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चुनाव के साथ ही गठबंधनों की दरार बताती है कि अभी तक भारतीय राजनीतिक गठबंधन धर्म केवल मजबूरी में ही निभाते हैं
Faisal Anurag
चुनाव के साथ ही गठबंधनों की दरार बताती है कि अभी तक भारतीय राजनीतिक गठबंधन धर्म केवल मजबूरी में ही निभाते हैं. राज्यसभा चुनाव में एक बार फिर जिस तरह टिकट बांटे गए हैं, उससे गठबंधन की राजनीति की वास्तविकता उजागर हो रही है. भारत के राजनैतिक इतिहास में केवल वामपंथी दलों का ही गठबंधन मूल्यों,विचार और अनुशासन को पूरी ईमानदारी के साथ पिछले पचास सालों से चल रहा है. 1967 के बाद के तमाम गठबंधन की राजनीति बिखराव,अविश्वास और राजनीतिक दलों की महत्वकांक्षा की भेंट चढ़ती रही है. झारखंड और बिहार में विपक्षी गठबंधनों के बीच जिस तरह की दरार दिख रही है, वह एक बार फिर साबित कर रही है कि केवल सत्ता के लिए बने गठबंधन अविश्वास की नींव ही मजबूत करते हैं. राजनैतिक परिपक्वता की कमी भी साफ झलकती है. भाजपा गठबंधन भी किसी बराबरी की भागीदारी से गाइड नहीं होता है, बल्कि ताकतवर भाजपा गठबंधनों के छोटे दलों को अपने विचारों और कार्यक्रमों के अनुसार संचालित करती है.
बिहार में भी एनडीए के बीच अंदरखाने भारी तनाव और दरार मौजूद है. चूंकि बिहार में भाजपा के लिए नीतीश कुमार एक बड़ी मजबूरी हैं, इसलिए उनसे नाराजगी मोल लेने से भाजपा बचने का प्रयास करती है. राज्यसभा चुनाव के समय एनडीए एकजुट दिखने के बावजूद आरसीपी सिंह के टिकट के बहाने जो खेल हुआ, उसे सभी ने देखा है. आरसीपी सिंह हैं तो जदयू के, लेकिन भाजपा के भी वे उतने ही करीब हैं. नीतीश कुमार ने उनका टिकट तो काट दिया, लेकिन भाजपा के लिए यह आसान नहीं था कि वह नीतीश कुमार को नाराज कर आरसीपी सिंह का साथ दे. ऊपरी तौर पर तो आरसीपी सिंह ने नीतीश के निर्णय का को सोचा समझा कदम बताया है. लेकिन सभी जानते हैं कि खेल तो अभी शुरू ही हुआ है और बिहार की राजनीति में इस बहाने भविष्य में बहुत कुछ होना बाकी है.
राजद ने राज्यसभा और विधान परिषद की तीन सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का एलान कर दिया. राजद गठबंधन में शामिल भाकपा माले ने राजद के इस एकतरफा एलान को लेकर असंतोष प्रकट करते हुए निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है. माले की दावेदारी विधान परिषद की एक सीट पर है. माले में 12 विधायक हैं. बावजूद राजद के नेता तेजस्वी यादव ने घटक दलों के साथ साझा उम्मीदवार को लेकर बातचीत करना भी जरूरी नहीं समझा. 2019 के बाद से ही कांग्रेस और राजद के बीच बिहार में एक शीतयुद्ध की स्थिति बनी हुई है. न तो उपचुनावों में राजद कांग्रेस की सुन रहा है और न ही राज्यसभा या विधान परिषद के चुनाव में उसे विश्वास में लेने का प्रयास किया. तो क्या माना जाए कि बिहार में तेजस्वी यादव कांग्रेस को दरकिनाकर करने का फैसला कर चुके हैं.
2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटें बारगेन कर हासिल किया था. लेकिन जब नतीजे आए तो वह 19 ही जीत सकी. तब से बिहार में कहा जा रहा है कि कांग्रेस के बारगेनिंग की कीमत राजद गठबंधन को निभाना पड़ा. लेकिन सच का यह एक पहलू है. राजद को भी 2015 की तुलना में कम सीटें ही हासिल हुईं, उसके जीतने वाले उम्मीदवारों का स्ट्राइक रेट भी कोई चमत्कारिक नहीं रहा. माहौल नीतीश कुमार और भाजपा के सत्ता विरोधी रूझान का था. लेकिन महागठबंधन इसका लाभ पूरी तरह से नहीं उठा सका. इसका एक बड़ा कारण तो टिकट के बंटवारे,सीटों के बंटवारे और चुनाव संचालन में सभी को साथ लेकर चलने में हुई चूक भी रही है.
इसी तरह झारखंड में भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जिस तरह महुआ माजी के नाम का एकतरफा एलान किया, उससे कांग्रेस को आहत तो होना ही था. दिल्ली में सोनिया गांधी से हेमंत सोरेन की बातचीत में क्या तय हुआ, इसे लेकर कांग्रेस ने कोई अधिकृत बयान नहीं दिया है. झामुमो गठबंधन के लिए तो मांडर विधानसभा उपचुनाव भी एक कड़ी परीक्षा साबित होने जा रही है. मांडर पर दावा तो कांग्रेस का है, लेकिन झामुमो इस दावे को किस तरह लेती है, यह तो अगले तीन-चार दिनों में ही पता चलेगा.
उदयपुर के कांग्रेस चिंतन के अंतिम दिन राहुल गांधी ने जिस तरह गैर भाजपा विपक्ष के दलों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि भाजपा आरएसएस की विचारधारा से केवल कांग्रेस ही लड़ सकती है. तब से कहा जा रहा है कि आखिर राहुल गांधी कांग्रेस आरएसएस के बजाय विपक्ष गैर भाजपा दलों से ही क्यों लड़ रहे हैं. बिहार और झारखंड में राजद और कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि इन राज्यों में भाजपा को केवल वे ही पराजित कर सकते हैं, क्योंकि वे भाजपा के खिलाफ निरंतर संघर्ष कर रहे हैं. एनसीपी और टीएमसी कांग्रेस को लेकर पहले से ही क्रिटिकल है. विपक्षी दलों के बीच के शीतयुद्ध से भाजपा को राहत महसूस होती है. बंगाल और त्रिपुरा में सत्ता से बाहर हो जाने के बावजूद चार वामदलों का गठबंधन एकजुट है. केरल में तो वह केरल के गठन के समय से ही एकजुट है. दरअसल गठबंधन राजनीति में पक्ष-विपक्ष के किसी भी दल को वामपंथियों से सीख हासिल करने की जरूरत है.
by Lagatar News

Rani Sahu
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