलाना अब्दुल क़सिम नोमानी ने बक़ायदा बयान जारी करके सऊदी सरकार के फैसले को ग़लत क़रार दिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि तबलीग़ी जमात पर आतंकवाद का दरवाज़ा होने का आरोप पूरी तरह बेमानी और बेबुनियाद है. उन्होंने सऊदी अरब से अपने फैसले पर दोबारा ग़ौर करने की अपील की.
दार-उल-उलूम देवबंद में क्यों प्रतिबंध है तबलीग़ जमात पर?
हैरानी का बात यह है कि तबलीगी जमात पर प्रतिबंध के सऊदी अरब के फ़ैसले का विरोध करने वाले दार-उल-उलूम देवबंद ने ख़ुद दो साल पहले इसकी गतिविधियों पर पाबंदी लगाई थी. वहां पढ़ने वाले छात्र तबलीगी जमात की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले सकते. दार-उल-उलूम देवबंद ने तबलीग़ी जमात के अमीर मौलाना साद के ख़िलाफ भी फ़तवा जारी किया था. इसमें कहा गया था कि वो इस्लाम के रास्ते से भटक गए हैं और जमात को अपने बनाए अगल रास्ते पर ले जा रहे हैं. इस विरोधाभास पर देवबंद के एक मौलाना सफाई देते हैं कि ये प्रतिबंध तबलीग़ी जमात के दो गुटों में बंटने पर लगाया गया था. वो भी सिर्फ़ पढ़ाई के दौरान. साथ ही अध्यापकों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है.
सऊदी अरब में पहले से प्रतिबंधित है जमात की किताब
सऊदी अरब ने अब भले ही तबलीग़ जमात पर पाबंदी लगाने का ऐलान किया है. लेकिन हक़ीक़त यह है कि कि वहां जमात की गतिविधियों पर पहले से ही पाबंदी है. जमात का मुख्य काम मुसलमानों को पांच वक़्त नमाज़ पढ़ने, साल में एक महीने के रोज़े रखने, हज करने, ज़कात देने और औरतों को पर्दे में रखने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार करना है. इसके लिए जमात से जुड़े लोग समूह में जाते हैं. लोगों को मस्जिदों मे और उनके घर जाकर समझाते हैं. लेकिन सऊदी अरब में शुरू से ही इन गतिविधियों पर पाबंदी रही है. जमात से जुड़ी किताब 'फ़ज़ाएल-ए-आमाल' पढ़ने की सऊदी अरब ने कभी भी इजाज़त नहीं दी. 50 साल से भी ज़्यादा अरसे से यह किताब वहां प्रतिबंधित है.
फिर क्या पाबंदी लगाई है सऊदी सरकार ने?
तबलीग़ी जमात कोई संगठन नही हैं. लिहाज़ा इसकी कोई सदस्यता नहीं होती. इससे जुड़े लोग उमरा और व्यापार करने सऊदी अरब जाते रहते हैं. जमात से जुड़े ज़्यादातर लोग मदरसे चलाते हैं. सऊदी दौरे पर ये लोग वहां रह रहे भरतीयों से मदरसों के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं. इस दौरान मस्जिदों में वो तबलीग़ी जमात की विचारधारा लोगों को समझाते हैं और उन्हें जमात से जुड़ने को प्रेरित करते हैं. सऊदी सरकार को इसकी जानकारी काफी पहले से थी. लेकिन वो इसे लेकर अब हरकत में आई है. दरअसल सऊदी अरब में सिनेमा हॉल और जुआघर खोलने का विरोध हुआ है. वहां की सरकार इसके पीछे काफ़ी हद तक तबलीग़ी जमात को ज़िम्मेदार मानती है. इसी लिए उसने इस पर पूरी तरह पबंदी लगा दी है.
