सम्पादकीय

अपने ही लोगों से बर्बरता क्यों?

Subhi
25 Sep 2021 3:42 AM GMT
अपने ही लोगों से बर्बरता क्यों?
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असम के दरांग जिला में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प में दो लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।

आदित्य नारायण चोपड़ा: असम के दरांग जिला में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प में दो लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। इस घटना का एक वीडियो सामने आया है जिसमें पुलिस की बर्बरता तो साफ दिखाई देती है बल्कि एक फोटोग्राफर एक शव पर कूदता दिखाई दे रहा है। फोटोग्राफर शव के सीने में लात-घूसे मार रहा है। जिस व्यक्ति से फोटोग्राफर ने बर्बरता की वह पहले पुलिस की ओर लाठी लेकर दौड़ता हुआ नजर आया, जिसके बाद पुलिस ने उसके सीने में गोली मार दी, जिससे वह वहीं ढेर हो गया। यह वीडियो देशवासियों को विचलित कर देने वाला है। यद्यपि पुलिस ने उस फोटोग्राफर को तो गिरफ्तार कर​लिया है। विजय शंकर बनिया नाम के इस फोटोग्राफर की हालत को रिकार्ड करने के लिए सेवाएं ली गई थीं। पूरी घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं। जिस शख्स के शव के साथ बर्बरता की गई, उस शख्स के हाथ में सिर्फ डंडा था और वहां भारी संख्या में पुलिस वाले भी थे, ऐसे में पुलिस आसानी से उस शख्स पर काबू पा सकती थी लेकिन पुलिस ने उस पर सीधे गोली चला दी।इस घटना पर बवाल मच गया है और इसके विरोध में आलअसम माइनोरिटीज स्टूडेंट यूनियन, जमीयत और दूसरे संगठनों ने दरांग जिला में 12 घंटे का बंद बुलाया है। संगठनों की संयुक्त समिति मारे गए लोगों के परिजनों को दस लाख और घायलों को पांच लाख रुपए देने की मांग की है। संयुक्त समिति ने यह भी कहा है कि सरकार बेदखल परिवारों को रहने के लिए जमीन भी दे।घटना के मूल में जिला प्रशासन के अधिकारियों और पुलिस का धौलपुर गांव में सरकारी जमीन से अतिक्रमणकारियों को बाहर निकालने का अभियान है। अतिक्रमणकारियों ने बेदखली अभियान का विरोध करते हुए पथराव शुरू कर दिया था। कोविड महामारी के इस संकट के समय गुुवाहाटी हाईकोर्ट ने बेदखली अभियान को स्थगित रखने का निर्देश दिया था, इसके बावजूद जिला प्रशासन और पुलिस ने 1970 के दशक से धौलपुर में बसे लोगों से जमीन खाली कराने का अभियान शुरू किया। असल में असम सरकार के आदेश के बाद 20 सितम्बर को दरांग जले के सियाझार में प्रशासन ने एक अभियान चलाकर लगभग 4500 बीघा भूमि पर कब्जा करने वाले कम से कम 800 परिवारों को बेदखल कर दिया था। सैकड़ों लोगों ने नदी के किनारे शरण ले रखी है। जिनके घर टूटे हैं, उनमें आक्रोश स्वाभाविक है। लेकिन अगर सरकार ने लोगों को बेदखल करना ही था तो इन लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था भी करनी चाहिए थी।संपादकीय :मोदी का 'अमेरिकी' महारथकोरोना मौतों पर मुआवजातीन टन 'हेरोइन' की दास्तां !मोदी की अमेरिका यात्रासंत, सम्पत्ति और साजिशआंखें नम हुई...इस मामले में बवाल का एक कारण यह भी है कि दरांग जिले के पुलिस अधीक्षक सुशांत बिस्वा सरमा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के छोटे भाई हैं। इसलिए सियासत भी शुरू हो गई है। सवाल यह भी है कि असम में बार-बार ऐसे दृश्य क्यों सामने आते हैं। गत 26 जुलाई को असम और मिजोरम में सीमा विवाद को लेकर दोनों राज्यों की पुलिस में फायरिंग हुई थी और मिजोरम पुलिस की फायरिंग से असम पुलिस के 5 जवानों की मौत हो गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे दो देशों में युद्ध छिड़ गया हो। जिस इलाके में हिंसा हुई थी वहां भी बरसों से मिजो जनजाति के लोग खेती कर रहे थे। असम प्रशासन इस इलाके को असम का बता रहा था और इसे खाली कराना चाहता था।यह हिंसा तो दो राज्यों में सीमा विवाद के चलते हुई लेकिन ऐसी कौन सी परिस्थितियां पैदा हो गईं कि असम पुलिस को अपने ही राज्य के लोगों पर फायरिंग करनी पड़ी। क्या पुलिस को अब भी लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने का अनुभव नहीं था यह सरकार प्रायोजित हिंसा का खुला प्रदर्शन है। नागरिकों के खिलाफ पुलिस कर्मियों की अकथनीय हिंसा के लिए असम पुलिस को सोशल मीडिया पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। असम पुलिस की कार्रवाई को 'अतिरिक्त न्यायिक हत्या' करार दिया जा रहा है। आखिर पुलिस इतनी क्रूर कैसे हो सकती है?इसमें कोई संदेह नहीं कि असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार असम को अपराध मुक्त बनाने के लिए तेजी से काम कर रही है। लगभग 36 से अधिक मुठभेड़ें हो चुकी हैं, जिनमें 16 अपराधी भी मारे जा चुके हैं। असम में बीते दिनों हुई मुठभेड़ों की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों में भी दर्ज कराई गई है। शिकायत में कहा गया है कि हर मुठभेड़ में पुलिस की एक ही कहानी दोहराई गई कि अपराध सर्विस पिस्टल को छीन कर भागने की कोशिश कर रहा था, इसलिए उसे गोली मारी गई। कहीं भी यह नहीं कहा गया की अपराधी ने गोली चलाई या फिर पुलिस का कोई जवान घायल हुआ। पूर्वोतर की मुठभेड़ भी काफी चर्चित रही है। राज्य सरकारों को ध्यान देना होगा की अपराध को नियंत्रित करने के ​लिए कार्रवाई हो लेकिन पुलिसिया राज स्थापित न हो। पुलिस को आम लोगों के प्रति अपने चेहरे को मानवीय बनाना ही होगा। एक शव पर एक फोटोग्राफर का कूदना उस शख्स की मानसिकता को ही दर्शाता है।

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