सम्पादकीय

Twitter की इतनी बेअंदाजी को क्यों बर्दाश्त करती हैं सरकारें?

Gulabi Jagat
29 March 2022 3:40 PM GMT
Twitter की इतनी बेअंदाजी को क्यों बर्दाश्त करती हैं सरकारें?
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कोर्ट ने ट्विटर से पूछा है कि अगर वो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ब्लॉक कर सकता है
बिपुल पांडे।
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट डालने वाले पर ट्विटर (Twitter) की ओर से कार्रवाई ना करने पर नाराजगी जताई है. कोर्ट ने ट्विटर से पूछा है कि अगर वो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को ब्लॉक कर सकता है, तो हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाले को क्यों ब्लॉक नहीं कर सकता? सोशल मीडिया के दोहरे चरित्र पर पहली बार ये सवाल नहीं उठा है, लेकिन अदालत के तराजू पर तौलने पर एक 'ग्लोबल चिड़िया' का जो वजन पता चला है, उसे तीन प्वाइंट पर समझने की जरूरत है और तमाम तरह के रोग फैला रही इस चिड़िया के पर कतरने की जरूरत है.
पहला प्वाइंट ये कि सोशल मीडिया ने खुद को एक समानांतर सत्ता मान लिया है, जो स्थापित सत्ता को चुनौती दे रही है. दूसरा प्वाइंट ये कि सोशल मीडिया वो खिलौना है, जिसे एक अदृश्य रिमोट से कंट्रोल किया जा रहा है. तीसरा प्वाइंट ये कि सोशल मीडिया के फायदे कम नुकसान ज्यादा हैं. ये अपराध का एक अड्डा है, जिसका हर स्तर पर गलत इस्तेमाल हो सकता है. इससे धोखाधड़ी हो सकती है, फोन हैकिंग हो सकती है, ब्लैकमेलिंग हो सकती है, इसकी लत लग सकती है, ये समय बर्बाद करता है, यहां तक कि इससे मौत भी हो सकती है. ये बच्चों को भी फोन एडिक्शन का शिकार बना सकता है, उनकी सोच और उनका व्यवहार बदल सकता है. ऑस्ट्रेलिया के ज्यादा बच्चों की तरह साइबर बुलिंग के शिकार बना सकता है. इन सबसे ज्यादा भयावह ये है कि, इन सारी कमियों को जारी रखने के लिए सोशल मीडिया कोर्ट से सामने कुतर्क करने का दुस्साहस भी कर सकता है.
दिल्ली हाईकोर्ट में ट्विटर का कुतर्क क्या है?
एक ट्विटर हैंडल है, 'एथीईस्ट रिपब्लिक'. इस ट्विटर हैंडल से हिंदुओं की देवी काली माता को लेकर एक आपत्तिजनक पोस्ट डाला गया. उसी बेहूदा पोस्ट के खिलाफ दिल्ली की हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है, जिस सुनवाई में कोर्ट ने कई विरोधाभास रेखांकित किए हैं. पीठ ने कहा कि अगर ऐसी घटना किसी और धर्म के साथ हुई होती तो सोशल मीडिया मंच कुछ ज्यादा ही सावधान और संवेदनशील होता. दरअसल 'सोशल चिड़िया' का कोई धर्म नहीं है, लेकिन इसका 'अधर्म' क्या है, ये भी ट्विटर की दलीलों से साफ हो गया. ट्विटर की ओर से वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कोर्ट में दलील रखी कि- 'आपत्तिजनक सामग्री को हटा दिया गया है और पोस्ट के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई है. जब तक अदालत आदेश नहीं देगा, तब तक ट्विटर किसी व्यक्ति को ब्लॉक नहीं कर सकता.'