बाक़ी संगठनों पर भी है पाबंदी
दरअसल सऊदी अरब में 'क़ुरआन' ही 'संविधान' है. लिहाज़ा वहां कुरआन के अलावा कुरआन से हटकर बात करने वाले संगठनों पर पूरी तरह पाबंदी है. भारत में मुस्लिम समाज में कई मसलक हैं. इनके बीच मज़ारों पर चादर चढ़ाने और मोहर्रम के ताजिए निकालने से लेकर तमाम परंपराओं पर मतभेद हैं. लोग अपने-अपने मसलक के हिसाब से परंपराएं निभाते हैं. लेकिन सऊदी अरब में इन सबको बिदअत यानि बाहर से इस्लाम में जोड़ दी गई चीज़ें माना जाता है. वहां की सरकार मुहम्मद साहब के रोज़े को दूर से देखने भर की इजाज़त देती है. क़रीब जाकर छूने की कोशिश करने वालों के हाथों पर पुलिस का डंडा पड़ता है. वहां सूफी इस्लाम को मानने वाले बरेलवी मसलक की गतिविविधियों पर भी पूरी तरह पाबंदी है.
प्रतिबंध पर क्या कहना है तबलीग़ जमात का
प्रमुख मुस्लिम एक्टिविस्ट ज़फ़र सरेशवाला ने कहा, 'मैं सऊदी अरब की सरकार के फैसले से हैरान हूं. तबलीग़ी जमात ने तो हमेशा अतिवादी विचारों का विरोध किया है. आज के दौर के सभी जिहादी मूवमेंट्स से उसने दूरी बनाए रखी है. यहां तक कि तलिबान की ओर से भी कई बार तबलीग़ जमात की निंदा की जा चुकी है.'
उन्होंने कहा कि सऊदी अरब की ओर से तबलीग़ी जमात को आतंकवाद का गेटवे बताना अस्वीकार्य और अविश्वसनीय है. इस पाबंदी को लेकर अब तबलीग़ी जमात के प्रवक्ता समीरुद्दीन क़ासमी ने ब्रिटेन से एक वीडियो जारी कर कहा, 'तबलीग़ी जमात पर यह बड़ा आरोप है. इसका आतंकवाद से कोई कनेक्शन नहीं रहा है. तबलीगी जमात तो वह संगठन है, जो आतंकवाद को रोकता है, उसकी निंदा करता है और उससे दूरी बनाकर रखता है.' उन्होंने कहा कि हम किसी को भी किसी मजहब, संप्रदाय और देश के ख़िलाफ़ नहीं बोलने देते.
तबलीग़ी जमात पर लगे थे कोरोना फैलाने के आरोप
तबलीग़ी जमात पर लग रहे आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोपों पर तमाम मुस्लिम संगठन जमात से अपने वैचारिक मतभेद भूलकर उसके साथ आ रहे हैं. ऐसा पिछले साल तब भी हुआ था जब जमात पर देश भर में कोरोना फैलाने के आरोप लगे थे. देश भर में बड़े पैमाने पर तबलीग़ी जमात से जुड़े लोगों की धर पकड़ हुई थी. इनमें कई सौ लोग विदेशों से आए थे.पुलिस ने इनके पासपोर्ट भी ज़ब्त कर लिए थे. बाद में कई राज्यों की हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पुलिस और राज्य सरकारों को फटकार पड़ी थी. अदालतों के निर्देशों पर इनके पासपोर्ट लौटाकर उन्हें उनके देश पिस भेजा गया था. हालांकि दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित जमात का मरकज़ अभी तक बंद है
आम मुसलमानों के बीच तबलीग़ी जमात और इससे जुडे लोगों की छवि सीधे-सीदे लोगों की है. इनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि ये लोग 'ज़मीन से नीचे' और 'आसमान से ऊपर' की बाते करते हैं. इनसे किसी को कोई ख़तर नहीं हो सकता. 'ज़मीन से नीचे' की बातों का मतलब कब्र के अंदर क्या होगा से है. वहीं आसमान से उपर की बातों से मतलब इस्लामी मान्यता के मुताबिक क़यामत के दिन अल्लाह के दरबार में होने वाले फैसले हैं. इन पर मुसलमानों को दकियानूसी बनाए रखने का कोशिश करना, शरीयत के नाम पर जहालत और बेमतलब पुरानी परंपरपरों को लादे रखने के आरोप तो ठीक हैं. लेकिन आतंकवाद से रिश्ता जोड़ना मुस्लिम संगठनों और मुसलमानों को पच नहीं रहा.
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