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- हिमाचल मॉडल किसका खरा

आम आदमी पार्टी का सफर अब हिमाचल के अतीत और वर्तमान के बीच यह तय नहीं कर पा रहा है, कि इस पहाड़ी प्रदेश को कौन सी राजनीतिक खुराक दी जाए। जिस दिल्ली मॉडल की चर्चा मात्र से देश में बदलाव की राजनीति शुरू हो जाती थी, वह हिमाचल में अगर 'आप' के पंजाब की उधेड़बुन में फंस गया है यानी लोग वहां की कानून व्यवस्था को देखते-देखते अब भगवंत मान को भी देख रहे हैं। अपने कद को दिखाते अरविंद केजरीवाल क्या यह साबित कर पा रहे हैं कि पंजाब की सत्ता का संचालन कद्दावर है। कम से कम हमीरपुर का राग जिस तरह सुनाया गया, उससे प्रदेश में नई राजनीति के विकल्प सुन्न हो जाते हंै, यह इसलिए भी क्योंकि हिमाचल का अपना भी एक स्वतंत्र मॉडल है और जिसका मुकाबला बड़े प्रदेशों से होता आया है। यह दीगर है कि प्रदेेश के मसले अभी खत्म नहीं हुए, लेकिन यह सही नहीं कि यहां प्रयास की कमी किसी सरकार ने रखी है। यही वजह है कि राष्ट्रीय आंकड़ों या तुलनात्मक दृष्टि से प्रदेश ने पहाड़ की वर्जनाओं व अभिशप्त निशानियों को निरंतर मिटाया है। राजनीति के हिसाब से केजरीवाल वर्तमान या पूर्ववर्ती सरकारों को कोस सकते हैं, लेकिन क्या यह एहसास वह दिल्ली व पंजाब के कटोरे में तोल सकते हैं। जिस शिक्षा की चर्चा पर 'आप' सरकार विरोधी माहौल बनाने की कोशिश कर रही है, वहां एक सतत संघर्ष की कहानी है, जिसे हमें आजाद भारत के संदर्भ में देख सकते हैं। विद्युतीकरण, हर घर में जल, हर पंचायत में स्कूल, स्वास्थ्य संस्थान, सड़क और परिवहन के मामले में हिमाचल की स्थिति पड़ोसी उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा व जम्मू-कश्मीर से कहीं बेहतर है, तो 'आप' जिस सुराख को खोज रही है, उससे सियासी बादल नहीं फटेंगे। बेशक सुशासन की दृष्टि से आलोचना करने का चुनावी अधिकार राजनीति को हासिल है, लेकिन खुद को बेहतर साबित करने की कसौटियों में दिल्ली बनाम हिमाचल नए आदर्श पैदा नहीं करता और न ही पर्वतीय लोग दिल्ली की भविष्यवाणी से मोहित हो जाएंगे। 'आप' ने जिस तरह सरकारों की नफरत गिनाते हुए हिमाचल को ही निकम्मा बताना शुरू किया है, उसके कारण राज्य की भावना को कहीं न कहीं ठेस पहुंचनी शुरू हो गई है।