इसी कुतर्क पर कोर्ट का पारा चढ़ गया. कोर्ट ने पूछा कि अगर आप ट्रंप का अकाउंट ब्लॉक कर सकते हैं तो एक आरोपी का क्यों नहीं? कोर्ट के इस गुस्से के पीछे एक कंपनी का दुस्साहस छिपा है. कंपनी का नाम है- ट्विटर. जो एक ट्विटर हैंडल को लेकर कठघरे में खड़ा है, जिस ट्विटर हैंडल को लेकर एफआईआर दर्ज हो चुकी है, हिंदू आस्था को आहत करने के लिए कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बावजूद इसके वो कंपनी आज कोर्ट से पूछ रही है कि ट्विटर हैंडल ब्लॉक करने का आदेश कहां है? सवाल ये है कि क्या एक सोशल मीडिया इतनी बेलगाम हो सकती है कि एक ट्विटर हैंडल ब्लॉक कराने के लिए कोर्ट का आदेश लाना पड़ेगा? दरअसल कंपनी की प्रतिक्रिया बताती है कि सोशल मीडिया के अंदर कुछ गलत 'ट्रेंड' चल पड़ा है. ये पैरेलल सत्ता बन चुकी है.
अमेरिका से निकला एक ऐसा असुर, जो अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति की भी पीठ दाग चुका है
साल 2021 में ट्विटर ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप का ट्विटर अकाउंट ब्लॉक कर दिया था. इसके बाद पूरी दुनिया में हल्ला मचा. अकाउंट ब्लॉक करने के पीछे दो वजहें थीं. पहली वजह ये थी कि डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने जब कैपिटोल बिल्डिंग पर धावा बोला, तो उन्हें ट्रंप ने क्रांतिकारी बताया. इसके बाद दूसरा ट्वीट ये किया कि 20 जनवरी को होने वाले प्रेसिडेंशियल इनैगुरेशन में शरीक ना होने का ऐलान किया. 8 जनवरी को ट्विटर ने इसे अति बताया और दुस्साहस इतना कि चंद दिन पहले तक देश के राष्ट्रपति रही एक हस्ती का ट्विटर हैंडल ब्लॉक कर दिया.
ट्विटर के इसी फैसले के बाद पूरी दुनिया ने समझा कि सोशल मंच पर कैसा डबल स्टैंडर्ड चल रहा है. इस फैसले पर अधिकतर जनता ने खुशी तो जताई, लेकिन यहां से एक डिबेट भी शुरू हुआ कि सोशल मंच कभी कड़े फैसले लेता है, तो कभी खामोशी ओढ़ लेता है, क्यों? मिसौरी स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्रायन एल.ओट ने तब न्यूज वीक से इंटरव्यू में कहा था कि- "मेरी समझ से ट्विटर हेट स्पीच, वायलेंट कंटेंट, दुष्प्रचार को रोकने में स्लो है.
इस प्लेटफॉर्म पर स्ट्रक्चरल बायसनेस है, जिसे ट्विटर ने लंबे समय से इग्नोर किया है.' उन्होंने इसकी वजह समझाते हुए कहा था कि ट्विटर चित भी अपनी चाहता है और पट भी अपनी. एक तरफ तो वो पब्लिक डोमेन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोमोट करता है. दूसरी तरफ वो एक फ्री कंपनी की तरह फ्री फैसले भी करना चाहता है. वो ये तय करना चाहता है कि किस कंटेंट को डोमेन में होना चाहिए और किसे नहीं. पश्चिम के जानकार इस डिबेट को जिस तरह से देखते हैं, मामला उतना ही नहीं है. भारत में सोशल मीडिया का डबल स्टैंडर्ड ही नहीं क्लासिफाइड एजेंडा भी दिखता है.
सोशल मीडिया का वो खतरनाक रूप, जो भारत ने बड़े मौकों पर देखा है
ट्विटर के कर्ताधर्ता जानते हैं कि कंटेंट के लिहाज से भारत बहुत ही संवेदनशील है और ये बात किसी से छिपी नहीं है कि हर मौके पर ट्वीटर ने आग में घी डालने की कोशिश की है. कई बार तो अफगानिस्तान में मॉब लिंचिंग के मामले को हिंदुस्तान का वर्तमान बताकर ट्रेंड कराया गया है, लेकिन टूलकिट आने के बाद देश ने पहली बार ये समझा कि ट्विटर का भारत के किसानों से भी कुछ लेना-देना है. कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को भड़काने की खूब कोशिश हुई. इंटरनेशनल सेलेब्रिटीज़ में पॉप स्टार रिहाना, मॉडल अमांडा सेर्नी, ग्रेटा थनबर्ट, और यहां तक कि पोर्न स्टार मिया खलीफा जैसे लोगों ने भी ट्वीट किया.
