सम्पादकीय

भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में 'लैटरल एंट्री' पर क्यों उठ रहे हैं सवाल, क्या यह आरक्षण व्यवस्था के लिए एक खतरा है?

Gulabi
17 Feb 2021 9:07 AM GMT
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में लैटरल एंट्री पर क्यों उठ रहे हैं सवाल, क्या यह आरक्षण व्यवस्था के लिए एक खतरा है?
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साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में बहुमत के साथ आई तो उसने कई बड़े फैसले लिए, इन्हीं फैसलों में से एक फैसला था

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में बहुमत के साथ आई तो उसने कई बड़े फैसले लिए, इन्हीं फैसलों में से एक फैसला था UPSC में लैटरल एंट्री का यानि अब आपको IAS बनने के लिए UPSC की तीन (प्री, मेन्स और इंटरव्यू) परीक्षाएं नहीं देनी पड़ेंगी आप अब सीधे भारतीय प्रशासनिक सेवा में अफसर बन सकते हैं. हालांकि इसके लिए भी एक प्रक्रिया है जिसके तहत आपको कम से कम किसी निजी क्षेत्र में काम करने का 15 साल का अनुभव हो, साथ ही आपकी उम्र 40 से 55 वर्ष के बीच हो तभी आपको UPSC में लैटरल एंट्री मिलेगी. लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल उठता है वह यह है कि क्या ये संवैधानिक है? और क्या इससे UPSC में मिलने वाला आरक्षण खत्म हो जाएगा.


सराकर और सरकारी अफसर ये दोनों मिलकर किसी देश को सुचारू रूप से चलाने में अहम भूमिका निभाते हैं. संसद में नेता कोई कानून देश के लिए बनाते हैं तो जनता के बीच इस कानून को लागू करवाने की पूरी जिम्मेदारी इन्हीं अधिकारियों की होती है. हालांकि देश के प्रशासनिक सेवाओं में विशेषज्ञों की मांग पहले से उठती रही है, कुछ लोगों का मानना है कि अगर इन सरकारी पदों पर अनुभवी लोग रहेंगे तो इससे देश को चलाने में और मंत्रालय को कामकाज करने में आसानी होगी. वहीं कुछ तबका इसका खुला विरोध करता है और मानता है कि यह केवल अपने लोगों को ब्यूरोक्रेसी में भरने का एक आसान तरीका है.

क्या UPSC से कोटा खत्म हो जाएगा?
भारतीय प्रशासनिक सेवा से इतनी जल्दी आरक्षण खत्म हो जाएगा ये कहना दूर की कौड़ी है, लेकिन मोदी सरकार के UPSC में लैट्रल एंट्री में आरक्षण या कोटा का कोई जिक्र नहीं है क्योंकि यहां हर विभाग के लिए केवल एक पद पर ही आवेदन आया है और एक पद में आरक्षण देना संभव नहीं है. इस मुद्दे पर साल 2019 में राज्यसभा में सरकार की तरफ से डीओपीटी (Department of Personnel & Training) के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बयान दिया था कि 'केवल एक पद वाली जगहों पर आरक्षण देना मुश्किल है या शायद नहीं दिया जा सकता है.' सरकार की तरफ से कही गई ये बड़ी बात थी जिससे स्थिति साफ हो जाती है. अब इसी मुद्दे को लेकर विपक्ष और आरक्षण की लड़ाई लड़ने वाले संगठन सरकार पर हमलावर हैं. भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद तो ऐलान कर चुके हैं कि वह इस मुद्दे पर 7 मार्च को संसद का घेराव करेंगे. हांलाकि मोदी सरकार पहले से कहती आ रही है कि हम आरक्षण के साथ हैं और उससे कोई छेड़छाड़ नही की जाएगी.

लैट्रल एंट्री की जड़ कहां है?
इसे समझने के लिए आपको चलना होगा साल 1966 में जब देश में पहली बार प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना हुई. 5 जनवरी साल 1966 को देश की प्रशासनिक सेवा में सुधार लाने के लिए एक सुधार आयोग बना जिसके अक्ष्यक्ष बनाए गए मोरारजी देसाई. हालांकि 1967 में जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार आई तब मोरारजी देसाई को उपप्रधानमंत्री बना दिया गया और इस समिति के अध्यक्ष बने कांग्रेस नेता के. हनुमंथैया. इस समिति ने प्रशासनिक सुधारों के लिए 20 रिपोर्ट्स तैयार कीं जिनमें कुल 537 सुझाव थे. आज की ब्यूरोक्रेसी उन्हीं नियमों और सुधारों पर चल रही है.

