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सम्पादकीय
इंटेलीजेंस ब्यूरो में क्यों वापस जाना चाहते हैं हरियाणा के DGP मनोज यादव
Tara Tandi
23 Jun 2021 2:32 PM GMT
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1988 बैच के IPS अधिकारी और हरियाणा के मौजूदा पुलिस महानिदेशक (DGP) रहते हुए
जनता से रिश्ता वेबडेस्क |
संजीव चौहान | 1988 बैच के IPS अधिकारी और हरियाणा के मौजूदा पुलिस महानिदेशक (DGP) रहते हुए, किसी न किसी मुद्दे पर अक्सर चर्चाओं में घिरे रहने वाले मनोज यादव (IPS Manoj Yadav) का मन अब राज्य पुलिस सेवा की नौकरी करने का नहीं है. इस चर्चा को वे खुद ही एक खत के जरिये पब्लिक के बीच में ले आये हैं. पुलिस महानिदेशक मनोज यादव (DGP Manoj Yadav) ने मंगलवार (22 जून 2021) को इस बाबत एक खत राज्य के हुक्मरानों के नाम लिखा है. उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर भी इस खत का जिक्र किया है. मतलब ऐसा नहीं है कि उनकी मंशा से संबंधित यह खत मीडिया में कहीं से किसी तरह से "लीक" होकर निकला हो. खुद ट्विटर हैंडल पर उनके द्वारा इस बारे में दी गयी जानकारी से साबित होता है कि, खुद डीजीपी साहब भी खत के खुफिया मजमून को "आम" होता देखना चाहते हैं.
वरना IPS Manoj Yadav इस खत को महकमे के हुक्मरानों तक बंद लिफाफे में भेजकर, हुकूमत के जवाब का इंतजार चुपचाप बैठकर भी कर सकते थे. राज्य के हुक्मरानों को लिखे खत में तो, मनोज यादव ने सिर्फ पारिवारिक परिस्थिति और अपनी जरुरतों के चलते भारत सरकार के इंटेलीजेंस ब्यूरो में वापिस होने के लिए ऐसा कदम उठाने की बात कही है. फिलहाल आईपीएस लॉबी और हरियाणा पुलिस मुख्यालय में इस खत को लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है. चर्चा इस बात को लेकर है कि जो आईपीएस मनोज यादव कल तक आसानी से राज्य के पुलिस मुखिया यानि DGP की कुर्सी छोड़ने को राजी नहीं थे. आखिर मंगलवार को वे इतनी आसानी से रातों-रात अब खुद ही क्यों वापिस इंटेलीजेंस ब्यूरो में जाने की इच्छा जताने लगे?
आज नहीं तो कल खुलासा होना तय
इसके पीछे कहीं न कहीं कोई बड़ा कारण तो जरुर है. जिसका खुलासा भले अभी नहीं हो पा रहा हो. उल्लेखनीय है कि भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी मनोज यादव का मूल कैडर हरियाणा है. मनोज यादव ने 21 फरवरी सन् 2019 को हरियाणा राज्य पुलिस महानिदेशक का पद संभाला था. राज्य के डीजीपी पद पर उनकी वो नियुक्ति आगामी दो साल के लिए की गयी थी. जब वे अपने मूल कैडर में राज्य के पुलिस महानिदेशक बनकर लौटे, उन दिनों उनकी नियुक्ति भारत सरकार के खुफिया विभाग (इंटेलीजेंस ब्यूरो) में ही थी. बाद में राज्य सरकार ने 7 जनवरी 2021 को एक आदेश जारी किया. उस आदेश में कहा गया था कि आईपीएस अधिकारी मनोज यादव, आगामी आदेशों तक हरियाणा राज्य के पुलिस महानिदेशक बने रहें.
साहब के सिवाये सब मान गये
उन दिनों मनोज यादव का राज्य पुलिस महानिदेशक पद पर पहले तय किया गया डीजीपी का कार्यकाल समाप्त होने वाला था. राज्य सरकार के उस आदेश के परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2 मार्च 2021 को एक और आदेश जारी कर दिया. उस आदेश में भी केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा कहा गया था कि, एक साल के लिए मनोज यादव की नियुक्ति हरियाणा राज्य पुलिस महानिदेशक पद पर बढ़ाने की संस्तुति की जाती है. मतलब केंद्र और हरियाणा राज्य दोनो ही हुकूमतें एक साल के लिए मनोज यादव के डीजीपी कार्यकाल को एक्सटेंशन देने पर सहमति जता चुकी थीं. अब मामला मंगलवार को बैठे-बिठाये खुद मनोज यादव ही अचानक सुर्खियों में ले आये जब, आमजन को उनके ट्विटर हैंडर के जरिये पता चला कि, उन्होंने तो राज्य सरकार के हुक्मरानों के नाम एक खास खत लिखा है.
