सम्पादकीय

आगे बढ़ती महिला के पैरों में जंजीरें क्यों

Gulabi
26 Aug 2021 5:06 AM GMT
आगे बढ़ती महिला के पैरों में जंजीरें क्यों
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राष्ट्रीय महिला आयोग जैसे उच्च संस्थानों ने महिलाओं के उत्थान में बहुत कार्य कि

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देश के अन्य राज्यों के साथ हिमाचल प्रदेश में भी मनरेगा योजना, महिला मंडल समूह, महिला स्वयं सहायता समूह, महिलाओं की पंचायती राज में भूमिका और महिलाओं के कल्याण की अन्य योजनाओं के चलते लाखों महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने का मौका मिला और आज कई परिवारों में महिलाएं अपने बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा का प्रबंधन कर रही हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग जैसे उच्च संस्थानों ने महिलाओं के उत्थान में बहुत कार्य किया है…
26 अगस्त विश्व में महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है जिसने 1893 में महिला समानता की बात की। 26 अगस्त 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से अमरीका में महिलाओं को पहली बार मतदान का अधिकार मिला। महिला वकील बेल्ला अब्जुग के महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने के पश्चात आखिरकार 26 अगस्त 1971 से महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। नारी के पैरों को जंजीरों में जकड़ कर रखने और उनके साथ अनेकों अत्याचार की दास्तां प्राचीन काल से ही है। शास्त्रों और साहित्य से मालूम होता है कि वैदिक युग में नारी को बेहद सम्मान प्राप्त था। नारी उस समय पूर्ण स्वतंत्र थी। महिलाओं पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं था। और महिलाएं यज्ञ अनुष्ठानों में भाग लेती थीं। उस समय कहा जाता है कि 'यत्रनार्यस्तु पूज्यंते, रभन्ते तत्र देवताः'। इसका अर्थ है जहां औरतों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। महाभारत युग में द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने की चेष्टा की गई थी। रामायण युग में सीता ने अपने आप को पवित्र साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा दी थी। भक्ति काल हिंदी साहित्य का सुनहरा काल बताया जाता है। इस काल को औरतों के पतनकाल के रूप में देखा जाता है। इस युग में कबीर ने महिलाओं की आलोचना की थी। उन्होंने ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में महिलाओं को बाधक बताया। वहीं तुलसीदास ने नारी का सम्मान किया। इस युग में सूरदास ने नारी को राधा के रूप में प्रस्तुत किया था। रीतिकाल में कवियों ने औरतों को वासना की पूर्ति का एक साधन बताया था। मुगलों के समय में मीना बाजार लगाए जाते थे और नारी को विलासिता की वस्तु समझा जाता था। भारत में आजादी के बाद से ही महिलाओं को पुरुषों के बराबर मतदान देने का अधिकार दिया गया है। आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति गौर करने लायक है। सभी प्रकार के भेदभाव के बावजूद वे सभी महिलाएं नजर आती हैं जो एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं। और हमें उन पर गर्व भी है। परंतु महिलाओं की एक बहुत लंबी कतार है जो आज भी घर पर और घर के बाहर महिला होने के कारण असमानता को झेलने के लिए मजबूर हैं। चाहे वह घर में बेटी, पत्नी, मां या बहन होने के नाते हो या समाज में लड़की होने के नाते हो। आए दिन समाचार पत्रों में लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़, बलात्कार और हत्या जैसी खबरों को पढ़ा जा सकता है।
इसके साथ ही बहुत सी महिलाओं के साथ अपने घर में ही अत्याचार हो रहा है, क्योंकि वह एक महिला है। आजादी के इतने वर्षों के बाद भी महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों से पीछे है। 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 फीसदी की वृद्धि जरूर हुई है, लेकिन केरल जहां महिलाओं की साक्षरता दर 92 फीसदी है, वहीं बिहार में महिलाओं की साक्षरता दर 53.3 फीसदी ही है। महिलाओं के साथ समाज में कई लोगों ने अपने गलत दृष्टिकोण के कारण दुर्व्यवहार किए। आज भी कई घरों में लड़के को वंश का चिराग माना जाता है। भारत की जनसंख्या में महिलाओं का अनुपात 48 फीसदी है। इसके कम होने की गति में निरंतर विकास हो रहा है। अभी भी कन्या भ्रूण हत्या के गंभीर अपराध आए दिन होते रहते हैं। महिलाओं में सहनशीलता पुरुषों की तुलना में अधिक होती है। पहले महिलाएं ज्यादातर चुपचाप अन्याय सहन कर लेती थीं। वक्त के साथ-साथ समाज अधिक जागरूक हो गया है। अब ज्यादातर महिलाएं अन्याय सहन नहीं करती हैं। आत्मविश्वास के साथ परिवार में अपनी भूमिका निभाती हैं। समाज का बहुमुखी विकास तभी होगा जब महिलाओं को उनका उचित सम्मान और दर्जा मिलेगा। सती प्रथा, विधवा प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाओं ने महिलाओं को जंजीरों से जकड़ रखा था। लेकिन वहीं आधुनिक समाज में भारतीय संविधान में महिलाओं को विशेष अधिकार दिए हैं। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया गया है। पिता की संपत्ति में अधिकार से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचे पदों जैसे पुलिस, न्याय इत्यादि पर अधिकार दिए हैं। महिलाओं को नेशनल डिफेंस एकेडमी की प्रवेश परीक्षा में बैठने के अधिकार एक बहुत सराहनीय और बड़ा कदम है। देश के प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को सैनिक स्कूलों में लड़कियों के प्रवेश के दरवाजे खोल दिए हैं।
टोक्यो ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम की बेशक हार हुई, लेकिन देश के प्रधानमंत्री ने महिला हॉकी टीम की इन बेटियों को जैसे ही पलकों पर बैठाया, पूरे देश के लोगों का सम्मान इनके प्रति गोल्ड मेडल विजेता टीम के सदस्यों की तरह हो गया। जरूरत है समाज को महिलाओं के प्रति समान दृष्टिकोण से देखने की और उनका उत्साहवर्धन करने की। महिलाएं आत्मबल में पुरुषों से कई गुना आगे हैं। देश के अन्य राज्यों के साथ हिमाचल प्रदेश में भी मनरेगा योजना, महिला मंडल समूह, महिला स्वयं सहायता समूह, महिलाओं की पंचायती राज में भूमिका और महिलाओं के कल्याण की अन्य योजनाओं के चलते लाखों महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने का मौका मिला और आज कई परिवारों में महिलाएं अपने बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा का प्रबंधन कर रही हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग जैसे उच्च संस्थानों ने महिलाओं के उत्थान में बहुत कार्य किया है। कुछ गिने-चुने लोगों और चुनिंदा घटनाओं की वजह से कई सारी अन्य लड़कियों के बाहर आने के दरवाजे बंद हो जाते हैं। आज आवश्यकता है अपने आप को पहचानने की, समझने की और इसी में एक आवश्यक कड़ी है आत्मनिर्भरता की। महिला शक्ति सही दिशा में, समाज में अपनी भागीदारी स्थापित कर रही है। प्रकृति में महिला के स्थान व शक्ति को समाज के हर वर्ग को पहचानना होगा। समाज के चहुंमुखी विकास के लिए महिला के अधिकारों की रक्षा और सम्मान करना चाहिए।
जोगिंद्र सिंह
लेखक धर्मशाला से हैं
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