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चे ग्वेरा की ज़िंदगी किसी फिल्म की तरह है जिसे आप बार-बार देखना चाहेंगे
संयम श्रीवास्तव। लंबे बाल, थोड़ी सी दाढ़ी, खाकी वर्दी और एक सितारे वाली टोपी, अर्नेस्टो चे ग्वेरा (Ernesto Che Guevara) एक ऐसी शख्सियत जो आज भी क्रांति करते युवाओं की भीड़ का हिस्सा होता है. रॉक कॉन्सर्ट से लेकर आंदोलनों तक इस यूथ आइकन की तस्वीरें आपको युवाओं की टी शर्ट्स और नारों वाली तख्तियों पर ज़रूर दिख जाएंगी. ऐसे तो चे ग्वेरा को हर विचारधारा का युवा हीरो मानता है, लेकिन वामपंथ (Communist) की तरफ झुकाव रखने वाले युवा इन्हें अपना योद्धा मानते हैं, जिसने सामंतवाद को खत्म करने के लिए लोगों के दिलों में क्रांति की ऐसी अलख जगाई कि वह आज भी धधक रही है. चे ग्वेरा दो तरह से लोकप्रिय हुए, कुछ लोग उन्हें हत्यारा चे ग्वेरा कहते हैं तो कुछ लोग उन्हें क्रांतिकारी बोल लाल सलाम पेश करते हैं.
चे ग्वेरा की ज़िंदगी किसी फिल्म की तरह है जिसे आप बार-बार देखना चाहेंगे. चे ग्वेरा क्या थे इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि उस वक्त के फ्रांस के महान दार्शनिक ज्यां-पॉल सार्त्र ने उस व्यक्ति को अपने समय का सबसे पूर्ण पुरुष जैसी उपाधि से नवाज़ा था. चे ग्वेरा हमेशा से एक ऐसे समाज के लिए लड़े जिसमें हर व्यक्ति समान हो कोई भेदभाव किसी के बीच ना हो. क्यूबा की क्रांति का यह हीरो चे ग्वेरा साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ मरते दम तक लड़ता रहा. यही वजह है कि वह आज के युवा के हीरो हैं जो साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के खिलाफ ज़मीन पर लड़ाई लड़ना चाहता है. चे ग्वेरा पर किताब लिखने वाले जॉन ली एंडरसन कहते हैं कि चे ग्वेरा आज भी युवाओं का हीरो इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने अपनी जान देकर क्रांति को ज़िंदा रखा. चे ग्वेरा की सोच थी की एक क्रांतिकारी खुद को मिटाकर भी क्रांति को ज़िंदा रखता है ने उन्हें आज भी युवाओं के ज़हन में ज़िंदा रखा है.
एक यात्रा ने चे ग्वेरा को क्रांति का मसीहा बना दिया
चे ग्वेरा के मन में भले ही भेदभाव के खिलाफ हमेशा से आग सुलग रही थी, लेकिन वह ज्वालामुखी बन कर तब फूटी जब 'चे' अपने दोस्त अल्बेर्तो ग्रेनादो के साथ दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर बाइक से गए. 23 साल की उम्र में लगभग 10 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने के दौरान जिन समाजों को चे ने देखा उसने उन्हें हमेशा के लिए बदल दिया. उन्होंने दक्षिण अमेरिका की यात्रा के दौरान देखा कि कैसे समाज दो हिस्सों में जी रहा है, एक तरफ के लोग जहां दुनिया भर की हर सुख सुविधा से लबरेज़ जिंदगी गुज़ार रहे थे, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा समाज था जिसके पास दो वक्त का खाना नहीं था, बीमार होने पर इलाज नहीं था. मजदूरों, गरीबों का शोषण हो रहा था. इन सब ने चे ग्वेरा के मन में दबी उस आग को ज्वालामुखी बना दिया. इस यात्रा के बाद चे अपने शहर लौट आए और अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की.
हालांकि, अब उनके मन से डॉक्टर बनने का सपना जा चुका था और वहां आ गया था एक ऐसा क्रांतिकारी बनने का सपना जो इन सामंतवादी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दे सके. 1953 के बाद उन्हें पता चला की अमेरिका के पड़ोस ग्वाटेमाला में कुछ ग्रुप्स खडे़ हो रहे हैं जो सामंतवाद का विरोध करते हैं और इनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. चे ग्वेरा भी इन्हीं के साथ हो लिए. उस वक्त ग्वाटेमाला में राष्ट्रपति जैकब अर्बेंज की सरकार हुआ करती थी. जैकब अपने यहां कई भूमि सुधार कानून लाना चाह रहे थे जिससे आम दबे-कुचले लोगों को फायदा पहुंचता. लेकिन इन कानूनों से सबसे ज्यादा एक कंपनी 'यूनाइटेड फ्रूट कंपनी' जिसमें अमेरिका के कुछ पूंजीपतियों के भी पैसे लगे थे उसे भारी नुकसान होता. अमेरिका अपना इतना बड़ा नुकसान नहीं होने देना चाह रहा था इसलिए उसने यहां तख्तापलट करा दिया और राष्ट्रपति जैकब के तमाम समर्थकों को या तो जेल में डाल दिया गया या उन्हें मार दिया गया. उस दौरान चे ग्वेरा जैकब के कुछ सबसे बड़े समर्थकों में हुआ करते थे, यही वजह है कि वह ग्वाटेमाला छोड़ कर मैक्सिको आ गए और एक डॉक्टर की नौकरी कर ली. मैक्सिको में उनकी मुलाकात क्यूबा से निकाले गए फिदेल कास्त्रो के भाई राउल कास्त्रो से हुई और यहीं से चे ग्वेरा क्यूबा की क्रांति का मशहूर चेहरा बनते हैं.