खास खत से निकला वो जिन्न
उस खत के मजमून के बाहर आते ही राजनीतिक गलियारों और आईपीएस के एक खेमे में मनोज यादव को लेकर फिर जितने मुंह उतनी बातें होने लगीं. चिट्ठी के जरिये मनोज यादव ने राज्य के आला-हुक्मरानों से खुद को, केंद्रीय खुफिया एजेंसी (इंटेलीजेंस ब्यूरो) में वापस किये जाने का आग्रह किया है. पुलिस महकमे, आईपीएस लॉबी और हरियाणा सरकार में हलचल पैदा कर देने वाली मनोज यादव की इस चिट्ठी के अंतिम पैरा में साफ-साफ लिखा है, "सूचित करना चाहता हूं कि अब मैं (अधोहस्ताक्षरी) केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत इंटेलीजेंस ब्यूरो में वापिस जाकर अपनी सेवायें देना चाहता हूं. केंद्रीय खुफिया विभाग में मैं एडिश्नल डायरेक्टर के पद पर जाना चाहता हूं, जोकि मेरे भविष्य और मेरे परिवार की जरुरत भी है."
DGP और IG के बीच 'रार' की जड़
हरियाणा डीजीपी मनोज यादव ने उपरोक्त पत्र हरियाणा के एडिश्नल चीफ सेक्रटरी(होम) राजीव अरोरा को संबोधित करके लिखा है. अब आईये एक नजर डालते हैं कि पूर्व में भी, हरियाणा के डीजीपी रहते हुए अक्सर चर्चाओं में रहने वाले आईपीएस अधिकारी मनोज यादव, बीते दिनों अचानक फिर कैसे सुर्खियों में आ गये थे? कुछ दिनों पूर्व राज्य पुलिस महानिदेशक के ही मातहत पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) स्तर के अधिकारी वाई पूरन कुमार ने उन पर गंभीर आरोप लगाये थे. किसी मंदिर विवाद को लेकर आईजी, अपने आला अफसर से (डीजीपी मनोज यादव) से इस कदर खार खा बैठे कि, आईजी साहब ने डीजीपी के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कराने की मांग को लेकर मोर्चा खोल दिया. कथित तौर पर डीजीपी से पीड़ित उनके ही मातहत उन पुलिस महानिरीक्षक ने इस सिलसिले में अपने ही बॉस यानि डीजीपी के खिलाफ, केंद्रीय गृह मंत्रालय से लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तक शिकायती पत्र लिख कर भेज दिये.
DGP के खिलाफ FIR कराने की जिद
इस अनुरोध के साथ कि, राज्य पुलिस महानिदेशक के खिलाफ एससीएसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज करवाया जाये. मामला हुक्मरानों तक ले जाने से पहले आईजी साहब अपनी शिकायत लेकर 19 मई 2021 को पहले सीधे अंबाला के पुलिस अधीक्षक के पास पहुंचे थे. डीजीपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मगर, बेचारे पुलिस अधीक्षक की हिम्मत न होनी थी. न ही वो ऐसी हिमाकत कर सका. यह अलग बात है कि, अपने उस व्यवहार के चलते पुलिस अधीक्षक अंबाला एक बार को अपने ही आईजी साहब की आंखों में भी करकने लगे. हांलाकि तब राज्य पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक के बीच छिड़ी उस ओछी लड़ाई को लेकर सूबे की सल्तनत की भी खासी छीछालेदर होने लगी थी.