इन्हें इन्फ्लुएंसर कहा जाता है लेकिन ये प्रभाव ऐसा था कि भारत सरकार को भी सामने आना पड़ा और कहना पड़ा कि किसी बाहरी को भारत के आंतरिक मामले पर कमेंट नहीं करना चाहिए, वो भी तब जब विषय की पूरी जानकारी ना हो. बावजूद इसके ट्विटर पर टूलकिट बनते रहे, पॉप स्टार रिहाना के ट्वीट को तो ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी ने भी लाइक किया था. शाहीनबाग से लेकर किसान आंदोलन तक ट्विटर अपनी असलियत उजागर करता चला गया. भारत सरकार ने 257 अकाउंट्स की पहचान की और उन्हें ब्लॉक करने के निर्देश दिए. ट्विटर ने उन्हें ब्लॉक किया फिर अनब्लॉक कर दिया, इस पर सरकार का पारा चढ़ा और 1178 ट्वीटर अकाउंट्स बंद कराने के लिए सरकार ने ट्विटर को नोटिस थमा दिया.
इसके बाद टूलकिट केस के जरिए भी देश ने जाना कि कैसे किसी आंदोलन को दूसरे देशों के फायदे के लिए ग्लोबल लेवल पर पहुंचाने की साजिश रची जाती है. दिल्ली पुलिस के मुताबिक टूलकिट केस में दिशा रवि ने उन बड़े नामों का खुलासा किया था, जो 'षड्यंत्रकारी' मीटिंग में शामिल हुए थे. इनमें कई लोग विदेश में हैं तो कई देश के भीतर मौजूद हैं. इतना ही नहीं भारत सरकार ने करीब 1200 ऐसे ट्विटर अकाउंट्स की पहचान की थी, जो पाकिस्तान में बने थे और जो किसान आंदोलन का फायदा उठाकर खालिस्तानी सोच और अन्य भड़काऊ बातों को फैलाने में लगे थे. तो आखिर, कोई सरकार किसी कंपनी को अपने देश को तोड़ने की आजादी कैसे दे सकती है?
सोशल मीडिया के पैरेलल सत्ता की ताकत क्या है?
पूरी दुनिया की तरह भारत में भी सोशल मीडिया ने हर हाथ और हर दिमाग को जकड़ रखा है. इस जकड़न के पीछे पैसा है, जो कंपनियों की अकड़ बढ़ा रही है. 2021 के भारत सरकार के आंकड़े के मुताबिक हिंदुस्तान में 44.8 करोड़ यूट्यूब यूजर हैं. 53 करोड़ व्हाट्स ऐप यूजर हैं. 41 करोड़ फेसबुक, 21 करोड़ इंस्टाग्राम और 1.75 करोड़ ट्विटर के यूजर हैं. लेकिन जरा सोचिए, भारत की अदालत में यूजर के क्रम में सबसे निचले पायदान पर खड़ा ट्विटर अगर इतनी अकड़ दिखा सकता है, तो बाकी कंपनियां खुद को कितनी बड़ी सत्ता समझती होंगी?
फेसबुक के मुताबिक 2021 में उसका कारोबार 41 परसेंट बढ़ गया. उसने 9326 करोड़ रुपये की कमाई की. लेकिन ये गजब का कारोबार है, इस कारोबार के पीछे एक ऐसा कारोबारी है, जो हिंदू को ही देवी देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीर दिखाता है और कमाता भी है. ये किसान आंदोलन की आवाज बनकर, खालिस्तानी प्रोपेगैंडा बढ़ाता है और साथ में कमाता भी है. सबसे बड़ी बात ये कि इस मीडिया के सामने जब 'सिर कलम' होने का खतरा आता है, तभी ये कारोबारी घबराता है.
बावजूद इसके, अब ये सोशल मीडिया इतनी बेअंदाज भी हो सकती है कि कोर्ट को कानून पढ़ाने लगे. ट्विटर हैंडल ब्लॉक करने के लिए कोर्ट से ही आदेश मांगने लगे. यानी अपनी हैसियत ही भूल जाए. जब ये चटर-पटर घातक हो जाए, बेअंदाजी बर्दाश्त के बाहर हो जाए, तो उसपर सख्ती से लगाम लगाना आवश्यक हो जाता है. भारत के संदर्भ में ये आवश्यक नहीं बल्कि अत्यंत आवश्यक की श्रेणी में पहुंच चुका है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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