5 अगस्त 2005 में UPA सराकर ने फिर से प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया और इसके अध्यक्ष हुए उस वक्त के यूपीए सरकार में मंत्री वीरप्पा मोइली. इसी समिति की देन थी प्रशासनिक सेवा में 'लैट्रल एंट्री' इस समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा कि जॉइंट सेक्रेटरी स्तर पर होने वाली भर्तियों में हमे विशेषज्ञों को लेना चाहिए. इसमे कहा गया था कि इनकी भर्ती बिना किसी परीक्षा के सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर हो सकती है. हालांकि यहां भी चयन का मानदंड वही था जो अब है यानि उम्र कम से कम 40 वर्ष और 15 साल का अनुभव होना ही चाहिए. लेकिन उस वक्त की यूपीए सरकार ने इन सिफारिशों को सिरे से खारिज कर दिया था. इसके बाद साल 2010 में रामचंद्रन की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकार के सामने फिर से प्रशासनिक सुधारों की एक रिपोर्ट रखी जिसमें UPSC परिक्षा के तरीकों और उम्र सीमा पर विशेष जोर दिया गया साथ ही इसमें 2005 की सिफारिशों को भी जोड़ा गया लेकिन उस वक्त की मनमोहन सरकार ने इसे फिर से खारिज कर दिया. साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सिफारिशों पर ध्यान दिया और इसे लागू करने में लग गए.

'अपने लोगों को ब्यूरोक्रेसी में घुसा रही है मोदी सरकार'
केंद्र सरकार ने जैसे ही लैट्रल एंट्री के लिए आवेदन दिए वैसे ही विपक्ष उन पर हमलावर हो गया. अखिलेश यादव ने आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार अपने लोगों को पीछे के दरवाजे से ब्यूरोक्रेसी में घुसा रही है. जो अभ्यर्थी सालों से इन पदों के लिए मेहनत कर रहे हैं यह उनके साथ अन्याय है. वहीं इस मुद्दे पर आरजेडी अध्यक्ष तेजस्वी यादव भी मोदी सरकार पर हमलावर रहें. उन्होंने कहा कि क्या मोदी सरकार कहना चाहती है कि सारी योग्यता केवल निजी क्षेत्र के लोगों में ही है. मोदी सरकार का यह प्रयास आरक्षण को धीरे-धीरे कम करने का एक कदम है. इसी तरह से कांग्रेस ने भी सीधे तौर पर केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि लैट्रल एंट्री के जरिए सरकार अपने लोगों को ब्यूरोक्रेसी में भरना चाहती है.

लैट्रल भर्ती की संवैधानिकता पर सवाल
लैट्रल भर्ती पर संविधान के जानकार दो भागों में बटे हैं. एक धड़े का मानना है कि सरकार प्रशासनिक सुधार को देखते हुए ऐसा कर सकती है. वहीं दूसरा धड़ा मानता है कि सरकार के इस फैसले से आरक्षित वर्ग को नुकसान होगा और संवैधानिक रूप से यह बिल्कुल गलत है और इस पर सरकार को जवाब देना होगा. हालांकि सरकार का कहना है कि उनका यह कदम पूरी तरह से संवैधानिक है और इससे आम जनता का भला होगा. रिटायर्ड आईएएस सुशील त्रिपाठी ने टीवी 9 भारतवर्ष से एक बातचीत में बताया कि अगर यूपीएससी के थ्रू भर्ती हो रही है और संविधान में उल्लिखित पदों के लिए हो रही है तो गैर संवैधानिक होने का सवाल ही नहीं उठता. जहां तक रिजर्वेशन का सवाल है तो अभी तो एक-एक पदों पर ही भर्ती हो रही है इसलिए रिजर्वेशन की जरूरत नहीं है लेकिन अगर नियुक्तियां ज्यादा होती हैं आरक्षण दिया जाना जरूरी होगा.

ऐसे होगी नियुक्ति
डीओपीटी (Department of Personnel & Training) की ओर से दिए आवेदन के अनुसार मंत्रालयों में जॉइंट सेक्रेटरी और डायरेक्ट पदों पर नियुक्ति होगी. इसके लिए आवेदकों की उम्र सीमा 40 साल से 55 साल तक होगी. पहले इनका टर्म तीन साल का होगा और अगर काम सही रहा तो इनका कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. इनकी सैलरी भी जॉइंट सेक्रेटरी के जैसी ही होगी और इन्हें सुविधाएं भी उसी तरह की मिलेंगी. आपको बता दें जॉइंट सेक्रेटरी ही किसी मंत्रालय के फैसले को अंतिम रूप देता है और जनता के बीच उसे लागू कराने में अहम भूमिका निभाता है.

इससे पहले साल 2018 में ऐसे 10 पदों पर नियुक्ति भी हो चुकी है. उस वक्त भी आरक्षण को लेकर खूब सियासी घमासान मचा था. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव आए और बाद में फिर कोरोना, जिस वजह से बीजेपी इसे आगे नहीं बढ़ा पाई थी. हालांकि अब मोदी सरकार इस प्रोजेक्ट को तेजी से आगे बढ़ा रही है. फिलहाल सरकार ने तीस पदों के लिए आवेदन मांगे हैं लेकिन इसके तुरंत बाद फिर से और पदों पर आवेदन मांगे जा सकते हैं.


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