चे ग्वेरा ने इस दौरान फिदेल कास्त्रो से मुलाकात की और बाद में उनके बेहतरीन दोस्त बन गए. उन्होंने क्यूबा क्रांति के लड़ाकों को गुरिल्ला युद्ध सिखाया जो क्यूबा की अमेरिका समर्थित तानाशाही सरकार को जम कर नुकसान पहुंचा रही थी. बाद में वह क्यूबा क्रांति का सबसे लोकप्रिय चेहरा बने और उन्हें फिदेल कास्त्रो सरकार में मंत्री बनाया गया. हालांकि ग्वेरा को कभी सत्ता का लोभ नहीं रहा वह एक योद्धा की तरह जीते थे, यही वजह थी कि बाद में उन्होंने इस पद को छोड़ दिया और बोलिविया की क्रांति में भाग लेने चले गए, जहां सीआईए के हाथों उनकी हत्या हो गई.
कैसे शुरू हुई क्यूबा कि क्रांति
क्यूबा में जब क्रांति शुरू हुई तो उस वक्त वहां तानाशाह बातिस्ता की सरकार थी जिसे अमेरिका का पूरा समर्थन था. अमेरिका का समर्थन इसलिए था क्योंकि अमेरिकी लोगों का बहुत पैसा क्यूबा के तेल और अन्य व्यवसायों में लगा हुआ था और वह लोग क्यूबा से भर-भर कर दौलत कमा रहे थे. हालांकि इन सब के बीच क्यूबा की आम जनता बेहद गरीबी और भुखमरी की कगार पर आ गई थी. क्यूबा में क्रांति होने के पीछे एक बड़ी वजह ये भी थी कि अमेरिका जो खुद को सबसे साफ सुथरा रखने की कोशिश करता था उसके सभी रईस लोग यहां क्यूबा में ड्रग्स और वेश्यावृति का अड्डा बनाए हुए थे. जो क्यूबा के लोगों को पसंद नहीं आ रहा था और उनके मन में अमेरिका और बातिस्ता सरकार के खिलाफ नफरत बढ़ती जा रही थी. फिदेल कास्त्रो ने इसी तानाशाही के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका जिसमें उनका साथ सबसे आगे आकर दिया अर्नेस्टों चे ग्वेरा ने.
चे ग्वेरा की रणनीति और गुरिल्ला युद्ध ने अमेरिकियों और बातिस्ता के सैनिकों को धूल चटा दी और 1959 में क्यूबा में सत्ता पलट दिया. चे ग्वेरा ने जो सपना देखा था और क्यूबा के लोगों को दिखाया था फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा में उसी मार्क्सवादी व्यवस्था को लागू कर दिया. इस सरकार में चे ग्वेरा को उद्योग मंत्रालय दिया गया और उन्हें 'बैंक ऑफ क्यूबा' का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. हालांकि उन्होंने कभी सत्ता को जीने का प्रयास नहीं किया, बल्कि इस बड़े पद को पाने के बाद भी वह आम लोगों की तरह जीनव जीना पसंद करते थे. उन्हें करीब से जानने वाले लोग मानते हैं कि फिदेल कास्त्रो ने भले ही क्यूबा में मार्क्सवादी व्यवस्था लागू कर दी लेकिन उस पूरी सरकार में कोई सच्चा मार्क्सवादी था तो वह अकेला चे ग्वेरा था. उद्योग मंत्री रहते हुए चे ग्वेरा एक बार भारत भी आए थे.
चे ग्वेरा की हत्या
'चे' एक फ्रांसीसी शब्द है जिसका मतलब होता है दोस्त. चे ग्वेरा एक अकेला शख्स था जिसने अमेरिका जैसे बड़े सामंती देश के लिए दुनिया भर में कई वियतनाम खड़े कर दिए थे. इस शख्सियत ने अपनी क्रांति से लोगों के दिलों में ऐसी आग लगाई थी कि सामंतवादी ताकतों का खड़ा होना मुश्किल हो गया था. चे ग्वेरा पर किताब लिखने वाले अमेरिकी पत्रकार जॉन एंडरसन बीबीसी से बात करते हुए कहते हैं कि 'मैंने चे ग्वेरा की तस्वीरों को पाकिस्तान में ट्रकों, लॉरियों के पीछे देखा है, जापान में बच्चों के, युवाओं के स्नो बोर्ड पर देखा है. चे ने क्यूबा को सोवियत संघ के करीब ला खड़ा किया. क्यूबा उस रास्ते पर कई दशकों से चल रहा है. चे ने ही ताकतवर अमेरिका के ख़िलाफ़ एक-दो नहीं बल्कि कई विएतनाम खड़ा करने का दम भरा था. चे एक प्रतीक हैं व्यवस्था के ख़िलाफ़ युवाओं के ग़ुस्से का, उसके आदर्शों की लड़ाई का."
यही वजह थी कि अमेरिका की सामंतवादी ताकतें किसी भी कीमत पर चे ग्वेरा को खत्म करना चाहती थीं. तारीख थी 9 अक्टूबर 1967 जब चे ग्वेरा बोलिविया में वहां कि सरकार का तख्ता पलट करने की कोशिश कर रहे थे उसी दौरान बोलिवियाई सेना और सीआईए के अधिकारियों को चे ग्वेरा के बारे में पता चल गया और उन्होंने उन्हें वहीं खत्म कर दिया. हालांकि हत्या के बाद भी सामंतवादी ताकतें चे ग्वेरा के क्रांति को मिटा नहीं सकीं, बल्कि उस 'चे' की तस्वीरों के साथ दुनिया भर में लोग सामंतवाद के खिलाफ खड़े होते रहे और चे ग्वेरा की सोच और उसकी लड़ाई को ज़िंदा रखा.
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