तुम डाल डाल हम पात पात
राज्य की जनता, सरकार के धुर-विरोधी पक्ष, आईपीएस लॉबी का एक धड़ा, दो आला पुलिस अफसरों की उस लड़ाई के बारे में देख-सुनकर आनंद का अनुभव कर रहे थे. एक तरफ डीजीपी और दूसरी ओर आईजी. मतलब दो आला अफसरों की लड़ाई में पिसने से बचने के लिए पुलिस अधीक्षक अंबाला ने भी फार्मूला खोज लिया. उन्होने अपना पल्ला झाड़ते हुए खुद की गर्दन बचाने को डीजीपी के खिलाफ आईजी साहब की वो शिकायत, अंबाला कैंट थाने के एसएचओ के पास भेज दी थी. वो शिकायत अभी थाने में जस की तस पड़ी है. उस शिकायत पर कुछ हो पाता तब तक खुद डीजीपी मनोज यादव ने खुद को, इंटेलीजेंस ब्यूरो में वापस भेजे जाने के लिए लिखी गयी चिट्ठी का "जिन्न" बाहर निकाल दिया.
साफ निकल गये "साहिबों" के साहब
कहा तो यह जा रहा है कि उस विवाद को शांत करने-कराने की कोशिशें दबे पांव ही सही, राज्य की हुकूमत ने भी की थीं. मगर दोनों पुलिस अफसरों में से कोई भी अपने पांव पीछे हटाने को राजी नहीं हुआ. डीजीपी मनोज यादव की राज्य के गृह मंत्री अनिल विज से भी करीब डेढ़ दो घंटे की गुप्त मंत्रणा हुई. चूंकि डीजीपी और राज्य पुलिस के मुखिया गृह मंत्री अनिल विज ही हैं. लिहाजा ऐसे में कयास लगाये जा रहे थे कि, शायद आईजी और डीजीपी साहब के बीच छिड़े कागजी और वाकयुद्ध को कुछ हद तक गृहमंत्री ही लगाम लगवा सकें! गृहमंत्री अनिल विज मगर खाकी के "बॉस" होने के नाते चार कदम और आगे निकले. और उन्हें ऐसा होना भी चाहिए. उन्होंने अपना पल्ला यह कहकर झाड़ लिया कि. "यह अफसरशाही का आपस का मामला है. मैं इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता." मतलब तुम डाल-डाल तो हम पात-पात.
मुख्यमंत्री ने अचानक सब पलट दिया
चर्चाएं तो अक्सर इस बिंदु पर भी होती रही हैं कि, भले ही क्यों न राज्य के गृहमंत्री होने के नाते अनिल विज, राज्य पुलिस और उसके मुखिया यानि डीजीपी के "बॉस" हों, मगर अपुष्ट खबरों के मुताबिक आईपीएस मनोज यादव इस सबके बावजूद कहीं न कहीं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से उनकी आंख में "करकते" रहे हैं. इन्हीं चर्चाओं के बीच जब यह बातें उठ रही थीं कि, क्या मनोज यादव को दो साल के कार्यकाल के बाद आगे भी एक्सटेंशन देकर राज्य पुलिस महानिदेशक पद पर तैनात रखा जायेगा? राज्य पुलिस के मुखिया यानि गृहमंत्री अनिल विज इन चर्चाओं पर खुद की चुप्पी तोड़ते उससे पहले ही, राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मनोज यादव के डीजीपी पद पर एक्सटेंशन की अचानक घोषणा करके, उनके राज्य पुलिस से वापिस जाने की चर्चाओं पर पूर्ण विराम लगा दिया था.
रातों रात आखिर क्या हो गया कि….
जिस आईपीएस अधिकारी के डीजीपी पद पर राज्य पुलिस में एक्सटेंशन की घोषणा किये मुख्यमंत्री को अभी चंद दिन ही गुजरें हों. वही डीजीपी या अधिकारी चंद दिन बाद ही सूबे की हुकूमत के नाम खुद को, केंद्रीय प्रति-नियुक्ति (इंटेलीजेंस ब्यूरो में एडिश्नल डायरेक्टर के पद पर वापसी हेतु) पर रवाना करने को लेकर चिट्ठी लिख दे. इन तमाम बातों से ऐसी चर्चाओं को कथित रूप से ही सही मगर, हवा मिलने लगी कि शायद आईजी से हुए विवाद का मामला जब डीजीपी मनोज यादव अपने बॉस (राज्य के गृह मंत्री) के सामने ले जाकर भी नहीं सुलझा पाये, तो उन्होंने खुद की वापसी इंटेलीजेंस ब्यूरो में कराये जाने संबंधी कदम तो नहीं उठा लिया? हांलांकि यह तथ्य हाल-फिलहाल चर्चाओं तक ही सीमित है.
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